हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ कोपेनहेगेन और यूनिवर्सिटी ऑफ लुंड के वैज्ञानिकों के संयुक्त दल ने एक विस्तृत अध्ययन कर बताया है कि मानव समाज के विकास के प्रारंभिक चरण से लेकर आज तक अधिकतर सत्ता अपने आप को सामान्य जनता से अलग करने के लिए और अपनी निरंकुशता को जनता की नजरों से दूर करने के लिए धर्म का सहारा लेती रही है। ऐसी हरेक सत्ता प्रजातंत्र से कोसों दूर होती है, जनता सामाजिक विकास से मरहूम रहती है, महिलाओं का शोषण होता है, सामाजिक असमानता बढ़ती है, अल्पसंख्यकों के अधिकार छीने जाते हैं और इन सबके बीच देश या समाज का मुखिया अपने आप को भगवान का प्रतिनिधि बता कर जनता को लूटता है और अपने आप पर उठते सवालों को ईश्वर का अपमान बनाता है।
यूनिवर्सिटी ऑफ कोपेनहेगेन में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर जेनेट सिन्डिंग बेन्त्जें के नेतृत्व में इस अध्ययन को किया गया है और इसे जर्नल ऑफ इकनोमिक ग्रोथ में प्रकाशित किया गया है। इस विस्तृत अध्ययन के लिए मध्य-युग के 1265 समाजों और वर्तमान के 176 देशों के कानूनों का विश्लेषण धार्मिक आधार पर किया गया है। इस अध्ययन के अनुसार धर्म की आड़ लेकर सत्ता तक पहुंच केवल मध्य-युग की ही बात नहीं है, बल्कि यह दौर आज तक चल रहा है। वर्तमान दौर में इसका वीभत्स स्वरुप सामने आ रहा है क्योंकि धर्म का खुलेआम इस्तेमाल अब तथाकथित धर्मनिरपेक्ष और प्रजातांत्रिक देश भी कर रहे हैं। लोकलुभावनवादी सत्ता के लिए धर्म का आवरण सबसे जरूरी होता है।
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जिन देशों में सामाजिक समानता अधिक होती है, उन देशों की तुलना में गहरी सामाजिक असमानता वाले देश के नागरिक ईश्वर पर 30 प्रतिशत अधिक भरोसा करते हैं। ईश्वर पर अधिक भरोसा करने वाले देशों में सामाजिक समानता और लैंगिक समानता कभी हो ही नहीं सकती है। ईसा पूर्व 1750 में बेबीलोन के राजा ने हाम्मुरबी कानून लागू किया जिसके तहत प्रजा को यह स्वीकार करने का आदेश था कि राजा पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि है और राजा का हरेक आदेश साक्षात ईश्वर का आदेश है। धर्म का सहारा राजनैतिक शक्ति को बढाने के लिए और समाज में विभाजन पैदा करने के लिए किया जाता है। ऐतिहासिक तौर पर धर्म का सहारा सत्ता द्वारा अपने नकारापन और कमियों को छुपाने के लिए लिया जाता है। पूरी दुनिया में धर्म के आधार पर क़ानून बनाए जाते हैं।
इस अध्ययन में पूरी दुनिया में धार्मिक आधार पर लागू किये जाने वाले कानूनों का विस्तृत आकलन किया गया है। पर, भारत जैसे देशों में धार्मिक आधार पर भले ही लिखित कानून न बनाए जाते हों, पर सत्ता द्वारा धार्मिक कट्टरता का प्रचार धार्मिक कानूनों वाले देशों से भी कई गुना अधिक किया जाता है। दरअसल धर्म के आधार पर सत्ता का आधार एक विभाजित समाज ही होता है। आप इसमें किसी धर्म की रक्षा नहीं करते या फिर उसे आगे नहीं बढ़ाते बल्कि केवल दूसरे धर्मों के विरुद्ध नफरत फैलाते हैं। हमारे देश में सत्ता प्रचारित यह धारणा जनता तक पहुंचा दी गई है कि भारत केवल हिंदुओं का देश है और हिंदुओं को इस्लाम और दूसरे धर्मों से खतरा है। हमारे देश में सत्ता में बैठे लोगों की खुशनसीबी है कि मीडिया जैसी कोई चीज इस देश में बची ही नहीं है। मीडिया के नाम पर जो आप न्यूज चैनल देखते हैं, या समाचार पत्र पढ़ते हैं वह तो महज सरकार का प्रचार तंत्र है जो बीजेपी के आईटी सेल की तरह झूठ और नफरत फैलाने का माध्यम है।
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वर्ष 2014 के बाद से विदेशों में, विशेष तौर पर अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में हिंदूवादी कट्टर और हिंसक समूहों का एक मजबूत जाल बिछाया गया है, इन पर करोड़ों रुपये खर्च किये जाते हैं और इनका काम है मुस्लिमों के विरुद्ध या फिर भारत सरकार की आलोचना करने वालों के विरुद्ध माहौल तैयार करना। जिस समय देश में किसान आन्दोलन कर रहे थे, उस दौर में कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में अनेक सिखों पर हिंसक हमले किये गए थे।
कनाडा में अनेक हिन्दू संगठनों को आरएसएस की तरफ से मुस्लिमों के विरुद्ध दुष्प्रचार और नफरत फैलाने के लिए आर्थिक मदद दी जाती है। अमेरिका में 11 सितम्बर 2001 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद अमेरिका, अनेक यूरोपीय देशों और ऑस्ट्रेलिया में अनेक मुस्लिम-विरोधी हिंसक संगठन पनपने लगे। इन संगठनों के अनेक प्रतिनिधि यूरोपियन यूनियन, अमेरिका और कनाडा के संसद में भी चुनाव जीत कर पहुंच चुके हैं। जम्मू और कश्मीर में धारा 370 समाप्त करने के बाद यूरोपियन यूनियन के संसद सदस्यों का जो प्रतिनिधिमंडल वहां का दौरा करने भारत आया था, उसमें अधिकतर सदस्य ऐसे ही थे।
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हिन्दू कट्टरपंथी हिंसक संगठनों और पश्चिमी देशों के धार्मिक हिंसक संगठनों में वर्ष 2014 के बाद से करीबी रिश्ते बन गए हैं- दोनों तरीके के संगठन मुस्लिमों के विरुद्ध नफरत फैलाने का काम करते हैं। सत्ता के स्तर पर भी अनेक कानून यही काम करते हैं। अमेरिका का मुस्लिम बैन कानून, भारत का सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट और कनाडा में क्यूबैक बिल 21 कुछ ऐसे ही कानून हैं। हाल में ही रमजान के दौरान कनाडा के मरखाम में एक मस्जिद पर हमला किया गया था, वहां नमाज पढ़ रहे लोगों को गालियां दी गईं, पवित्र कुरआन को फाड़ डाला गया और मस्जिद में जा रहे लोगों को वाहन से कुचलने का प्रयास किया गया। अनेक प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार यह कनाडा में कार्यरत हिंदी हिंसक संगठन का काम था।
हमारे देश में हिन्दू संगठनों द्वारा मुस्लिमों की हत्या, भीड़ द्वारा हिंसा और उनके घरों को जलाने जैसे मामलों पर पुलिस, प्रशासन और सत्ता केवल आंखें ही नहीं बंद करती हैं, बल्कि ऐसे मामलों को भड़काती भी हैं। बुलडोजर तो पिछले कुछ वर्षों से मुस्लिमों के विरुद्ध सत्ता का नया हथियार बन गया है। वर्ष 2019 में न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च में मस्जिद पर हमला और गोलीबारी, वर्ष 2017 में कनाडा के क्यूबैक