राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के अनुसार स्वास्थ्य पर कुल सार्वजनिक खर्च को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 2.5 प्रतिशत के बराबर होना चाहिए। साथ ही यह लक्ष्य साल 2025 तक प्राप्त कर लेना चाहिए। इसे एक न्यूनतम लक्ष्य ही मानना चाहिए क्योंकि अनेक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार स्वास्थ्य के बजट का प्रतिशत इससे भी कहीं अधिक होना चाहिए।
दूसरी ओर वर्तमान स्थिति यह है कि साल 2019-20 के बजट अनुमानों के अनुसार केंद्रीय और सभी राज्य सरकारों ने कुल मिलाकर स्वास्थ्य के लिए जो अवंटन किया था, वह सकल घरेलू उत्पाद के मात्र 1.6 प्रतिशत के बराबर था। अब अगर इस वर्ष 2020-21 के केंद्रीय बजट को देखा जाए तो इसमें स्वास्थ्य के लिए आवंटन जीडीपी के मात्र 0.3 प्रतिशत के बराबर है।
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राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने स्वास्थ्य बजट को वर्ष 2025 में 2.5 प्रतिशत तक ले जाने के लिए जो रोडमैप तैयार किया था, उसके अनुसार वर्ष 2020-21 में केंद्र सरकार का स्वास्थ्य बजट 1.24 लाख करोड़ रुपए का होना चाहिए था, जबकि इस वर्ष का बजट अनुमान मात्र 69,234 करोड़ रुपए का है। इस दृष्टि से देखें तो मोदी सरकार के वर्ष 2020-21 के बजट में लगभग 94 प्रतिशत की या लगभग 55,000 करोड़ रुपए की कमी है।
केंद्र सरकार के स्वास्थ्य कार्यक्रमों में सबसे अधिक चर्चित आयुष्मान भारत (प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना) रहा है। इसके लिए साल 2018-19 के बजट में मूल प्रावधान 6,400 करोड़ रुपए था। पर आश्चर्य की बात है कि इस सबसे प्रचारित कार्यक्रम के बजट को संशोधित अनुमान तैयार करते समय उपेक्षित कर दिया गया और संशोधित अनुमान मात्र 3200 करोड़ रुपए रखा गया। अब वर्ष 2020-21 क लिए बजट अनुमान फिर 6400 करोड़ रुपए रखा गया है।
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वहीं, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना भी अब स्वास्थ्य मंत्रालय के कार्यक्षेत्र में है। इस पर साल 2017-18 में 456 करोड़ रुपए खर्च किया गया। 2019-20 के बजट अनुमान में यह मात्र 156 करोड़ रुपए पर सिमट गया। अब फिर 2020-21 के बजट में इसे मात्र 29 करोड़ रुपए पर सिमटा दिया गया है। इस तरह तो यह योजना लगभग समाप्त ही कर दी गई है। पर प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना में जरूर उल्लेखनीय वृद्धि हुई है जो स्वागत योग्य है।
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पिछले वर्ष के बजट अनुमान से इस वर्ष के कुल स्वास्थ्य बजट की तुलना करें तो कुल वृद्धि बहुत कम है, जो संभवतः महंगाई के असर को भी पूरा नहीं कर सकती है। बजट में एक ओर भारत में डाक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की कमी की बात की गई है तो दूसरी ओर उन्हें विदेश में कार्य करने के लिए जरूरी प्रशिक्षण की भी बात की गई है।
कुल मिलाकर स्वास्थ्य और स्वास्थ्य सेवाओं की दृष्टि से वर्ष 2020-21 का मोदी सरकार का बजट लोगों की उम्मीदों और देश की जरूरतों पर खरा नहीं उतर पाया है। आशा है कि संशोधित अनुमान तय करते समय कुछ महत्त्वपूर्ण आवंटनों को बढ़ाने के प्रयास किए जाएंगे।
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