अयोध्या पिछले तीन दशकों में भगवान राम का कम, हिन्दुत्व की राजनीति का अधिक प्रतीक हो गया है। यही कारण है कि इस वर्ष दीपावली के अवसर पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में सरकारी खर्च से बनाए गए ‘अयोध्या मंदिर’ में पूजा कर इस बात की घोषणा कर दी कि वह अब हिन्दुत्व के खुले सिपाही हैं। यह कम-से-कम मेरे लिए कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है क्योंकि जो संघ और उसकी रणनीति को समझता है वह यह भी समझता है कि अरविंद केजरीवाल शुरू से ही हिन्दुत्व के मोहरे थे। याद रखिए कि भ्रष्टाचार मिटाने का आंदोलन इस देश में सदा से संघ का कांग्रेस मिटाने का आंदोलन रहा है। और देश में जब-जब यह आंदोलन सफल रहा है, तब-तब बीजेपी को शक्ति मिली है और कांग्रेस को भारी क्षति पहुंची है। केजरीवाल संघ की उसी रणनीति का एक अटूट अंग हैं।
हम सब भली भांति अवगत हैं कि सन 2011 में भ्रष्टाचार मिटाने के नाम पर इस देश में जो अन्ना आंदोलन खड़ा किया गया था, वह भी देश एवं दिल्ली से कांग्रेस मिटाने का आंदोलन था। टू जी के नाम पर देश में जो हो-हल्ला हुआ था, वह एक आडंबर और खुला झूठ था। पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (एजी) विनोद राय ने अभी हाल में एक मुकदमे में माफीनामा देकर कहा कि उन्होंने अपनी पुस्तक में मनमोहन सिंह के बारे में जो बात लिखी थी, वह सत्य पर आधारित नहीं थी। यह सिद्ध करता है कि अन्ना आंदोलन एक आडंबर था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य भ्रष्टाचार के शोर की आड़ में कांग्रेस पार्टी की साख बिगाड़कर देश में नरेन्द्र मोदी और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के लिए रास्ता बनाना था। और यही कारण है कि संघ अन्ना आंदोलन का संपूर्ण समर्थन कर रहा था। इस बात को मोहन भागवत और दिवंगत अशोक सिंघल ने स्वीकार भी किया था।
Published: undefined
सारांश यह है कि संघ का सदा से यह एजेंडा रहा है कि भारत को एक ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का स्वरूप दिया जाए। स्वतंत्रता के बाद से लेकर 1990 के दशक के आरंभ तक संघ अकेले अपने दम पर सक्षम नहीं था कि वह देश को कांग्रेस मुक्त भारत का विकल्प दे कर भारत को हिन्दू राष्ट्र में परिवर्तित कर सकता। अतः 1990 के दशक तक बल्कि अन्ना आंदोलन तक दूसरों के कंधों पर बंदूक रखकर वह अपनी कांग्रेस मिटाओ रणनीति का प्रयोग करता रहा।
मुख्य रूप से यह कार्य देश से भ्रष्टाचार मिटाओ आंदोलन के रूप में होता रहा है जिसमें समय-समय पर गैर-भाजपाई नेताओं का इस्तेमाल कर कांग्रेस अथवा देश की सेकुलर राजनीति को कमजोर किया जाता रहा है। केजरीवाल भी अन्ना के भ्रष्टाचार मिटाओ आंदोलन की देन हैं। उनके उत्थान से दिल्ली में कांग्रेस का जमा-जमाया किला ढाह दिया गया और इस प्रकार दिल्ली-जैसे राजनीतिक स्थान पर पिछले एक दशक से कांग्रेस हाशिए पर है। यहां अब केजरीवाल का बोल-बाला और हिन्दुत्व की राजनीति का चलन है जिसकी घोषणा मुख्यमंत्री ने इस बार अयोध्या मंदिर में दिवाली पूजा कर स्वयं कर दी।
Published: undefined
यह तो था संघ का दिल्ली से कांग्रेस मिटाओ रणनीति का सफल प्रयोग जिसमें भ्रष्टाचार मिटाओ आंदोलन का प्रयोग कर केजरीवाल को कांग्रेस का विकल्प बना दिया गया। जैसा मैंने कहा, संघ लंबे अरसे से भ्रष्टाचार मिटाओ की रणनीति का प्रयोग कांग्रेस को कमजोर करने के लिए करता रहा है। और समय-समय पर वह यह कार्य दूसरों के कंधों पर बंदूक रख कर करता रहा है। समय-समय पर संघ एक केजरीवाल खड़ा कर कांग्रेस को कमजोर करने का कार्य करता रहा है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पहले केजरीवाल का रूप किसी और ने नहीं, स्वयं जयप्रकाश नारायण ने निभाया था। इस बात को समझने के लिए 1970 के दशक एवं इंदिरा गांधी की राजनीति को समझना होगा।
सन 1971 में पाकिस्तान के दो टुकड़े कर बांग्लादेश का निर्माण करवाने वाली इंदिरा गांधी देश की ऐतिहासिक व्यक्ति बन चुकी थीं। देश में इंदिरा गांधी का डंका बज रहा था। इसका राजनीतिक लाभ उठाने के लिए देश में लोकसभा एवं कई विधानसभाओं में मध्यावधि चुनाव की घोषणा कर दी गई। सन 1972 में जो चुनाव हुए, उनमें कांग्रेस लोकसभा से लेकर विधानसभाओं में पूर्णतया सफल रही। लेकिन 1972 के चुनावों के बाद कांग्रेस पार्टी ने इस देश की राजनीति में एक ऐसा कदम उठाया जिसकी हिम्मत स्वतंत्रता के बाद किसी ने नहीं की थी।ं
