देश की मेनस्ट्रीम मीडिया और तमाम अंधभक्तों की नजर में मोदी जी के जापान, पापुआ न्यू गिनी और ऑस्ट्रेलिया दौरे की उपलब्धियां – अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाईडेन द्वारा मोदी जी से ऑटोग्राफ मांगना, पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री द्वारा मोदी जी का चरण स्पर्श करना और ऑस्ट्रेलिया में मोदी जी का एक राजनेता जैसा नहीं बल्कि एक रॉकस्टार जैसा स्वागत है। सोशल मीडिया ऐसे पोस्ट से भरा पड़ा है और सोशल मीडिया के तमाम बुद्धिहीन यूजर्स इसे ही देश के लिए एक अभूतपूर्व गौरव की बात बता रहे हैं।
जापान में प्रधानमंत्री मोदी की यूक्रेन के राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद हमारे देश के समाचारपत्रों में बड़ी-बड़ी खबरें आईं जिसमें बताया गया कि मोदी जी ने जेलेंस्की को राजनैतिक स्तर के अतिरिक्त व्यक्तिगत स्तर पर सहयोग का भरोसा दिया है। मोदी जी ने कहा कि कूटनीति और वार्ता से हरेक युद्ध को रोका जा सकता है। लगभग 500 दिनों से चल रहे युद्ध के बाद ऐसे वक्तव्यों के क्या मायने हैं, यह तो देश का मेंनस्ट्रीम मीडिया ही बता सकता है जिसने युद्ध के आरम्भ से ही यह घोषित कर दिया था कि इस युद्ध को मोदी जी ही रुकवा सकते हैं।
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दूसरी तरफ इसी मीडिया ने देश की जनता को कभी भी यह स्पष्ट तौर पर नहीं बताया कि यूक्रेन युद्ध के बाद से भारत-रूस की नजदीकियां बढ़ गईं हैं और जब सभी पश्चिमी देश रूस पर तमाम प्रतिबंध लगा रहे हैं तब भारत रूस से कच्चे तेल का सबसे बड़ा आयातक बन गया है और रूस की अर्थव्यवस्था को बर्बादी से बचा रहा है। हमारी सरकार पूरी दुनिया को बताती है कि रूस से तेल खरीदना उसका आंतरिक मामला है और सस्ता तेल जहां से भी उपलब्ध होगा उसे खरीदने के लिए भारत सरकार को किसी से अनुमति नहीं लेनी पड़ेगी। पर, रूस से खरीदे गए सस्ते कच्चे तेल का असर देश में पेट्रोल-डीजल के दामों में आज तक नजर नहीं आया है। जापान में प्रधानमंत्री मोदी ने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से प्रजातंत्र, देश की सीमाओं और संप्रभुता की रक्षा के लिए कदम उठाने की बात की पर यह सभी बातें नई दिल्ली से इस विषय पर जारी प्रेस रिलीज़ से गायब हो गईं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले से संबंधित रूस के विरोध में जितने भी प्रस्ताव वोटिंग के लिए प्रस्तुत किए गया, हरेक ऐसे प्रस्ताव के दौरान भारत, दुनिया का सबसे बड़ा प्रजातंत्र और वसुधैव कुटुम्बकम का नारा देने वाला देश, वोटिंग के दौरान अनुपस्थित रहा।
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यहां की मीडिया और सरकारी महकमों ने जी7, जी20 और क्वाड जैसे समूहों को इस तरह से प्रस्तुत किया है जैसे यह बड़े प्रतिष्ठा और समां की बात हो और पूरी दुनिया इन्हीं समूहों के इशारे पर चलती हो, पर सच तो यह है कि ये सभी समूह अमीर देशों के प्रधानों के लिए एक पिकनिक स्थल से अधिक नहीं होते और जहां प्रजातंत्र की और जनता की नहीं बल्कि पूंजीवाद और व्यापार की चर्चा की जाती है।
