उत्तर प्रदेश में जाति-आधारित राजनीति नई नहीं है लेकिन जब से योगी आदित्यनाथ सत्ता में आए हैं, तराजू में बटखरे जरूर बदल गए हैं। अब सवाल ये उठ रहे हैं कि पुलिस मुठभेड़ में मारे गए अपराधियों में ब्राह्मण कितने हैं या पिछले तीन वर्षों में प्रदेश में कितने ब्राह्मण मारे गए हैं। जबकि असली सवाल नदारद हैं। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती बीजेपी के साथ कदम ताल कर रही हैं और इसलिए दलित अत्याचार को लेकर न तो वह, न उनके साथ मिलकर पिछला चुनाव लड़ने वाली समाजवादी पार्टी कोई सवाल उठा रही है। अगर इन पार्टियों के कुछ नेता सक्रिय भी हैं, तो सिर्फ ट्विटर-फेसबुक तक।
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योगी आदित्यनाथ पूर्वांचल से आते हैं लेकिन उस इलाके में भी इस तरह की घटनाएं बढ़ रही हैं। अभी 19 अगस्त को भदोही में 17 साल की एक बालिका का शव जिस हाल में मिला, वह रोंगटे खड़े कर देने वाला था। यह बालिका दो दिनों पहले जानवर चराने गई थी और तभी से गायब थी। उसके शव की शिनाख्तन हो, इसलिए उस पर एसिड डाल दिया गया था। पुलिस को भी आशंका है कि बलात्कार के बाद उसकी हत्या की गई। इससे पहले स्वतंत्रता दिवस के दिन गोरखपुर जिले के गोला क्षेत्र में एक बालिका के साथ बलात्कार किया गया और उससे पहले उसे सिगरेट से जलाया गया। यह बालिका ईंट-भट्टे में मजदूरी करती है और पास के नल से पानी लेने गई थी।
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खबर लिखे जाने तक इस बालिका का जिला अस्पताल में उपचार हो रहा था। 14 अगस्त की रात आजमगढ़ के तरवां थाना क्षेत्र के गांव बांसगांव में एक दलित प्रधान की सिर्फ इसलिए हत्या कर दी गई क्योंकि उन्होंने दबंगों के कहने पर कागजों पर हस्ताक्षर नहीं किए थे। प्रधान का नाम पप्पू राम था मगर उनकी ईमानदारी की वजह से उनका उपनाम सत्यमेव जयते हो गया था। पप्पू की पत्नी मुन्नी देवी ने विवेक सिंह, बृजेश सिंह, सूर्यांश दुबे द्वारा हत्या करने की बात कही है। पप्पू अक्सर दलित अधिकारों की बात करते थे। उनके भतीजे लिंकन के मुताबिक, यह बात गांव के सवर्णों को बुरी लगती थी और वह उनकी आंखों में चुभते थे। उसने यह भी आरोप लगाया कि हत्यारे घटना के बाद हमारे घरआए और दादी से कह कर गए कि सत्यमेव मर गया, जाओ, उसकी लाश उठा लाओ।
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बांसगांव पूरी तरह दलित बहुल गांवहै। घटना के बाद मौके पर पुलिस पहुंची तो लेकिन उसकी जीप के नीचे दबने से एक किशोर की भी मौत हो गई। भीड़ ने इसके बाद उत्तेजित होकर पुलिस परपथराव किया और एक चेक पोस्ट में आग लगा दी। 14 अगस्त को ही लखीमपुर खीरी में ईशा नगर थाने के पकरिया गांव में दलित समुदाय की एक नाबालिग लड़की की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई। लड़की की उम्र बमुश्किल 13 साल थी। लड़की का गला उसके ही दुपट्टे से घोंट दिया गया और उसके शव को खेत में दूर तक घसीटा गया। परिजनों के मुताबिक, लड़की शौच के लिए बाहर गई थी।
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इससे पहले 9 अगस्त को हापुड़ के गढ़ मुक्तेश्वर क्षेत्र में 8 साल की बच्ची को उसके घर के बाहर से अगवा किया गया और उसका बलात्कार किया गया। डॉक्टर के मुताबिक, अंदरूनी चोट इतनी गहरी थी कि सर्जरी करना मुश्किल था। प्राइवेट पार्ट डैमेज हो गया था। इस तरह की घटना के बावजूद अस्पताल के लोग भी इतने अमानवीय थे कि पीड़िता के पिता को ही उसका स्ट्रेचर खींचना पड़ा। घटना के एक सप्ताह बाद पुलिस ने आरोपी दलपत को गिरफ्तार कर लिया। हापुड़ पुलिस कप्तान संजीव सुमन के मुताबिक, जब पुलिस उसे जांच के लिए घटनास्थल परले गई तो उसने भागने की कोशिश की जिसके बाद पुलिस को गोली चलानी पड़ीजो उसके पैरमें लगी। ऐसी हालत में, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू सही ही कहते हैं कि पूरे प्रदेश में महिलाओं और दलितों के विरुद्ध अत्याचार इस समय चरम पर है। हर दिन मन को विचलित करने वाली एक-न-एक बुरी खबर आ रही है। प्रदेश में अपराधियों और पुलिस का गठजोड़ है इसलिए अपराधियों के मन से डर निकल गया है।
यूपी और बिहार में दलित और कमजोर वर्गों के लोग पहले भी दबंगों के निशाने पर रहे हैं। पर यूपी में भाजपा के सत्तासीन होने के बाद एक बड़ा अंतर आया है। पहले ऐसे मामलों पर बसपा-सपा के नेता-कार्यकर्ता सिर आसमान पर उठा लेते थे। अब यह सब नहीं हो रहा। भाजपा चूंकि मुख्यतः सवर्णों और मध्य वर्ग की पार्टी है इसलिए उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा। तब ही तो इन घटनाओं से बेपरवाह उसकी पार्टी के सुल्तान पुर से विधायक देवमणि द्विवेदी विधानसभा में प्रश्न की नोटिस तो देते हैं, पर पूछते हैं कि पिछले तीन वर्षों में प्रदेश में कितने ब्राह्मण मारे गए हैं।
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यह भी कम रोचक नहीं है कि इस तरह के सवाल उठने लगे हैं तो उनका जवाब देने के बहाने यूपी पुलिस एक खास तरह का संदेश देना भी नहीं भूलती। पुलिस मुठभेड़ को लेकर उसने जो आंकड़े जारी किए हैं, उसे पढ़ते हुए समझने की जरूरत है कि वह, दरअसल, बताना क्या चाहती है। उसने बताया है कि मुठभेड़ में बीते साढ़े तीन साल में मुठभेड़ में 124 अपराधी मार गिराए गए हैं। इनमें 47 अल्पसंख्यक, 11 ब्राह्मण और 8 यादव थे। अल्पसंख्यक समुदाय के ज्यादातर अपराधी पश्चिमी यूपी के थे। वहीं, शेष 58 अपराधियों में ठाकुर, वैश्य, पिछड़े, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बदमाश शामिल थे। मुठभेड़ की सर्वाधिक घटनाएं मेरठ में हुईं। यहां 14 अपराधी मारे गए। दूसरे नंबर पर मुजफ्फरनगर रहा जहां 11 अपराधी मारे गए। सहारनपुर में 9, आजमगढ़ में 7 और शामली में 5 अपराधी पुलिस मुठभेड़ में ढेर हुए। खुद ही देख लीजिए संदेश साफ है या नहीं।
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