शुजात बुखारी की हत्या का भी एक कारण था, यह उससे कतई असंबद्ध बाद की घटना, यानी जम्मू कश्मीर में सरकार से खुद को अलग करने के भारतीय जनता पार्टी के फैसले से स्पष्ट हो गया। बीजेपी के नेताओं ने पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ अपना गठबंधन तोड़ने की घोषणा करते हुए शुजात के क़त्ल को भी वैसी घटनाओं में शुमार किया जिनसे उसे सरकार से बाहर आने को बाध्य होना पड़ा।
शुजात बुखारी के क़त्ल या घाटी में खतरनाक तरीके से बढ़ रही हिंसा के लिए क्या सिर्फ पीडीपी को जिम्मेवार ठहरा कर बीजेपी अपनी जवाबदेही से मुक्त हो सकती है? क्या शुजात बुखारी और औरंगजेब के खून के छीटों से उसका दामन पाक रहेगा? बीजेपी ने अभी सरकार से अलग होकर और घाटी की दुर्दशा से पल्ला झाड़कर यह साबित किया है कि वह दरअसल एक गैरजिम्मेवार और कायर राजनीतिक दल है। अपने सहयोगियों को सबसे कठिन समय में अकेला और असुरक्षित छोड़ देने में उसे कोई हिचकिचाहट नहीं होती। और वह अपने किए से, अपने अतीत से भी खुद को आज़ाद कर लेती है।
जम्मू कश्मीर की सरकार से निकलने का बीजेपी का निर्णय इतना पारदर्शी है कि हर कोई जानता है कि यह 2019 के लोकसभा चुनाव का ध्यान में रखकर किया गया है। इसे छिपाने की कोशिश बीजेपी भी नहीं कर रही। जम्मू कश्मीर के पूर्व उपमुख्यमंत्री कविंदर गुप्ता ने स्वीकार किया कि पार्टी ने तय किया कि गठबंधन जारी रखने से आगामी चुनाव में पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि वे चूंकि लोकसभा चुनाव में पिछली बार की तरह की जीत दुहराना चाहते हैं, वे नहीं चाहते कि विपक्ष को यह मौक़ा मिले कि वह जम्मू कश्मीर में सरकार की नाकामी को बीजेपी की असफलता के तौर पर पेश कर सके।
सरकार से निकलने के निर्णय की सुविधा यह है कि अब तक जो कुछ भी हुआ, उसके लिए अब सिर्फ महबूबा मुफ्ती को जवाब देना पड़ेगा।
बीजेपी या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नज़रिया जम्मू कश्मीर के बारे में कितना विभाजनकारी है, यह इस निर्णय का ऐलान करने वाली प्रेस कांफ्रेंस से भी जाहिर है। उसमें बीजेपी के प्रतिनिधि ने, जो पहले और अंत में एक स्वयंसेवक ही हैं, कहा कि इस सरकार के कार्यकाल में जम्मू और लद्दाख के हितों की अनदेखी हो रही थी, इसलिए भी वे इसका हिस्सा नहीं रह सकते थे। खुद को सिर्फ जम्मू और लद्दाख के लिए जवाबदेह साबित करने के पीछे फिर एक अत्यंत संकीर्ण उद्देश्य है जिसमें जम्मू और लद्दाख भी साधन या इंधन मात्र हैं। बीजेपी की सहानुभूति कोई इन इलाकों की जनता के प्रति हो, ऐसी गलतफहमी इन इलाकों के लोगों को नहीं होनी चाहिए। यह पूछा जाना चाहिए कि इन तीन सालों में बीजेपी ने जम्मू और कश्मीर के बीच कुरबत लाने के लिए क्या किया है।
जम्मू कश्मीर के मामले में, जैसे और सभी मामलों में, बीजेपी नाकाम साबित हुई है और अब उस नाकामी पर पर्दा डालने के लिए वह कश्मीर की बलि चढ़ाने की क्रूरता पर उतर आई है। लेकिन यह कहना शायद गलत है। यह सरकार ही एक धोखा थी और उसका मकसद जम्मू-कश्मीर की जनता का हित नहीं था, बल्कि अपनी राजनीतिक पूंजी में बढ़ोत्तरी के लिए बीजेपी उसमें शामिल हुई थी। साथ ही, जैसा उमर अब्दुल्ला और कांग्रेस पार्टी के नेता कह चुके हैं, यह पीडीपी की साख को ख़त्म करने का सबसे अच्छा तरीका था। अब पीडीपी बिलकुल बेआबरू होकर मैदान में है। जम्मू कश्मीर की सरकार को बीजेपी ने एक ट्रॉफ़ी की तरह पेश किया। सरकार के बनने पर एक प्रवक्ता ने उस वक्त कहा था कि देखिए, पीडीपी को हमने “को-ऑप्ट” कर लिया है। यह कहते हुए उनके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी।
