अपराध के खिलाफ केन्द्रीय जांच ब्यूरो हमारा विशिष्ट संस्थान है। अमेरिका के फेडरल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टिगेशन की तरह ही सीबीआई को खास चीजों से निपटने के लिए बनाया गया था। एफबीआई को शुरुआत में साम्यवाद के खिलाफ काम करने के गठित किया गया था, सीबीआई को भ्रष्टाचार से निपटना था।
तो यह वास्वव में कितना कारगर है? हम अक्सर यह मांग सुनते हैं कि ‘इस मामले को सीबीआई को सौंप दिया जाए’, जब भी कोई मामला खबरों में दिखता है। सीबीआई एक केन्द्रीय एजेंसी है और केन्द्र सरकार के प्रति जवाबदेह है, जबकि पुलिस अलग-अलग राज्य सरकारों को रिपोर्ट करती है। आज एफबीआई आतंकवाद और कई अन्य चीजों पर काम करती है। सीबीआई भी अपराध और अन्य चीजों के खिलाफ काम करती है। तो किस तरह के मामलों पर सीबीआई को काम करना चाहिए? यह साफ नहीं है और यह कुछ भी हो सकता है। वह एक हत्या हो सकती है, क्योंकि वह टेलीविजन की बड़ी खबर बन चुकी है (जैसे कि आरूषी और शीना हत्या मामला), कई और चीजें भी हो सकती हैं जिन्हें स्कैंडल माना जाता है (जैसे 2जी या नीरव मोदी घोटाला), और वह चीजें भी हो सकती हैं जो सरकार के भ्रष्टाचार से जुड़ी हैं।
सीबीआई के नेटवर्क में 10 क्षेत्रीय जोन हैं: मुंबई ( जिसके जिम्मे महाराष्ट्र, गुजरात और गोवा हैं), हैदराबाद (आंध्र, तेलगांना, कर्नाटक), चेन्नई (तमिलनाडु, केरल, पांडिचेरी), गुवाहाटी (असम, अरूणाचल, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा), कोलकाता (पश्चिम बंगाल, ओडिशा, पोर्ट ब्लेयर), पटना (बिहार और झारखंड), लखनऊ (यूपी और उत्तराखंड), चंड़ीगढ़ (पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, और जम्मू और कश्मीर), भोपाल ( एमपी और छत्तीसगढ़) और दिल्ली (राजस्थान और एनसीआर)। इसके अलावा भ्रष्टाचार विरोधी मुख्य कार्यालय जोन, आर्थिक अपराध जोन 1 और 2, बैंक सुरक्षा और धोखाधड़ी जोन, विशेष अपराध जोन, विशेष कार्य दल जोन, अंतर-अनुशासन मॉनिटरिंग एजेंसी ( चाहे मानें या न मानें, कुछ महीनों पहले तक यह राजीव गांधी हत्या की ‘जांच’ कर रही थी), नीति प्रभाग, तकनीक, फॉरेंसिक और समन्वय जोन और केन्द्रीय फॉरेंसिक साइंस लेब्रोटरी, जिसके पास खुद 11 प्रभाग हैं: प्राक्षेपिक, जैविक, रसायन, कम्प्यूटर फॉरेंसिक, डीएनए प्रोफाइलिंग, दस्तावेज, फिंगर प्रिंट, फॉरेंसिक मनोविज्ञान, फोटो और वैज्ञानिक सहायक, भौतिक और सेरोलॉजी।
मैं यह जानने के बाद आश्चर्यचकित था क्योंकि एक कोर्ट रिपोर्टर रह चुका होने के कारण मैं जानता हूं कि सरकार द्वारा ट्रायल के दौरान कोर्ट में पेश सारी फॉरेंसिक चीजों की गुणवत्ता बहुत खराब होती है। कुल मिलाकर 6000 लोग सीबीआई में काम करते हैं। तो इतनी बड़ी संरचना से राष्ट्र को क्या मिलता है? बहुत कम जो काम का हो।
2005 में सीबीआई की सजा दर 65.6 फीसदी, 2006 में 72.9 फीसदी, 2007 में 67.7 फीसदी और 2009 में 64.4 फीसदी थी। 2017 में लोकसभा में सरकार की तरफ से यह बताया गया कि इस सरकार के कार्यकाल में 2014 में 69.02, 2015 में 65.1 और 2016 में 66.8 सजा दर थी। लेकिन वे आंकड़े भ्रामक हैं क्योंकि वे मुकम्मल हैं। लेखक जॉन एसटी क्वाह ने अपनी किताब ‘कर्बिंग करप्शन इन एशियन कंट्रीज: एन इम्पॉसिबल ड्रीम’ में भारतीय लेखक एसएस गिल को सीबीआई के आंकड़ों के बारे में यह कहते हुए उद्धृत किया है: “अगर गंभीर अपराधों के 30 मामले हैं और छोटी-मोटी चोरी के 70 मामले हैं, और अगर 60 चोरी के मामलों में सजा हो जाती है तो 60 फीसदी सफलता दर दिखाना पूरी तरह एक धोखा है।”
