भारतीय जनता पार्टी वो संगठन है, जो देश में कोई ना कोई खुराफात करते रहने में यकीन रखती है। कभी खुद तो कभी संघ के खड़े किये संगठनो के जरीये देश का माहौल खराब बनाए रखने का काम चौबीस घंटे चलता रहता है। कभी लिंचिंग तो कभी कसाई खानों पर पाबंदी जैसी हरकतें पिछले चार सालों में आए दिन होती रहीं। अब जैसे-जैसे 2019 के लोकसभा चुनाव करीब आते जा रहे हैं वैसे-वैसे देश को हिंदू-मुस्लिम के नाम पर बांटने का काम शिद्दत र से तेज होता जा रहा है। बल्कि चुनाव जितने करीब आते जाऐंगे बीजेपी की नफरत की राजनीति उतनी ही तेज होती चली जाएगी। इसका ताजा उदाहरण असम है जहां बंगलादेशी शरणार्थियों की आड़ में हिंदू-मुस्लिम के बीच नफरत को हवा दी जा रही है।
असम में बंग्लादेशी शरणार्थियों का मुद्दा एक पुराना विवाद था। राजीव गांधी और मनमोहन सिंह सरकार ने इस विवाद को हल करने के रास्ते तलाश किए थे। फिर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में मनमोहन सिंह सरकार ने बाकायदा इस मामले को हल करने के लिए गाईड लाईन तैयार की थी, जिसका मकसद ये था कि इस विवाद को हल किया जाए ना कि इसे और उलझा कर उस को सांप्रदायिक रंग दिया जाए। लेकिन बीजेपी आखिर बीजेपी है, कांग्रेस और तमाम दूसरी धर्मनिरपेक्ष पार्टियों पर मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करने का इल्जाम लगाने वाली बीजेपी हमेशा खुद हिंदू वोट बैंक बनाने की राजनीति में व्यस्त रहती है। अपनी इसी रणनीति के तहत बीजेपी ने अपने अध्यक्षअमित शाह के नेतृत्व में असम के बंगलादेशी मुद्दे को हिंदू वोट बैंक बनाने की एक साजिश रच डाली जो अब देश के सामने एक गंभीर मुद्दा बन कर खड़ा हो गया है।
असम में एनआरसी के मसौदे की वजह से जो स्थिति पैदा हो गई है वो खतरनाक है। खबरों के मुताबिक असम में 40 लाख लोग भारत की नागरिकता से वंचित कर दिए गए हैं। ये एक बहुत ही खतरनाक स्थिति है। बल्कि ये एक साजिश है, जिसके जरीया संघ और बीजेपी दोहरी चाल चल रही है। पहले तो इसका मकसद बंगलादेशी खतरे के नाम पर खुद को हिन्दुओं के हितों की रक्षा करनेवाला साबित करने की योजना है। फिर जिस तरह अमित शाह ने संसद में विपक्ष पर वोट बैंक की राजनीति करने का आरोप लगाया, इससे वो पूरे विपक्ष को मुस्मिल समर्थक यानी हिंदू दुश्मन साबित करना चाहते हैं। वो इस अभियान को चुनाव तक हर रोज और तेज करते हुए पूरे देश को बंगलादेशी खतरे यानी मुस्लिम खतरे के नाम पर मुस्लिम विरोध की नफरत की आग में झोंकना चाहते हैं। फिर उस नफरत के माहौल में मोदी जी खुद हिंदू रक्षक का सहरा पहन हिंदूत्व वोट बैंक बना कर अगली बार फिर प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देख रहे हैं।
ये तो संघ और बीजेपी की चुनावी रणनीति है। लेकिन इस साजिश का एक दूसरा रुख भी है जो इस से भी ज़्यादा खतरनाक है। संघ का पुराना ख्वाब ये रहा है कि इस देश के अल्पसंख्यकों को दूसरे दर्जे का नागरिक बना दिया जाए। आजादी के बाद जवाहर लाल नहरू और बाबा साहब अंबेडकर के नेतृत्व में इस देश में जो संविधान बना उसने भारत के हर नागरिक को उसकी धर्म, जाति, लिंग के आधार पर किसी भेदभाव के बिना नागरिक अधिकार दिए। संघ हमेशा से इस देश पर हिन्दुओं के वर्चस्व में यकीन रखती है। और इस का हमेशा से ये यकीन रहा है कि मुस्लिम समुदाय जैसे अल्पसंख्यकों को इस देश में दूसरे दर्जे की नागरिकता मिलनी चाहिए। लेकिन आजादी के फौरन बाद आरएसएस आज की तरह शक्तिशाली संगठन नहीं था कि वो गांधी, नहरू और अंबेडकर जैसे कद्दावर नेताओं का खुल कर विरोध कर पाता। लेकिन अल्पसंख्यकों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने का उसका सपना कभी नहीं टूटा। मोदी के नेतृत्व में अब संघ अपना हर वो सपना पूरा करना चाह रहा है जो अभी तक अधूरा रह गया था।
मॉब लिंचिंग और कसाई खानों पर पाबंदी जैसे कदमों के जरीये अल्पसंख्यकों को डराने का काम कर उनको सामाजिक स्तर पर दूसरे दर्जे का नागरिक होने का एहसास दिलाया गया। ऐसे कदमों का मकसद ये था कि अल्पसंख्यकों को ये एहसास दिलाया जाए कि तुम्हारी जान (मोब लिंचिंग) और तुम्हारा माल (कसाई खानों जैसी कारोबार पर पाबंदी) हमारे रहम-ओ-करम पर है। लेकिन कानूनी तौर पर अल्पसंख्यकों और खासकर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने का काम बाकी बचा था। जब किसी नागरिक के वोट देने के अधिकार को खत्म कर दिया जाएगा या बांग्लादेशी के नाम पर उसकी नागरिकता ही खत्म कर दी जाएगी तो फिर वो दूसरे दर्जे का नागरिक बन कर ही रह जाएगा।
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गुजरात संघ की पहली प्रयोगशाला थी, जहां मोदी के हाथों राज्य को हिंदू राष्ट्र का मॉडल बनाया गया। असम को भी संघ अल्पसंख्यकों को बकायदा कानूनी और संवैधानिक तौर पर दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने की प्रयोगशाला के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है। लेकिन ये साजिश सिर्फ असम तक ही सीमित नहीं रहेगी। अभी कम से कम 5-6 राज्यों के बीजेपी अध्यक्षों ने मांग की है कि उनके राज्यों में जो बांग्लादेशी शरणार्थी मौजूद हैं, उनको बाहर किया जाए। जब असम में बांग्लादेशी शरणार्थी के नाम पर नाम पर हिन्दू नागरिकता के अधिकार से वंचित हो सकते हैं तो फिर उतर प्रदेश और बिहारी मुस्लमान मिनटों में बांग्लादेशी बन सकता है।
अफसोस कि असम में जो हो रहा है, वो सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो रहा है। यहां ये याद दिला दूं कि 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद भी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में ही गिरी थी। आगे-आगे देखिये होता है क्या !
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