यह सवाल तो बीजेपी से किया ही जाना चाहिए कि तीन सालों में प्रदेश में और हिंसा भड़काने के अलावा उसका हासिल क्या रहा? इन तीन सालों में कश्मीर की जनता की दूरी भारत से बढ़ती ही चली गई है। एक कश्मीरी ने कहा कि पहले लोग फौजी दस्तों को देखकर छुपने को भागते थे, अब वे उतनी ही तेजी से उन दस्तों की तरफ भागते हैं। पाकिस्तान दहशतगर्द तैयार कर रहा है और कश्मीर में भेज भी रहा है। लेकिन अब उससे कहीं बड़ी संख्या में स्थानीय युवा हथियार उठाने और जान देने को तैयार हो रहे हैं। कश्मीर में अब सिर्फ मौत गश्त लगा रही है।
भारत में जहां कहीं भी कश्मीरी हैं, उनके पास अपने घरों को भारत के बारे में बताने को कुछ भी ऐसा नहीं जिससे वह मुल्क उन्हें अपना लगे। जगह-जगह कश्मीरी छात्रों की बेइज्जती और उन पर हमलों की घटनाएं बीजेपी की सरकार के केंद्र और राज्य में आने के बाद बढ़ती चली गई हैं। इससे यह साफ है कि कश्मीरी जनता भारत के लोगों से किसी अपनेपन की उम्मीद नहीं कर सकती। भारत से कश्मीर का अलगाव अब एक खाई में तब्दील हो चुका है। बीजेपी की केंद्रीय सरकार, राज्य सरकार और खुद बीजेपी इसके लिए पूरी तरह जिम्मेवार है। उसने इस बीच भी, जब वह कश्मीर की सरकार में थी, भारत में कश्मीर विरोधी प्रचार जारी रखा, बल्कि उसे तेज ही किया।
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बीजेपी की संकीर्णता का एक घृणित उदाहरण था। हाल में कठुआ में एक नन्हीं बच्ची के साथ हुई क्रूरता और उसकी हत्या के प्रसंग में बीजेपी का बर्ताव। बच्ची के परिवार को इंसाफ दिलाने की मांग करने की जगह वह अभियुक्तों के पक्ष में उतर आई। उसी तरह एक कश्मीरी को जीप के आगे बांधकर गांव-गांव घुमानेवाले मेजर गोगोई को एक हीरो की तरह उसने पेश किया। क्षुब्ध बच्चों और युवाओं को, जो सेना या पुलिस पर पत्थरबाजी करके अपने गुस्से का इजहार करते हैं, राष्ट्रविरोधी की तरह पूरे देश के सामने पेश किया गया है।
कश्मीर को जमीन के एक टुकड़े की तरह देखना और उसे कश्मीरियों से साफ़ कर देना, यह है कश्मीर के प्रति बीजेपी का नजरिया। वह शायद यह सोच रही है कि जैसे श्रीलंका में तमिल प्रतिरोध को कुचल दिया गया, वैसे ही कश्मीर में कश्मीरियों को फौजी बूट रौंद डालेंगे। लेकिन हम सबको याद रखना चाहिए कि आज़ादी की चाह कभी भी पूरी तरह बुझाई नहीं जा सकती। हममें से कई लोग यह समझते हैं कि आखिर जब भारत सारी सुविधा देने को तैयार है तो फिर कश्मीरी आज़ाद क्यों होना चाहते हैं? वे यह नहीं जानते कि आज़ादी का जज़्बा किसी दुनियावी फायदे और सहूलियत से बंधा नहीं होता। वे गांधी को भी भूल जाते हैं। जब अंग्रेजों ने कहा कि उनके सुशासन के बिना भारत में मार काट मच जाएगी, गांधी ने उन्हें यही जवाब दिया था कि आप हमारी भलाई की फिक्र छोड़ दें, हमें हमारे हाल पर छोड़ दें। आप तो बस हमारी पीठ से उतर जाएं।
कश्मीरी भी अब भारत से यही कहते जान पड़ते हैं। अगर भारत बीजेपी को अपना प्रवक्ता बना लेगा तो कश्मीर को उससे जोड़ने वाला पतला धागा टूटने में देर नहीं लगेगी।
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