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ऑस्ट्रेलिया में मोदी जी के तमाम स्वागत के बीच कैनबरा में स्थित संसद भवन में हमारे देश में प्रतिबंधित बीबीसी डोक्युमेंटरी, इंडिया – द मोदी क्वेश्चन के शो के साथ ही पैनल डिस्कशन भी आयोजित किया गया। इसका आयोजन, वी द डायस्पोरा नामक संस्था के साथ ही केयर, हिन्दुस् फॉर ह्यूमन राइट्स, एमनेस्टी इन्टरनेशनल, द ह्युमनिस्म प्रोजेक्ट और पेरियार अंबेडकर थॉट सर्किल ने किया था। 40 मिनट की इस फिल्म के दौरान ऑस्ट्रेलिया के अनेक सांसद और मानवाधिकार कार्यकर्ता भी मौजूद थे। फिल्म के बाद सांसद डेविड शूब्रिज ने कहा कि भारत में सच बोलना भी एक अपराध बन गया है और भारत की जनता जो बर्दाश्त कर रही है, यह फिल्म तो उसकी महज एक छोटी सी झलक प्रस्तुत करती है।
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इस पैनल डिस्कशन में गुजरात दंगों का सच उजागर करने के कारण आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी संजीव भट्ट की बेटी आकाशी भट्ट ने कहा कि वर्ष 2002 में महीनों तक गुजरात सुलगता रहा और खुले आम मुस्लिमों पर दिल दहला देने वाले हमले होते रहे, ह्त्याएं होती रही। मेसी यूनिवर्सिटी के मोहन दत्ता ने कहा कि पूरे क्षेत्र में हिन्दुओं का उग्रवाद एक गंभीर खतरा बन रहा है और अब तो निष्पक्ष पत्रकार, मुस्लिम और अल्पसंख्यक समुदाय कहीं सुरक्षित नहीं है। साउथ एशियन सॉलिडेरिटी ग्रुप की डॉ कल्पना विल्सन ने कहा कि अब अधिकतर देशों में प्रजातंत्र के नाम पर निरंकुश सत्ता है और ऐसी सत्ता का अपना एक समूह होता है, इस समूह में प्रधानमंत्री मोदी एक मिसाल की तरह हैं जिन्होंने प्रजातंत्र को निरंकुश सत्ता में तब्दील कर दिया है।
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प्रधानमंत्री मोदी के ऑस्ट्रेलिया में पहुंचने के कुछ दिनों पहले ऑस्ट्रेलिया में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने अनेक पोस्टर लगाए थे, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी को हिन्दू आतंकवादी बताते हुए उन्हें गिरफ्तार करने वाले को 10000 डॉलर के पुरस्कार की घोषणा की गयी थी। इन पोस्टरों को लगाने के तुरंत बाद ही पुलिस ने हटा दिया था। पश्चिमी सिडनी के एक मंदिर में एक बैनर पर प्रधानमंत्री मोदी को आतंकवादी घोषित करने की मांग की गयी थी।
ऑस्ट्रेलिया के अनेक सांसदों ने अपने प्रधानमंत्री अन्थोनी अल्बनेसे पर नाराजगी भी जाहिर की है, इनके अनुसार द्विपक्षीय वार्ता के दौरान उन्हें भारत में मानवाधिकार का मुद्दा उठाना चाहिए था। इन सांसदों ने याद दिलाया कि ऑस्ट्रेलिया ने 20 वर्ष पहले चीन पर भी व्यापार के मामले में ऐसा ही भरोसा दिखाया था, पर इस मामले से कोई सबक नहीं लिया।
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दरअसल हमारे देश के मेनस्ट्रीम मीडिया ने प्रधानमंत्री पद की गरिमा को ही ख़त्म कर दिया है और उन्हें एक रॉकस्टार की तरह प्रस्तुत करना शुरू कर दिया है। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को गले मिलने, संगीत पर थिरकने, ऑटोग्राफ देने और पैर छूने जैसी चीजों पर केन्द्रित कर दिया है। मीडिया से यही सारे चित्र सोशल मीडिया द्वारा हरेक घर में पहुंचाए जाते है। जाहिर है, मीडिया से लेकर सामान्य जनता इसे ही प्रधानमंत्री और साथ ही देशवासियों की अप्रतिम उपलब्धि मानती है। एक जीवंत प्रजातंत्र किस तरह से केवल 10 वर्षों में ही निरंकुश और तानाशाही में तबदील हो सकता है, कम से कम बीजेपी शासन ने इसे दुनिया को तो दिखा ही दिया है।
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