कांग्रेस नेता राहुल गांधी एक बार फिर भारत की आत्मा को झकझोरने का वादा करने वाली यात्रा पर निकले हैं। इस बार यात्रा का नाम भारत जोड़ो न्याय यात्रा है। और यह सिर्फ एक पदयात्रा या टहलकदमी नहीं हैं, बल्कि न्याय के लिए धर्मयुद्ध है। सुदूरपूरव में मणिपुर से 14 जनवरी को शुरु हुई यात्रा करीब दो महीने चलते हुए 6,700 किलोमीटर की दूरी तय कर मुंबई पहुंचेगी। यह यात्रा देश की सबसे प्रभावशाली राजनीतिक हस्तियों में से एक के अदम्य साहस और भावना का प्रमाण है।
अभी एक साल पहले ही राहुल गांधी ने करीब 4080 किलोमीटर की कन्याकुमारी से कश्मीर तक की यात्रा पूरी की है। वह यात्रा दक्षिणी छोर से उत्तरी छोर तक थी, इस बार यात्रा का मार्ग पूरब से पश्चिम है।
राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा भारत के राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मोड़ की प्रतीक है। इस यात्रा के भारतीय राजनीति और उसके भविष्य के महत्व को समझने के लिए, तात्कालिक राजनीतिक लाभ से परे, इस यात्रा के गहरे निहितार्थों का विश्लेषण करना जरूरी है।
15 राज्यों से होते हुए 6,700 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय करने वाली यह यात्रा केवल एक राजनीतिक मार्च नहीं है, बल्कि भारत के सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करने वाली विभाजनकारी ताकतों के खिलाफ एक गहरा वृतांत भी है।
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अपने यात्रा मार्ग में भारत जोड़ो न्याय यात्रा लोकसभा की 355 सीटों यानी करीब 65 फीसदी निर्वाचन क्षेत्रों से गुजरेगी।
क्षेत्रीय विषमताओं और सांप्रदायिक तनावों से जूझ रहे देश में, यह यात्रा एक खंडित राष्ट्र को एक साथ जोड़ने के मजबूत इरादों और कोशिशों का प्रतिनिधित्व करती है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और ओडिशा जैसे राज्यों से गुजरते हुए राहुल गांधी की कोशिश एकता और न्याय के लिए एक स्पष्ट आह्वान है - सच्चे अर्थों में 'इंसाफ'।
राहुल गांधी चूंकि राजनेता भी हैं, इसलिए चुनावी संदर्भ में भी इस यात्रा के अहम मायने हैं। संभवत: यही कारण है की लोकसभा चुनावों से ठीक पहले यात्रा के केंद्र में 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश का प्रमुख युद्ध क्षेत्र भी शामिल है।
उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर लोगों से इस यात्रा के दौरान जुड़ना कांग्रेस में रणनीतिक बदलाव का संकेत भी है, जहां इसका लक्ष्य अपनी खोई हुई जमीन को फिर से हासिल करने के साथ ही लोगों की आकांक्षाओं और कष्टों को उजागर करना भी है। चूंकि लोकसभा चुनावों में अब चंद महीने का ही समय बचा है, ऐसे में यात्रा के दौरान विविध समुदायों के साथ सीधा संवाद संभावित रूप राजनीतिक समीकरणों को फिर से व्यवस्थित कर सकता है।
लेकिन, यात्रा का मूल उद्देश्य भारत जैसे देश में लोकतंत्र, न्याय और धर्मनिरपेक्षता की पुनर्स्थापना है, क्योंकि इन बुनियादी मूल्यों को बीते कई वर्षों से लगातार चुनौती दी जा रही है। देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी द्वारा इन बुनियादी सिद्धांतों का यात्रा से तालमेल संवैधानिक लोकाचार के प्रति इसकी प्रतिबद्धता को साबित करता है, जो भारत जैसे बहुलवादी समाज के लिए बेहद जरूरी हैं।
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यह यात्रा इस बात को भी याद दिलाती है कि भारत की ताकत इसकी विविधता और लोकतांत्रिक भावना में निहित है। लोकतंत्र, न्याय और धर्मनिरपेक्षता पर फोकस न केवल भारत के लोकतांत्रिक ताने-बाने को मजबूत करता है बल्कि इसके सतत विकास और शांति को भी भी प्रोत्साहित करता है।
