विचार

पीएम मोदी ट्रंप से दोस्ती निभाने के चक्कर में करने जा रहे बड़ी भूल? इस समझौते से टूट जाएगी किसानों की कमर

कोविड की महामारी और चीन तथा मैक्सिको के साथ व्यापार युद्ध झेल रहे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ अपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दोस्ती निभाने का खामियाजा अपने यहां के किसानों और पशुपालकों को भुगतना पड़ रहा है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

कोविड की महामारी और चीन तथा मैक्सिको के साथ व्यापार युद्ध झेल रहे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ अपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दोस्ती निभाने का खामियाजा अपने यहां के किसानों और पशुपालकों को भुगतना पड़ रहा है।

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में बमुश्किल 100 दिन बचे हैं। ज्यादा संकेत तो इसी बात के हैं कि ट्रंप दोबारा पद पर नहीं आ रहे। इसकी दो बड़ी वजहें हैं: एक तो यही कि कोविड-19 को जिस तरह उन्होंने हलके में लिया और लोगों की बड़ी संख्या में जान गई। दूसरा कारण यह है कि चीन और मैक्सिको ने जिस तरह के अवरोध खड़े किए, उनसे अमेरिकी डेयरी उत्पादों की कीमतें अचानक तेजी से गिर गईं। इस वक्त वहां चीज-जैसे उत्पादों का भंडार जितना ज्यादा हो गया है, उतना कभी नहीं था। अमेरिकी बेरोजगारी दर काफी ऊंची हो गई है और ट्रंप प्रशासन के पसीने छूटे हुए हैं।

लेकिन पिछले कुछ वर्षों के दौरान अमेरिका ने कच्चे तेल से लेकर डेयरी उत्पादों तक को लेकर भारत की बांहें मरोड़ रखी हैं। आगे होने वाले व्यापार समझौतों के विवरण भी सामने नहीं आ रहे, हालांकि भारतीय और अमेरिकी अफसरान दावा कर रहे हैं कि यह समझौता दोनों ही देशों के लिए ‘फायदेमंद’ है। ऐसी ही हालत की वजह से कृषि और नीति विश्लेषक देविंदर शर्मा ने केंद्रीय व्यापार मंत्री पीयूष गोयल से यह सवाल पूछना लाजमी समझा है किः ‘अगर अमेरिका के साथ व्यापार समझौता लगभग तैयार है, तो क्या, पीयूष गोयल जी, एक देश के तौर पर हमें इसपर पहले विचार नहीं करना चाहिए? शायद लोग बेहतर सुझाव दे सकेंगे।’

मोदी-ट्रंप झप्पियां अपनी जगह हैं, भारत में विशेषज्ञों को आशंका है कि इन समझौतों की वजह से करीब 16 करोड़ छोटे और सीमांत किसानों को भारी कीमत चुकानी होगी। भारतीय कृषि क्षेत्र को फायदा पहुंचाने के नाम पर इस तरह के व्यापार समझौते के लिए आधार तैयार किए जा रहे हैं। इसके लिए हाल में तीन अध्यादेश लागू किए गए हैं। इनके जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) व्यवस्था खत्म की जा रही और सबकुछ बाजार पर छोड़ा जा रहा है। यह सब साफ तौर से उस व्यापार समझौते को ध्यान में रखकर है जिसपर भारत और अमेरिका हस्ताक्षर करने ही वाले हैं। जिन विशेषज्ञों से हमने बात की, उनका कहना है कि यह समझौता साफ तौर पर दोनों देशों के बीच व्यापार असंतुलन को सुधारने के लिए नहीं बल्कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को चुनावों में अपनी गद्दी बचाने के लिए किसी तरह यह कहने का अवसर देने के लिए है कि देखो, अर्थव्यवस्था बचाने के लिए हम क्या लेकर आए हैं।

हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के किसान इन अध्यादेशों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं और एमएसपी की बहाली की कानूनी अधिकार के तौर पर मांग कर रहे हैं। जुलाई के तीसरे-चौथे सप्ताह में उन्होंने सांकेतिक विरोध के तौर पर अपने खेतों में ट्रैक्टर चलाए।

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समझौते के लिए पिछले दो साल के दौरान चल रही बातचीत का प्रमुख हिस्सा अमेरिका के लिए भारतीय डेयरी सेक्टर को खोलने के लिए है ताकि अमेरिका अपने उपादों को यहां डंप कर सके। दरअसल, अमेरिकी डेयरी उद्योग अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। यह ध्यान में रखने की बात है कि भारत ने चीन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड समेत 15 देशों के उस समूह में शामिल होने से पिछले साल मना कर दिया था जिसे हम क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (रीजनल कॉम्प्रिहेन्सिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप- आरसीईपी) के नाम से जानते हैं। दरअसल, उस वक्त ऐसा कहा गया था कि इसमें शामिल होने का मतलब है कि ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड अपने डेयरी उत्पादों को भारत में डंप कर देंगे और इसका भारत के डेयरी किसानों पर विपरीत असर होगा। अब, लद्दाख में चीन ने जिस तरह भारतीय इलाके पर कब्जा कर लिया है, उसके बाद भारत का रुख चीन के साथ किसी तरह की साझेदारी करने के खिलाफ है। एक अतिरिक्त तर्क यह दिया जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भरता का आह्वान किया हुआ है। लेकिन भारत अमेरिका को ‘नहीं’ कह पाने की स्थिति में नहीं है।

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप अपने यहां चुनावों से पहले यह समझौता चाहते हैं। उन्होंने अनुचित व्यापार तरीकों का आरोप लगाकर चार वर्षों से भारत पर लगातार दबाव बना रखा है। वह सार्वजनिक तौर पर मांग कर रहे हैं कि भारत अमेरिकी उत्पादों पर आयात शुल्क में कमी करे। उनकी शिकायत है कि भारतीय शुल्क दर दुनिया में सबसे ऊंची है। बल्कि उन्होंने भारत को ‘टैरिफ किंग’ तक कहा है। भारत ने हर्ले डेविडसन मोटरसाइकिलों पर शुल्क दर कम की- और इसकी सूचना देने के लिए मोदी ने खुद ही ट्रंप को फोन किया, लेकिन जिस व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने की संभावना है, उससे कई और अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क दर कम करने पड़ेंगे। यह कहना गलत नहीं होगा कि प्रधानमंत्री मोदी फिर ट्रंप के दबाव में आ गए हैं।

एक तर्क यह दिया जा रहा है कि कोविड-19 की वजह से चीन से अपने कारोबार समेट रही अमेरिकी कंपनियों को भारत में लाने के लिए ऐसा करना जरूरी है। पर ट्रंप ने चीन में काम कर रही और वहां से लौटने की इच्छुक कंपनियों से अमेरिका ही आने और भारत या अन्य किसी देश में न जाने की अपील सार्वजनिक तौर पर की है।

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साफ है कि ह्यूस्टन में हाउडी मोदी और अहमदाबाद में नमस्ते ट्रंप-जैसे भव्य आयोजनों और ट्रंप-मोदी के बीच कथित यारी-दोस्ती के चर्चेके बावजूद अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारतीय टेक कंपनियों या इनमें काम करने वाले लोगों के लिए थोड़ी भी रियायत कभी नहीं दिखाई। एच1बी वीजा पर प्रतिबंधों ने भारतीय टेक कंपनियों को सबसे अधिक प्रभावित किया है। भारत ने व्यापार बाधाएं खड़ी कर रखी हैं और अमेरिका-भारत व्यापार भारत को लाभ पहुंचाने के तरीके से तैयार किए गए हैं- ये शिकायतें करते हुए ट्रंप ऐसे समय में 3 बिलियन डॉलर के हथियार सौदों को आगे बढ़ा रहे हैं जब भारत रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा दे रहा है।

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अमेरिकी राष्ट्रपति की बातों को मान लेना बहुत भारी पड़ता रहा है। भारत के किसानों को डीजल की अधिक कीमत चुकानी पड़ रही है और आंशिक तौर पर ही सही, इसका कारण यह है कि अमेरिका इस बात पर जोर देता है कि भारत उसका ज्यादा खर्चीला कच्चा तेल खरीदे जबकि वह ज्यादा उचित दर पर मध्यपूर्व से इसे खरीद सकता है। अमेरिका से तेल लाने में एक महीने का समय भी लगता है। इस तरह के दबाव की वजह से ही, आखिरकार, भारत को ईरान से कम कीमत वाले कुछ दीर्घकालिक करारों को रद्द भी करना पड़ा।

ट्रंप ने हाल में भारत को ‘विकसित देश’ के तौर पर वर्गीकृत कर दिया और भारतीय कंपनियों के लिए सामान्य व्यापार प्राथमिकता (जेनरलाइज्डट्रेड प्रेफरेंस- जीएसपी) को वापस कर लिया। इसका मतलब है कि अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले हमारे जेवरात, रत्न पर वहां ज्यादा शुल्क लगेंगे। भारतीय स्टील पर भी ऊंचे शुल्क लगा दिए गए हैं। भारत अमेरिका से भारतीय उत्पादों पर जीएसपी वापस करने और निर्यातों को कम करने की मांग कर रहा है। अमेरिका ने अब तक इस मांग पर तवज्जो नहीं दी है। लेकिन संकेत ये हैं कि मोदी को अपना चेहरा बचाने का अवसर देने के लिए अमेरिका फिलहाल कुछ रियायतें देने का प्रस्ताव करे।

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