बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के मुख्य निर्माता मदन मोहन मालवीय ने 1929 के दीक्षांत समारोह के अपने संबोधन में भारतीय महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा के महत्व पर जोर दिया था। उसी समय उन्होंने अपने करीबी मित्र, सहयोगी और बीएचयू के लिए उनके साथ फंड जुटाने वाले मेरे परनाना और मेरी मां शिवानी के दादा को इस बात के लिए तैयार किया था कि वे अपने तीन पोते-पोतियों – दो लड़कियां और एक लड़का – को रविन्द्रनाथ टैगोर के शांतिनिकेतन में पढ़ने के लिए भेजें, ताकि वे एक सच्चे मुक्तिदायी शैक्षणिक माहौल में पल-बढ़ सकें। उनको इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने न सिर्फ अपने पोते-पोतियों को उत्तराखंड से एक दूर की जगह बोलपुर भेजा, बल्कि उन्होंने अपनी वसीयत में अपने पोतियों को भी भाईयों के साथ पारिवारिक विरासत के वारिस के तौर पर नामित किया। मेरी नानी (उनकी शादी पर मेरे परनाना ने खुद से बुनी हुई साड़ी उन्हें भेंट की थी) हमें बताती थीं कि कैसे जब मालवीय जी 1930 में आर्थर रोड जेल से निकले तो उन्होंने 50 हजार महिलाओं की एक सभा को संबोधित किया और उनसे कहा कि उन्हें निडर होना चाहिए और खुद की रक्षा करने में सक्षम होना चाहिए। उन्होंने हमारे नाना को बताया कि घर में भले ही आपका ब्राह्मण धर्म हो, लेकिन देश में सिर्फ आजादी का धर्म होना चाहिए और ब्रह्मांड में मानव धर्म होना चाहिए।
ऐसा तब हुआ था। और अब 3 सितंबर 2018 को मालवीयजी और मेरे परनाना के सपनों के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने तीन महीने के एक ट्रेनिंग कोर्स की शुरुआत की है जो पूरी तरह स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के उन मूल्यों के खिलाफ है जिनके आधार पर पुरखों ने इस विश्वविद्यालय को ढालना चाहा था।
विश्वविद्यालय के आईआईटी विभाग के वनिता इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन डिजाइन में एक डिप्लोमा कोर्स पढ़ाया जाएगा जो खासतौर से युवा महिलाओं को आत्मविश्वास से भरी और विपरीत परिस्थितियों में एडजस्ट करने वाली बहु बनना सिखाएगा, ताकि वे विवाह की जिम्मेदारियों और अपने सामाजिक कर्तव्य को बिना दबाव के पूरा कर सकें। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक, यंग स्किल्ड इंडिया के सीईओ नीरज श्रीवास्तव ने कहा कि इस कोर्स का उद्देश्य सामाजिक रूप से इस मुश्किल वक्त में एक खास जरूरत पर ध्यान देना है।
हमें यहां पाठकों को यह बताने की जरूरत नहीं है कि बनारस प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है जिन्होंने “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” अभियान के लिए निरंतर अपना समर्थन दिया है। ऐसा माना जा सकता है कि आदर्श बहु बनाने के लिए प्रस्तावित इस कोर्स को उनकी रजामंदी है।
एक साल पहले सितंबर में इसी विश्वविद्यालय की युवा छात्राओं ने कुलपति आवास पर एक ऐतिहासिक धरना दिया था। ये विरोध उनके रोजमर्रा के अपमान के खिलाफ था। कैम्पस के भीतर और बाहर पुराने नियमों के तहत उनके आने-जाने को लेकर कई तरह की पाबंदी थी और अंधेरे का लाभ उठाकर कई बाहरी तत्व उनसे अक्सर छेड़छाड़ करते रहते थे।
एक ट्वीट में डॉ विवेक तिवारी ने लिखा कि उनके दादा इस प्रतिगामी पहल को देखकर निश्चित रूप से कुढ़ जाते। उनके दादा उन कुछ लोगों में शामिल थे जिन्होंने 100 साल पहले इस प्रसिद्ध संस्थान को बनाने के लिए सार्वजनिक चंदा इकट्ठा करने में मदद की थी।
40 हजार छात्रों वाला बीएचयू एशिया के कुछ सबसे बड़े आवासीय विश्वविद्यालयों में एक है। लेकिन पिछले 4 सालों में यह लगातार संकट में बना रहा है। ऐसा कथित तौर पर इसलिए हुआ क्योंकि दक्षिणपंथी विचारकों ने इसे गैर-सेकुलर संकुचित हिंदू विश्वविद्यालय में तब्दील करने के लिए लगातार दबाव बनाया। मैग्सेसे अवार्ड विजेता संदीप पांडे को कैम्पस में आरएसएस की शाखा का विरोध करने के कारण निकाल दिया गया। उसके तुरंत बाद छात्राओं पर पाबंदी का मुद्दा उठा। उनसे जबरदस्ती हलफनामे पर हस्ताक्षर लिए गए कि वे विरोध-प्रदर्शन नहीं करेंगी, और न ही कैम्पस के बाहर सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों में हिस्सा लेंगी। वे मीट नहीं खाएंगी (छात्र खा सकते हैं) और न ही छोटे कपड़े या स्कर्ट वगैरह पहनेंगी जो भारतीय मूल्यों के खिलाफ माना जाता है। साइबर लाइब्रेरी के आग्रह को इसलिए ठुकरा दिया गया क्योंकि ये संदेह था कि लड़कियां पार्न फिल्में देखने के लिए इसका इस्तेमाल कर सकती हैं।
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एक ऐसे कैम्पस में जिसने शोषणकारी रीति-रिवाजों और लिंग रूढ़िबद्धता के छात्राओं के अपने अनुभवों को लगातार खारिज किया है, वह विश्वविद्यालय “मेरी बेटी मेरा अभियान” के नाम पर एक नई रूढ़िबद्धता स्थापित करने की ओर अग्रसर लग रहा है।
मालवीयजी ने अपने छात्रों से हमेशा कहा कि ज्ञान हमें मुक्त करता है - सा विद्या, या विमुक्तये। वे उन युवा छात्राओं को क्या कहते जो सिर्फ अपने पति के घर जाने और आदर्श बहु बनने के लिए वनिता इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन डिजाइन से यह कोर्स करेंगी?
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