भारतीय राजनीति में राहुल गांधी का महत्व उनकी पारिवारिक विरासत, युवाओं से जुड़ने की क्षमता, विपक्ष की प्रमुख आवाज के रूप में भूमिका, धर्मनिरपेक्षता और समावेशि की वकालत, कांग्रेस पार्टी को पुनर्जीवित करने के प्रयास और उनके अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण से भी जुड़ा है। उनके तौर-तरीके और नेतृत्व के प्रति लोगों की प्रतिक्रिया भारतीय राजनीति के उभरते परिदृश्य में प्रभावशाली घटक बनी हुई है।
राहुल गांधी सिर्फ नेहरू-गांधी परिवार की राजनीतिक विरासत को ही आगे नहीं बढ़ा रहे हैं, बल्कि उनका नेतृत्व ऐतिहासिक महत्व और भारत के युवाओं के लिए एक नए दृष्टिकोण के मिश्रण का प्रतिनिधित्व भी है।
एक ऐसे देश में जहां की आबादी का बड़ा हिस्सा 35 वर्ष से कम है, वहां रोजगार, शिक्षा और डिजिटल सशक्तिकरण जैसे मुद्दों को राहुल गांधी द्वारा का आगे बढ़कर उठाना महत्वपूर्ण है। इस कारण यह यात्रा युवाओं के साथ जुड़ने, विरासत की राजनीति और समकालीन चिंताओं के बीच की खाई को पाटने का एक महत्वपूर्ण मंच भी है।
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देश के लोकतंत्र को जीवंत बनाए रखने में विपक्षी के चेहरे के रूप में राहुल गांधी की भूमिका महत्वपूर्ण है। सत्तारूढ़ बीजेपी और उसकी बहुसंख्यकवादी राजनीति और नोटबंदी, जीएसटी और नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएए) जैसी नीतियों को उनकी सीधी चुनौती एक मजबूत लोकतांत्रिक प्रक्रिया की मिसाल हैं। इन मुद्दों पर अपनी बात रखते हुए वे एक वैकल्पिक नैरेटिव सामने रखते हैं, जो एक स्वस्थ राजनीतिक विमर्श के लिए महत्वपूर्ण है।
तेजी से बहुसंख्यकवादी प्रवृत्तियों की ओर बढ़ रहे राजनीतिक परिदृश्य में, धर्मनिरपेक्षता और समावेश की बात करने से देश के विभिन्न अल्पसंख्यक समुदायों को राहुल गांधी में उम्मीद की एक किरन नजर आती है। कांग्रेस पार्टी में उनकी भूमिका एक ऐसी राजनीति को आकार देने में महत्वपूर्ण है जो देश के विविध सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करता है।
भले ही भारत जोड़ो न्याय यात्रा को तात्कालिक तौर पर आम चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा हो, लेकिन इसका महत्व चुनावों से कहीं अधिक है। यह ध्रुवीकरण से कराह रहे देश स्वस्थ्य करने का एक आंदोलन है, विभाजन और नफरत की राजनीति को खत्म करने की दिशा में एक कदम है। यह पहल भारतीय राजनीति में एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक हो सकती है, जहां संवाद और समावेश विभाजनकारी शब्दाडंबर से आगे निकलती है।
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यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब भारत न केवल सामाजिक और धार्मिक विभाजन का सामना कर रहा है, बल्कि व्यापक आर्थिक विषमताओं और गंभीर बेरोजगारी संकट भी झेल रहा है। यह इन विभाजनकारी साजिशों पर प्रतिक्रिया भी है और एक ऐसे भारत का दृष्टिकोण सामने रखती है जो आपस में बंटे समाजों के बजाय एक एकजुट इकाई के रूप में खुद को पेश करता है।
भारत जोड़ो न्याय यात्रा राहुल गांधी के राजनीतिक अभियान से कहीं अधिक है; यह विभाजन की राजनीति के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक है और व्यापक ध्रुवीकरण के समय में एकता का आह्वान है। जैसा कि भारत अपने धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने और लोकतांत्रिक लोकाचार के लिए चुनौतियों से जूझ रहा है, यह यात्रा न्याय, समावेशिता और राष्ट्रीय एकता के महत्व को दोहराते हुए एक महत्वपूर्ण पहल के रूप में उभरती है।
चुनावी नजरिए से यह यात्रा कितनी कामयाब या नाकाम रही, यह तो भविष्य बताएगा, लेकिन पिछली भारत जोड़ो यात्रा की तरह ही इसने एक बार फिर राष्ट्रीय विमर्श को झकझोरा है, और लोगो के साथ ही देश की राजनीति को उन बुनियादी मूल्यों की याद दिलाई है जो इस देश को जोड़ने वाले हैं न कि बांटने वाले।
(अशोक स्वैन स्वीडन के उप्साला यूनिवर्सिटी में पीस एंड कन्फ्लिक्ट रिसर्च के प्रोफेसर हैं।)
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