बीजेपी के शासन में रहे तीन राज्यों का भगवा ब्रिगेड से मुक्त होना और कांग्रेस के कमाल के प्रदर्शन ने इस मिथक को तोड़ दिया है कि कांग्रेस नहीं, सिर्फ सेकुलर क्षेत्रीय पार्टियां ही मोदी-शाह के नेतृत्व में बीजेपी के विजय रथ को रोक सकती हैं।
देश के राजनीति में नरेंद्र मोदी के बढ़े प्रभाव के पहले से राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के साथ-साथ गुजरात भी बीजेपी का मजबूत क्षेत्र माना जाता था। तो अगर यह भगवा पार्टी इन चारों राज्यों में बुरा प्रदर्शन करती है - इसमें पिछले साल गुजरात में हुआ चुनाव भी शामिल है – तो इससे साफ है कि संघ परिवार के भीतर जरूर कोई भीषण दिक्कत चल रही है।
यह परिणाम ऐसे समय आए हैं जब नरेंद्र मोदी अपने शासन के शिखर पर हैं और कांग्रेस अपने इतिहास के सबसे कमजोर क्षण में है।
दिन-रात बीजेपी के नेता कांग्रेस से देश को मुक्त कराने की बात करते हैं और पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल से लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी तक नेहरू-गांधी परिवार के प्रति हर तरह के अपशब्दों का प्रयोग करते हैं।
आज इन हिंदी भाषी प्रदेशों में बीजेपी पूरी तरह तितर-बितर हो चुकी है। उसकी तुलना में कांग्रेस नेतृत्व धीर-धीरे पार्टी का पुनर्निर्माण किया है और जोरदार वापसी की है।
अभी तक बीजेपी को कार्यकर्ता-आधारित पार्टी समझा जाता था। आज, नरेन्द्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी के चलते सबकुछ उलट गया है।
बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि कांग्रेस ने किसी दूसरी पार्टी से गठबंधन कर नहीं, बल्कि अकेले अपने दम पर ही उसे हरा दिया है।
हालिया विधानसभा चुनावों से पहले ही कई राज्यों से यह खबरे आने लगी कि बड़ी संख्या में युवा, खासकर पेशेवर कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि वे किसी एक सामाजिक समूह से नहीं आ रहे हैं, बल्कि अल-अलग जातियों-समुदायों से ताल्लुक रखते हैं।
यह बिहार और उत्तर प्रदेश में भी हो रहा है जहां पार्टी पिछले तीन दशकों से सत्ता से बाहर है।
अगर आने वाले महीनों में भी कांग्रेस संगठन से लोगों को जुड़ना जारी रहता है तो यह बीजेपी के लिए चिंता की बात होगी जो सीधे तौर पर 19 राज्यों में शासन कर रही है (तीन राज्यों में हुई हार से पहले)। यहां तक कि कई गैर-बीजेपी क्षेत्रीय पार्टियां भी इस घटनाक्रम को सावधानी के साथ देख रही हैं। इन क्षेत्रीय पार्टियों को पता है कि हालिया चुनावों में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन की वजह से बीजेपी के खिलाफ बनने वाले महागठबंधन में उसका कद बढ़ जाएगा।
इसके अलावा, इसने उन लोगों के सपनों को भी चकनाचूर कर दिया है जो एक गैर-बीजेपी, गैर-कांग्रेस संघीय मोर्चे की बात कर रहे थे। इसमें टीआरएस के नेता के चंद्रशेखर राव शामिल हैं और बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी हो सकते हैं क्योंकि ऐसे विश्लेषकों की कमी नहीं है जो यह सोचते हैं कि अगर बीजेपी बुरा प्रदर्शन करती है तो वे ऐसे किसी पहल से जुड़ सकते हैं।
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नतीजे आने से पहले केंद्रीय मंत्रीपरिषद् से उपेंद्र कुशवाहा का इस्तीफा और 11 दिसंबर को आए चुनाव नतीजों ने किसी और मोर्चे की योजना पर पानी फेर दिया है।
हालिया जीत से कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं को हौसला काफी बढ़ा है। उनके पास इसकी कई वजहें हैं। अगर बीजेपी जैसी मजबूत पार्टी कांग्रेस की इस बढ़ती जमीन से परेशान हो सकते है, तो उन क्षेत्रीय पार्टियों के लिए भी बड़ी चुनौती होगी जो ज्यादातर एक नेता के भरोसे चलते हैं।
नतीजों ने यह साफ कर दिया है कि न तो योगी और न ही जोगी इन चुनावों मे अपना असर दिखा पाए। जैसे ही बीजेपी के लिए बहुतायत में बुरी खबरें आना शुरू हुईं, उसे यह डर लगने लगा है कि संघ परिवार के लिए अभी और ‘बुरे दिन’ आने वाले हैं। राहुल गांधी को चुनाव के नतीजों का उत्सव मनाना चाहिए क्योंकि यह उनके पार्टी अध्यक्ष बनने के ठीक एक साल बाद आए हैं।
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