द स्टेट ऑफ़ द वर्ल्डस बर्ड्स नामक रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व में पक्षियों की संख्या कम हो रही है, और हरेक आठ प्रजातियों में से एक प्रजाति पर विलुप्त होने का संकट है। विलुप्त होने की तरफ बढ़ती प्रजातियों में बहुत सारी सामान्य प्रजातियां हैं। पूरी दुनिया में कृषि का अभूतपूर्व विस्तार वर्त्तमान में पक्षियों के लिए सबसे बड़ा खतरा है। यह रिपोर्ट हाल ही में इंग्लैंड की एक संस्था बर्ड लाइफ इंस्टिट्यूट ने प्रकाशित की है। यह संस्था हरेक पांच वर्ष में पक्षियों की संख्या पर एक रिपोर्ट प्रकाशित करती है।
रिपोर्ट के अनुसार कृषि में विस्तार के बाद पक्षियों को वनों के कटने, हमलावर पक्षियों और जानवरों, शिकार, जलवायु परिवर्तन और विकास से मुख्य खतरे हैं। हरेक पांच वर्षों बाद जब यह रिपोर्ट प्रकाशित की जाती है, पहले से अधिक प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर पहुंच जाती हैं। अब इसकी दर पहले से तेज हो गयी है। लगभग एक दशक पहले तक पर्वतों पर ऊंचाई पर या किसी सुदूर टापू पर रहने वाले पक्षी ही विलुप्त होते थे, पर अब तो बहुत सारी प्रजातियां, जो हमारे आसपास रहती हैं, भी विलुप्त होती जा रही हैं या फिर उनकी संख्या में तेजी से कमी आ रही है।
पक्षियों की सारी प्रजातियों में से 40 प्रतिशत में कमी आ रही है, 44 प्रतिशत प्रजातियों की संख्या स्थिर है, 7 प्रतिशत की संख्या बढ़ रही है और 8 प्रतिशत प्रजातियों की सूचना उपलब्ध नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार कुल 1469 प्रजातियां ऐसी हैं जिनपर विलुप्त होने का संकट है - इनमें से 74 प्रतिशत कृषि के विस्तार के कारण, 50 प्रतिशत वनों के कटने के कारण, 39 प्रतिशत दूसरे जंतुओं या पक्षियों के कारण, 35 प्रतिशत शिकार के कारण, 33 प्रतिशत जलवायु परिवर्तन के कारण और 28 प्रतिशत मानवीय गतिविधियों के कारण संकट में हैं। पक्षियों की कुल ज्ञात 10996 प्रजातियों में से 13 प्रतिशत यानी 1469 प्रजातियों पर संकट अधिक है, और ये प्रजातियां विलुप्त होने की दिशा में तेजी से बढ़ रही हैं।
Published: undefined
पक्षियों का शिकार भी बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। पक्षियों की सबसे अधिक विविधता भूमध्य सागर के क्षेत्र में है और इस क्षेत्र में हरेक वर्ष लगभग 120 लाख से 380 लाख के बीच पक्षी मारे जाते हैं। अमेरिका में पहले पैसेंजर पिजन बहुत सामान्य थे, हरेक जगह मिलते थे, पर 1994 में ये विलुप्त हो गए। येलो ब्रेस्टेड बंटिंग पहले यूरोप और एशिया में हरेक जगह पाए जाते थे, अब इनका दायरा 5000 किलोमीटर से भी कम रह गया है और वर्ष 1980 के बाद से इनकी संख्या में 90 प्रतिशत से अधिक गिरावट आयी है। इनका मांस विशेष चीनी व्यंजनों में इस्तेमाल किया जाता है इसी लिए बड़े पैमाने पर इनका शिकार किया जाता है। स्नो आउल, पफ्फिंस और गिद्धों की अनेक प्रजातियां, जो पहले बहुत सामान्य थीं और हरेक जगह मिलती थीं, अब विलुप्त हो रही हैं। अनेक प्रजातियों की संख्या में पिछले एक दशक के दौरान ही 90 प्रतिशत से अधिक की कमी आ गयी है। जलवायु परिवर्तन और अत्यधिक मछलियों के शिकार के कारण महासागरों के आसपास रहने वाले पक्षियों की प्रजातियां संकट में हैं। रिपोर्ट के अनुसार, वैज्ञानिक अब पक्षियों को बचाने में सक्रिय हैं और कम से कम 25 ऐसी प्रजातियां हैं, जिन्हें वैज्ञानिकों ने विलुप्त होने से पहले ही बचा लिया।
Published: undefined
यूनिवर्सिटी ऑफ़ एक्सटर और ब्रिटिश ट्रस्ट फॉर ओर्निथोलोजी द्वारा संयुक्त तौर पर किये गए एक अध्ययन के अनुसार शहरी क्षेत्रों में, विशेष तौर पर गरीब इलाकों में, मधुर आवाज वाले पक्षी कम होते हैं और परेशान करने वाले पक्षी अधिक। यह अध्ययन जर्नल ऑफ़ एप्लाइड इकोलॉजी के नए अंक में प्रकाशित किया गया है। अध्ययन के अनुसार, शहरों में प्रतिव्यक्ति पक्षियों की संख्या ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा कम होती है, इनमें भी जो पक्षी अच्छे लगते हैं वे बहुत कम होते हैं। हरे-भरे स्थानों पर पक्षियों की संख्या शहरों की अपेक्षा 3.5 गुना अधिक होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, जब आपके सामने तरह-तरह की चिड़िया होती हैं या आप उनका कलरव सुनते है, तब आपका तनाव, उदासी और अवसाद ख़त्म हो जाता है। यूनिवर्सिटी ऑफ़ एक्सटर में वैज्ञानिक डॉ डेनियल कॉक्स के अनुसार, यदि मीठा बोलने वाली चिड़ियों की संख्या प्रतिव्यक्ति 1.1 से अधिक होती है तब लोग तनाव कम महसूस करते हैं।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined