विचार

राम पुनियानी का लेख: झूठे राष्ट्रवाद और धर्म पर छद्म श्रद्धा के नशे में झूमते गुंडों की फौज को सत्ता का संरक्षण

समाज में जैसे-जैसे असहिष्णुता बढ़ रही है, वैसे-वैसे असहमति के लिए स्थान कम होता जा रहा है. जो भी व्यक्ति शासकों की सोच से इत्तेफाक नहीं रखते, उन्हें चुन-चुन कर निशाना बनाया जा रहा है, क्योंकि हमलावरों को पता है कि शासक दल के उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होने देगा।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

17 अगस्त को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धा सुमन अर्पित करने आये स्वामी अग्निवेश पर बीजेपी मुख्यालय के बाहर हमला किया गया। वहां मौजूद भीड़ ने पहले उन पर भद्दी टिप्पणियां कीं और फिर उन पर हमला बोल दिया। भीड़ ‘भारत माता की जय’ और ‘देशद्रोही वापस जाओ’ के नारे लगा रही थी।

एक माह पहले, झारखण्ड के पाकुर में अग्निवेश पर हमला हुआ था। ऐसा बताया जाता है कि हमलावर, आरएसएस की विद्यार्थी शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के सदस्य थे। हमलावर काफी उग्र थे। शुक्र कि उन्हें गंभीर चोट नहीं लगी, लेकिन उनकी पगड़ी छीन ली गई और कपड़े फाड़ दिए गए। इस हमले को सही ठहराते हुए कई बीजेपी समर्थकों ने सोशल मीडिया पर अग्निवेश के एक भाषण का वीडियो जारी किया, जिसमें वे प्रधानमंत्री मोदी के इस दावे की आलोचना कर रहे हैं कि प्राचीन भारत में प्लास्टिक सर्जरी की तकनीक उपलब्ध थी और उसी का प्रयोग कर गणेश के शरीर पर हाथी का सिर लगाया गया था और यह भी कि कौरवों का जन्म स्टेमसेल टेक्नोलॉजी से हुआ था।

कथित तौर पर बताया गया कि अग्निवेश ने अमरनाथ यात्रा और मूर्ति पूजा पर हमला करते हुए कहा कि ‘बर्फानी बाबा’ एक प्राकृतिक प्रक्रिया से बनते हैं जिसमें स्टेललेकटाइट और स्टेललेगमाईट का जमा होना शामिल है। वीडियो में वे यह भी कहते हैं कि एक बार जब शिवलिंग का आकार नहीं बन सका था, तब बर्फ डाल कर उसे ठीक आकार दिया गया था। उन्होंने कुम्भ मेलों में अपने पाप धोने के लिए नदियों में नहाने की परंपरा की निंदा करते हुए कहा कि प्रदूषित नदियों में नहाने से कई तरह के रोग हो सकते हैं।

स्वामी अग्निवेश कई सामाजिक आंदोलनों का हिस्सा रहे हैं। जिनमें बंधुआ मजदूर मुक्ति मोर्चा शामिल है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्रसंघ के तत्वाधान में बंधुआ मजदूरी के नए स्वरूपों के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय अभियान में भी हिस्सा लिया है। सती प्रथा और कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध आंदोलनों में भी उनकी सक्रिय भागीदारी रही है। वे लम्बे समय तक आर्य समाज के सदस्य रहे हैं। उनके सामाजिक कार्यों को मान्यता देते हुए उन्हें अनेक पुरस्कारों से नवाज़ा गया है, जिनमें राईट लाइवलीहुड अवार्ड (2004) जिसे ‘वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार’ कहा जाता है, शामिल है। इसी वर्ष उन्हें राजीव गाँधी सद्भावना पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था। ऐसे अनेक मुद्दे हैं, जिन पर उनसे असहमत हुआ जा सकता है, जैसे उनकी वैदिक हिन्दू धर्म में आस्था. परन्तु इसमें कोई संदेह नहीं कि उन्होंने पददलितों के हितार्थ निरंतर काम किया है और बंधुआ मजदूरी, सती प्रथा और कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध उनकी लड़ाई प्रेरणास्पद है।

