विचार

‘ग्रामीण भारत का बजट’: आंकड़ों की सच्चाई के आगे मोदी सरकार का दावा गलत 

2017-18 में ग्रामीण विकास मंत्रालय के लिए केन्द्रीय बजट 5.1 प्रतिशत था, जबकि इस वर्ष यह कम होकर 4.8 प्रतिशत है। जब ग्रामीण विकास मंत्रालय के बजट का हिस्सा कम हुआ है तो यह ग्रामीण भारत का बजट कैसे हुआ?

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 2018 के बजट को ग्रामीण भारत का बजट नहीं कहा जा सकता

केन्द्रीय सरकार का बजट आने से पहले यह बहुत चर्चा में था कि इन दिनों गांवों का दुख-दर्द बहुत बढ़ रहा है, इसलिए गांवों का दुख-दर्द कम करने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। बजट आने के बाद इसे इस रूप में प्रचारित भी किया गया कि इसमें ग्रामीण भारत पर विशेष ध्यान दिया गया है। पर यदि तथ्यात्मक पड़ताल की जाए तो यह प्रचार तथ्यों की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है।

यदि हम ग्रामीण विकास मंत्रालय के बजट को देखें तो पिछले वर्ष के बजट का संशोधित अनुमान 110874 करोड़ रुपए था, जबकि इस वर्ष का प्रस्तावित बजट 114915 करोड़ रुपए का है। दूसरे शब्दों में 4000 करोड़ रुपए से भी कम की वृद्धि हुई है यानी 4 प्रतिशत से भी कम की वृद्धि है जो महंगाई की भरपाई के लिए भी पर्याप्त नहीं है। इतनी कम वृद्धि के आधार पर भला हम इसे ग्रामीण भारत की ओर विशेष झुकाव वाला बजट कैसे कह सकते हैं?

इतना ही नहीं, यदि ग्रामीण विकास मंत्रालय के बजट को हम केन्द्रीय कुल बजट के हिस्से के रूप में देखें तो वर्ष 2017-18 में यह हिस्सा 5.1 प्रतिशत था, जबकि इस वर्ष यह कम होकर 4.8 प्रतिशत है। जब केन्द्रीय बजट की कुल राशि में ग्रामीण विकास मंत्रालय के बजट का हिस्सा कम हुआ है तो यह ग्रामीण भारत का बजट कैसे हुआ?

अब हम यदि कृषि ( किसान कल्याण) मंत्रालय के बजट को देखें तो इसमें पहली नजर में तो थोड़ी सी वृद्धि नजर आती है, पर यह महंगाई का असर निकालने के बाद बहुत मामूली ही है। इतना ही नहीं, यदि हम केन्द्रीय बजट और जीडीपी के हिस्से के रूप में देखें तो वर्ष 2014-15 से इस वर्ष तक कोई उल्लेखनीय वृद्धि नजर ही नहीं आती है।

साफ पेयजल हमारे गांवों के लिए बड़ा मुद्दा है और इस वर्ष में पहले से ही पेयजल संकट के विषय में कई चेतावनियां मिल रही हैं। ग्रामीण पेयजल के लिए प्रमुख योजना है राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम। इस वर्ष इसका बजट तो बहुत बढ़ना चाहिए था पर वास्तविकता बहुत अलग है। पिछले वर्ष इस योजना का संशोधित बजट 7050 करोड़ रुपए था। इस वर्ष इसे बढ़ाने के स्थान पर कम कर 7000 करोड़ रुपए कर दिया गया है।

ग्रामीण क्षेत्रों में इन दिनों सबसे प्रचार की योजना है स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण), इसके बारे में इतने बड़े-बड़े दावे है, इसकी बड़ी कार्य योजनाएं हैं, तो इसका बजट तो जरूर ही बढ़ना चाहिए था, पर आंकड़े तो कुछ और ही कहते हैं। पिछले वर्ष इसका संशोधित बजट 16948 करोड़ रुपए था। इस वर्ष के बजट के आवंटन को कम कर 15343 करोड़ रुपए कर दिया गया है।

दूर-दूर के गांवों को बिजली उपलब्ध करवाने के लिए आॅफ ग्रिड विकेंद्रित शाश्वत ऊर्जा का कार्यक्रम (शाश्वत और नई ऊर्जा मंत्रालय के अंतर्गत) विशेष उपयोगी है। इसका संशोधित बजट पिछले वर्ष 1121 करोड़ रुपए था जिसे इस वर्ष कम कर 1037 करोड़ रुपए कर दिया गया है।

इस तरह स्पष्ट है कि दावे चाहे कुछ भी किए जाएं, पर इस वर्ष के केन्द्रीय बजट को ग्रामीण भारत का बजट या गांवों के प्रति विशेष रुझान रखने वाला बजट नहीं कहा जा सकता है।

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