अब यह कोई ड्रग कारोबार में लगे लोगों, अपराधियों या भ्रष्ट नौकरशाहों की लड़ाई नहीं रह गई है। महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक ने पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के अंडरवर्ल्ड से संबंधों का खुलासा कर इसे दूसरे स्तर पर पहुंचा दिया है और यह राज्य में भारतीय जनता पार्टी के लिए विनाशकारी हो सकता है।
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पिछले दो साल में कई लोगों को आश्चर्य हुआ कि आखिर, फडणवीस हताशा में क्यों रह रहे हैं और बीजेपी के सत्ता गंवाने से पहले ही उन्हें मुख्यमंत्री-पद से क्यों नहीं हटा दिया गया। निश्चित तौर पर, यह सिर्फ महात्वाकांक्षा का मसला नहीं है- उन्हें छिपाने के लिए बहुत कुछ था और न सिर्फ वह मुख्यमंत्री कार्यालय में बने रहने के आकांक्षी थे बल्कि इस पद पर रहते हुए वह गृह विभाग को भी अपने हाथ से निकलने देना नहीं चाहते थे। निश्चित तौर पर मलिक ने जो खुलासे किए हैं, वे अब गृह विभाग के लोगों की तरफ से ही लीक किए गए लगते हैं।
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एनसीपी में गुस्से की वजह भी है। अनिल देशमुख एनसीपी नेता हैं। वह महाविकास अघाड़ी सरकार में गृह मंत्री थे। उन दिनों फरार पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह ने आरोप लगाया था कि देशमुख ने मुंबई पुलिस के सचिन वाझे से हर महीने होटलों और बार मालिकों से 100 करोड़ रुपये लेकर उन्हें देने को कहा था। बंबई हाईकोर्ट ने इस मामले की सीबीआई जांच कराने का आदेश दिया। इसके बाद देशमुख ने मंत्री-पद से इस्तीफा दे दिया। अब केन्द्र सरकार प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के जरिये भी उन्हें परेशान कर रही है। वह अभी ईडी की हिरासत में हैं। माना जाता है कि देशमुख पर इस किस्म के आरोप भाजपा के इशारे पर लगाए गए ताकि उद्धव ठाकरे सरकार को गिरा दिया जाए।
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सोशल मीडिया के जरिये नवाब मलिक पर भले ही तरह-तरह के आरोप लगाने की कोशिश की जा रही हो, उनके खिलाफ ऐसा कुछ भी ठोस नहीं है कि केन्द्रीय एजेंसी उन्हें निशाना बना सके। चूंकि मलिक मुसलमान हैं इसलिए उन पर अंडरवर्ल्ड संबंधों का आरोप लगाना आसान था। फडणवीस ने वही किया। लेकिन मलिक ने पलटवार करते हुए फडणवीस को ही लपेटे में ले लिया। उन्होंने फडणवीस के स्थानीय डॉन से संबंधों के साथ जाली नोट कारोबार में मदद करने तक का आरोप लगाया। फिल्मस्टार शाह रुख खान के बेटे आर्यन खान के नशीले पदार्थ लेने के मामले से साफ है कि भाजपा के अपराधियों से संबंध रहे हैं। इसलिए स्थानीय डॉन से संबंधों के आरोपों से फडणवीस को बहुत फर्क पड़ता नहीं दिख रहा। लेकिन लगता है कि फडणवीस के कद को उनकी ही पार्टी के ऐसे लोग छोटा करने में लगे हुए हैं जो इस बात से दुखी रहे हैं कि फडणवीस खुद को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बाद सबसे महत्वपूर्ण नेता के तौर पर क्यों प्रोजेक्ट करते रहे हैं। असल में, यह नारा शाह को भी लगातार खटकता रहा हैः वहां नरेन्द्र, यहां देवेन्द्र। इस नारे में शाह को कोई तवज्जो नहीं दी गई है। इन सब मामले को नजदीक से देखने-जानने-समझने वाले सूत्रों ने बताया कि 2014 में संघ अपने विश्वस्त नितिन गडकरी को प्रधानमंत्री नहीं बनवा पाया और अगले लोकसभा चुनावों तक वह 75 साल के हो जाएंगे, तो वह फडणवीस की पीठ पर हाथ रख रहा है। इसके अतिरिक्त जज लोया की जिन रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हुई, उसके बारे में फडणवीस को जानकारी है। पार्टी नेतृत्व इस वजह से भी फडणवीस के साथ छेड़छाड़ नहीं कर पा रहा है, भले ही वह यहां पार्टी में ही अलोकप्रिय हो गए हों। इन सबका लाभ फडणवीस को मिल रहा है। राज्य भाजपा सूत्रों का ही कहना है कि कुल मिलाकर, इन सब वजहों से राज्य में पार्टी ही कमजोर होती जा रही है और इन सबका पार्टी का राज्य और केन्द्र के भविष्य पर असर पड़ सकता है।
लेकिन असली सवाल यह है कि क्या तब भी पार्टी का केन्द्रीय नेतृत्व फडणवीस को इसी तरह तवज्जो देता रहेगा?
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