हिन्दू राष्ट्रवादी ब्रिगेड अब इस भगवाधारी स्वामी को निशाना बना रही है। उन पर हमला, उसी श्रृंखला का हिस्सा है, जिसकी शुरुआत डॉ दाभोलकर की हत्या से हुई थी। उसके बाद कामरेड गोविन्द पंसारे मारे गए, फिर डॉ कलबुर्गी और उनके बाद गौरी लंकेश। समाज में जैसे-जैसे असहिष्णुता बढ़ रही है, वैसे-वैसे असहमति के लिए स्थान कम होता जा रहा है। जो भी व्यक्ति शासकों की सोच से इत्तेफाक नहीं रखते, उन्हें चुन-चुन कर निशाना बनाया जा रहा है। चूंकि हमलावरों को पता है कि शासक दल के नेता न केवल उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होने देगें बल्कि वे उनकी प्रशंसा करेंगे इसलिए ऐसे लोगों की हिम्मत बढ़ रही है।

ज़रा कल्पना कीजिये. एक भगवाधारी स्वामी देश के पूर्व प्रधानमंत्री को अंतिम विदाई देने आता है और उसे अपमानित कर खदेड़ दिया जाता है। झूठे राष्ट्रवाद और अपने धर्म पर छद्म श्रद्धा के नशे में झूम रहे गुंडों की इस फौज को सत्ताधारियों का संरक्षण और समर्थन प्राप्त है। इन स्थितियों के लिए वे लोग सबसे ज्यादा ज़िम्मेदार हैं जो ऐसे तत्वों का समर्थन करते हैं, उन्हें प्रोत्साहित करते हैं और सबसे महत्वपूर्ण, ऐसी विचारधारा के पोषक हैं जो असहमति को देशद्रोह और धर्मद्रोह बताती है।

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सबसे आश्चर्य की बात यह है कि यह सब उस हिन्दू धर्म के नाम पर किया जा रहा जो विविधता को खुले मन से स्वीकार करता है। हम सब जानते हैं कि जिन धर्मों का एक पैगम्बर और एक पवित्र पुस्तक हैं, वे भी कई पंथों में विभाजित हो गए हैं। ईसाई धर्म में कैथोलिक हैं, प्रोटोस्टेंट हैं और पेंटाकोस्टल हैं तो इस्लाम में शिया, सुन्नी, अहमदिया और सूफी. सिक्ख, बौद्ध और जैन धर्मों में भी अनेक पंथ हैं।हिन्दू धर्म का तो न कोई पैगम्बर है, न कोई एक पवित्र पुस्तक, न संगठित पुरोहित वर्ग और ना ही निश्चित कर्मकांड। हिन्दू धर्म अनेक विविध परम्पराओं का मिश्रण है, जिनमें ब्राह्मणवाद, तंत्र, नाथ, सिद्धांत, शैव, वैष्णव और भक्ति शामिल हैं। विविधता, हिन्दू धर्म की आत्मा है। हिन्दू रहते हुए स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की और यह सिद्धांत प्रतिपादित किया कि हिन्दू धर्म मूलतः वेदों पर आधारित है।

हिन्दू धर्म के कुछ पंथों में मूर्तिपूजा की इज़ाज़त है तो कुछ प्रकृति पूजा, त्रिदेवतावादी और बहुदेवतावादी हैं और कई, चार्वाक की परंपरा में नास्तिक भी। कई अपने ईश्वर को मूर्तियों में देखते हैं तो कई के लिए ईश्वर अमूर्त है। स्वामी अग्निवेश की मान्यता है कि वेद ही हिन्दू धर्म का आधार हैं।

अग्निवेश को हिन्दू धर्म को अपनी तरह से समझने और जीने का हक़ है। यह अधिकार उनसे कोई नहीं छीन सकता। हिन्दू राष्ट्रवादियों के उन पर हमले, हिन्दू धर्म से प्रेरित नहीं हैं। वे राजनीति से प्रेरित हैं। हिन्दू राष्ट्रवादियों का हिन्दू धर्म से कोई लेनादेना नहीं हैं। वे तो हिन्दू धर्म की संकीर्ण व्याख्या कर हिन्दू पहचान का उपयोग अपने राजनैतिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए करना चाहते हैं।

हम उम्मीद करते हैं कि सरकार इस समाज सुधारक और उनके जैसे अन्य राजनैतिक-सामाजिक कार्यकर्ताओं को सुरक्षा उपलब्ध करवाएगी और तर्कवादी चिंतकों की हत्याओं का दौर रुकेगा। हत्यारों को कानून के अनुसार सजा दी जाएगी। हम सबको इस बात पर संतोष होना चाहिए कि जिस विचारधारा ने इन चिंतकों की हत्या की, उसके दो हमले (अग्निवेश और उमर खालिद) असफल हो गए. हमें यह प्रण करना चाहिए कि हम इन हत्यारों को असहमति के स्वरों को कुचलने नहीं देंगें।

(अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया) (लेखक आईआईटी, मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)

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