इससे उनका क्या मतलब है? कुछ दिनों पहले 8 मार्च को यह खबर छपी थी कि ‘सीबीआई ने भ्रष्टाचार क मामले में एक एम्स कर्मचारी को गिरफ्तार कर लिया’। खबर में लिखा गया कि “केडी विस्वाल नाम का एक शख्स ठेकेदार से बकाया बिलों को पास करने के लिए 19500 रूपए की रिश्वत मांगते और लेते हुए पकड़ा गया।”
विस्वाल एम्स में एक असिस्टेंट इंजीनियर है और रिपोर्ट में कहा गया कि जांच एजेंसी ने आरोपी के घर और कार्यालय की भी तलाशी ली। क्या यही वे चीजें हैं जो हमारे दिमाग में आती हैं जब ‘सीबीआई’ का नाम सुनते है? शायद नहीं। लेकिन इन्हीं मामलों में ज्यादातर सजा होती है। विजिलेंस कमिश्नर आर श्री कुमार के अनुसार बड़े अपराधों में सीबीआई की सजा दर 3.96 फीसदी है।
सीबीआई से जुड़ी दूसरी समस्या सांस्थानिक हेर-फेर की है। सीबीआई के संस्थापक निदेशक डीपी कोहली ने 55 साल पहले अपनी टीम से कहा था, “जनता आपकी ईमानदारी और काम दोनों में एक उच्च स्तर देखना चाहती है। इस आस्था को बनाए रखना होगा। सीबीआई का उद्देश्य है – परिश्रम, निष्पक्षता और ईमानदारी: यही मूल्य आपके काम को हमेशा संचालित करेंगे। कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्धता हर जगह, हर समय, हर स्थिति में पहले होनी चाहिए।”
सीबीआई ने इन उच्च उद्देश्यों को कभी पूरा नहीं किया। वह समाधान नहीं, बल्कि समस्या है। देवाशीष बोस और सुचेता दलाल ने अपनी किताब ‘फ्रॉम हर्षद मेहता टू ग्लोबल ट्रस्ट बैंक’ में लिखा: “जांच को जल्द से जल्द पूरा करने और चार्जशीट दाखिल करने की बजाय केन्द्रीय जांच ब्यूरो सरकार के इशारे पर काम कर रही थी और इस तरह की खबरें उड़ाने में व्यस्त थी कि संयुक्त निदेशक के माधवन ने इसलिए इस्तीफा दे दिया क्योंकि उन्हें पदोन्नति नहीं मिली थी और हर्षद मेहता नारकोटिक्स के कारोबार को वित्तीय मदद पहुंचा रहा था। इसने लगातार जेपीसी से कई सारी सूचनाओं को छिपाए रखा। माधवन ने कमिटी को यह बताकर सीबीआई और इसके प्रमुख की पोल खोल दी कि घोटालेबाजों के विदेशी खातों की जांच करने के उऩके सुझाव को नजरअंदाज कर दिया गया। अपनी इज्जत बचाने के लिए सीबीआई ने रविवार, 14 फरवरी 1993 की रात सरकारी खबरिया एजेंसियों दूरदर्शन, पीटीआई और यूएनआई में एक रिपोर्ट भेजी, जिसमें कहा गया कि सीबीआई ने हर्षद मेहता के स्विस बैंक के खातों को सील करा दिया है। इंडियन एक्सप्रेस ने स्विस अधिकारियों से इस खबर की पुष्टि करने की कोशिश की तो उन्हें पता चला कि यह झूठी खबर थी। सीबीआई ने फिर से मामले को रफा-दफा करने की कोशिश में कहा कि कुछ खातों को पहले बंद किया गया था, लेकिन बाद में उन्हें फिर से चालू कर दिया गया। इंडियन एक्सप्रेस ने बताया कि यह भी झूठ था। सीबीआई ने अपना मुख्य हथियार चलाते हुए यूनाईटेड कमर्शियल बैंक के पूर्व चेयरमैन के मर्गबंथु को गिरफ्तार कर लिया और कई हफ्तों तक उन्हें हिरासत में रखा।
क्या आतंरिक रूप से किसी को इसके लिए सजा मिली? बिल्कुल नहीं। यह सब आज तक जारी है। कानून का राज स्थापित करने के काम में लगी एजेसिंयां बहुत ज्यादा शोर मचाती हैं। गिरफ्तारियां होती हैं और सनसनीखेज खबरें उड़ाई जाती हैं। कोर्ट को बताया जाता है कि कुछ और वक्त के लिए हिरासत में रखने की जरूरत है क्योंकि साक्ष्यों को जुटाया जा रहा है। इसी तरह से बड़े स्कैंडल की जांच चलती है।
और तब कोर्ट में पूरा मामला सतही साबित हो जाता है क्योंकि पूरे काम को लापरवाही के साथ किया जाता है और बढ़ा-चढ़ा कर दावे किए जाते हैं, ऐसा ही 2जी घोटाले में हुआ। पाठकों को यह बातें याद रखनी चाहिए जब अगली बार अखबार और न्यूज चैनल यह बताएं कि सीबीआई ने पूरे मामले का पता लगा लिया है।
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