में मस्जिद पर गोलीबारी और हाल ही में लन्दन में एक मुस्लिम परिवार के सभी सदस्यों की हत्या जैसी घटनाएं यह साबित करती हैं कि मुस्लिमों के विरुद्ध नफरत और हिंसा फैलाते संगठन हरेक देश में हैं और इन संगठनों में आपसी तालमेल भी है। इन संगठनों द्वारा यह प्रचारित किया जाता है कि पूरी दुनिया में आतंकवाद केवल मुस्लिमों द्वारा किया जाता है- पर तथ्य यह है कि मुस्लिमों का विरोध करते संगठनों द्वारा मुस्लिम आतंकवादी संगठनों की तुलना में कई गुना अधिक हिंसा की जाती है।
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भारत के हिन्दू संगठनों का पश्चिमी देशों के हिंसक संगठनों से बहुत गहरा रिश्ता है। यह रिश्ता, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म विशेष तौर पर ट्विटर पर स्पष्ट उजागर होता है। इनका आपसी सामंजस्य इतना बेहतर है कि दोनों तरीके के संगठन एक जैसे पिक्चर, एक जैसे कार्टून और एक जैसे ही मीम का भी इस्तेमाल करते हैं। वर्ष 2013 के बाद से हमारे देश में अचानक से लव जिहाद की चर्चा की जाने लगी, इस पर कानून बनाने लगे, हिन्दू संगठनों को इससे संबंधित हिंसा या हत्या की खुली छूट दे दी गई और अब तो ऐसे काल्पनिक विषय पर बनाई गई फिल्म केरला स्टोरी का प्रचार हमारे प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल का हरेक सदस्य खुलेआम कर रहा है। इस लव जेहाद से पश्चिमी देशों के हिंसक संगठन भी खूब प्रभावित हैं, इसका प्रचार करते हैं और यहां की काल्पनिक घटनाओं को अपने समाज के ढांचे में परिवर्तित कर उसका प्रचार करते हैं। कनाडा के ब्लॉगर रोबर्ट स्पेंसर तो जिहाद वाच के नाम से एक वेबसाइट चलाते हैं और इसकी पोस्टों को पसंद करने वालों में अनेक हिन्दू कट्टरवादी शामिल हैं। रोबर्ट स्पेंसर अपने पोस्ट में लव जिहाद को इस्लामिक स्टेट से जोड़ते हैं।
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हमारे प्रधानमंत्री जी और उनका पूरा मंत्रिमंडल लगातार ऐसी तथ्यविहीन फिल्मों का हरेक मौके पर प्रचार करता है, जिसका मकसद ही समाज में धार्मिक वैमनस्यता फैलाना है। पूरी की पूरी सत्ता एक धर्म के विरुद्ध लगातार जहर उगलने का काम करती है और मेनस्ट्रीम मीडिया इसमें पूरा सहयोग देता है। सत्ता के चहेते तथाकथित धर्म प्रचारक तो टीवी कैमरों के सामने तलवार और त्रिशूल उठाकर हिंसा की बात करते हैं, नारे लगाते हैं- इन नारों में पुलिस भी शामिल रहती है और न्यायालय ऐसे मामलों में अंधी और बहरी हो जाती है।
दुनिया में दूसरा कोई देश नहीं होगा जहां का मेनस्ट्रीम मीडिया लगातार धार्मिक प्रचार करता है, दूसरे धर्मों के प्रति जहर उगलता है। हमारे देश में भले ही ईशनिंदा का लिखित कानून न हो पर, यहां केवल इस आरोप के कारण जितने लोग सत्ता और पुलिस समर्थित भीड़ द्वारा मारे जाते हैं या जेलों में बंद किये जाते हैं- उतने दुनिया में कहीं नहीं किये जाते। दुनिया में कहीं भी सत्ता उन्मादी और हिंसक धार्मिक संगठनों की तरफदारी नहीं करती, पर हमारे देश में तो ऐसा लगातार किया जाता है।
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