केंद्र की मोदी सरकार ने पिछले कुछ साल के दौरान अनेक महत्त्वपूर्ण संदर्भों में महिला हितों की आश्चर्यजनक उपेक्षा की है। संकटग्रस्त महिलाओं के पुनर्वास और सहायता के लिए महत्त्वपूर्ण योजना स्वधर गृह की है। उसके लिए साल 2016-17 में 84 करोड़ रुपए का आवंटन था, जिसे अगले साल के बजट में मात्र 57 करोड़ रुपए कर दिया गया।
वहीं 2018-19 में इस योजना के लिए मूल बजट अनुमान में 95 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था, जिसे संशोधित अनुमान में 50 करोड़ रुपए कर दिया गया। इस साल तो मूल बजट अनुमान में भी मात्र 50 करोड़ रुपए का ही प्रावधान है। यानि पिछले साल के बजट अनुमान की तुलना में यह 47 प्रतिशत कम है।
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इसी तरह वूमन हेल्पलाईन की बेहद अहम योजना में पिछले साल के 29 करोड़ रुपए के मुकाबले में इस साल के अंतरिम बजट में मात्र 18 करोड़ रुपए का प्रावधान है। जबकि 2016-17 में इस योजना पर मात्र 1 करोड़ रुपया खर्च किया गया था, जबकि उसके पिछले साल 15 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे।
महिलाओं और लड़कियों की ट्रैफिकिंग पर अंकुश लगाने का महत्त्व बार-बार दोहराया जाता है, लेकिन यह केवल भाषणों तक ही सीमित नजर आता है। हकीकत ये है कि इस योजना (ट्रैफिकिंग पर अंकुश की समग्र योजना) के लिए साल 2018-19 में जो 50 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था, उसे बाद में संशोधित अनुमान में मात्र 20 करोड़ रुपए कर दिया गया, यानि 60 प्रतिशत की कटौती की गई। इस साल के अंतरिम बजट के बजट अनुमान में इस महत्त्वपूर्ण योजना के लिए 30 करोड़ रुपए का आवंटन है, जो पिछले वर्ष के बजट अनुमान से 40 प्रतिशत कम है।
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‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना के बारे में मोदी सरकार ने खुद संसद में स्वीकार किया है कि साल 2014-15 के बाद से इस योजना का आधे से अधिक बजट मीडिया में प्रचार पर खर्च किया गया है।
महिलाओं के सशक्तीकरण के राष्ट्रीय मिशन (महिला शक्ति केंद्र) के लिए 2018-19 में 267 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया, लेकिन बाद में कटौती कर संशोघित अनुमान में इसे मात्र 115 करोड़ रुपए कर दिया गया। इस साल के अंतरिम बजट में इस मिशन के लिए बजट अनुमान 150 करोड़ रुपए है, जो पिछले साल के बजट अनुमान 267 करोड़ रुपए से कहीं कम है।
कामगार महिलाओं के लिए बहुत आवश्यक योजना ‘क्रेच स्कीम’ में भी पुनर्संरचना के दौर में केंद्र सरकार के बजट में बड़ी कटौती हुई है।
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‘प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना’ का सरकार ने प्रचार तो बहुत किया है, लेकिन कड़वी सच्चाई ये है कि जहां इनके लिए 2018-19 के बजट अनुमान में 2400 करोड़ रुपए का आवंटन था, वहीं साल 2018-19 के संशोधित अनुमान में इसे मात्र 1200 करोड़ रुपए पर समेट दिया गया यानि 50 प्रतिशत की कटौती की गई।
विधवा पेंशन की मुख्य योजना में भी कटौतियां होती रही हैं। साल 2014-15 में इसका बजट अनुमान 3189 करोड़ रुपए था, जबकि 2019-20 के बजट अनुमान में इसके लिए मात्र 1939 करोड़ रुपए का प्रावधान है।
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