इंदिरा गांधी ने 1972 में दो राज्यों में मुस्लिम मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति कर दी। अब बिहार में अब्दुल गफूर और राजस्थान में बरकतुल्लाह–जैसे मुस्लिम मुख्यमंत्रियों का शासन चल रहा था। यह संघ के लिए एक राजनीतिक पाप था। फिर इंदिरा गांधी का झुकाव उस समय पूर्णतया वामपंथी विचारधारा की ओर था। यह भी सबको स्वीकार नहीं हो सकता था। बस, देखते-देखते गुजरात में 1973 में चिमनभाई पटेल के खिलाफ छात्रों का आंदोलन फूट पड़ा और गुजरात ‘चिमन चोर’ के नारों से गूंज उठा।
Published: undefined
सन 1974 में बिहार के छात्र अब्दुल गफूर के खिलाफ भ्रष्टाचार के नाम पर उठ खड़े हुए। जैसे ही आंदोलन ने जोर पकड़ा, वैसे ही इस आंदोलन का समर्थन करने जय प्रकाश नारायण उठ खड़े हुए। अब संघ अपनी संगठनात्मक शक्ति के साथ इस भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में पूर्णरूप से शरीक था जिसके नेता जयप्रकाश नारायण थे जो अपने समय में केजरीवाल का रोल अदा कर रहे थे। इसके बाद जो कुछ हुआ, वह इतिहास है। सन 1975 में संघ-समर्थित जेपी आंदोलन इतना सफल हो चुका था कि घबराई इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। देखते-देखते सन 1977 में इंदिरा गांधी चुनाव हार गईं और देश में जनता पार्टी के रूप में पहली बार केन्द्र में एक गैर-कांग्रेसी सरकार सत्ता में आ गई। इसी के साथ जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी केन्द्रीय मंत्री बन गए।
आपने देखा कि सन 1973 में ‘चिमन चोर’ के नारे से भ्रष्टाचार मिटाने वाले आंदोलन ने कैसे अन्ना आंदोलन के समान जेपी आंदोलन का स्वरूप लिया। देश में पहली बार कांग्रेस पार्टी कमजोर हुई और जेपी की सरपरस्ती में अटल बिहारी वाजपेयी एवं लाल कृष्ण आडवाणी-जैसे संघी केन्द्रीय सत्ता तक पहुंच गए। यह था देश का पहला बड़ाभ्र ष्टाचार मिटाओ आंदोलन जिसमें जेपी अन्ना/केजरीवाल के समान देश में कांग्रेस मिटाओ नेता का रोल निभा रहे थे।
Published: undefined
फिर देश में लगभग इसी अंदाज का दूसरा भ्रष्टाचार मिटाओ आंदोलन राजीव गांधी के समय में सन 1986 में बोफोर्स तोप खरीद के मामले में उठा था। राजीव गांधी सन 1984 में अपनी मां इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भारी बहुमत से प्रधानमंत्री बने थे। वह उस समय अत्यंत लोकप्रिय थे और मीडिया उनको ‘मिस्टर क्लीन’ कहता था। परंतु सन 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो तलाक केस में ऐतिहासिक फैसला देकर मुसलमानों को तीन तलाक की सुविधा से वंचित कर दिया। बस, कट्टरपंथी एवं रूढ़िवादी मुस्लिम लॉबी ने देशभर में तीन तलाक हक वापस दो का शोर खड़ा कर दिया। राजीव गांधी ताकतवर कट्टरपंथी मुस्लिम लॉबी के दबाव में आ गए थे। उन्होंने ‘मुस्लिम विमेन बिल’ पारित करवाकर मुसलमानों को तीन तलाक का हक वापस दे दिया। बस, रातों-रात कांग्रेस में ही राजीव गांधी का विरोध शुरू हो गया। पहले आरिफ मोहम्मद खान, फिर वीपी सिंह एवं अरुण नेहरू और उनके सहयोगियों ने विद्रोह किया। वे बाहर आए और जल्द ही बोफोर्स खरीद में भ्रष्टाचार का मामला उठ खड़ा हुआ।
Published: undefined
अब इस आंदोलन के समर्थन में बीजेपी संघ की शक्ति के साथ कूद पड़ी। उधर, वामपंथी भी राजीव गांधी के खिलाफ हो गए। अब राजीव गांधी के विरुद्ध वीपी सिंह को अपने समय के केजरीवाल का रूप मिला। सन 1989 के चुनाव में इस भ्रष्टाचार हटाओ आंदोलन के चलते कांग्रेस को इतनी बड़ी क्षति पहुंची कि वह केवल केन्द्र ही नहीं, उत्तर प्रदेश और बिहार- जैसे महत्वपूर्ण राज्यों को भी खो बैठी। साथ ही भाजपा अब इतनी शक्तिशाली थी कि वीपी सिंह सरकार उसके समर्थन पर टिकी थी। तब ही तो सन 1990 में जैसे ही अयोध्या मामले में वीपी सिंह ने भाजपा की नहीं सुनी, तो उनकी सरकार गिरवाकर अब संघ राम मंदिर पर स्वयं आंदोलन में कूद पड़ा। वह दिन और आज का दिन, फिर भाजपा-संघ ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अब हाल यह है कि देश में हिन्दुत्व का डंका बज रहा है। और केजरीवाल-जैसे संघ की बी टीम के खिलाड़ी खुलकर संघ की शरण में आ रहे हैं। संघ अब ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के निर्माण के लिए केजरीवाल-जैसे हिन्दुत्व खिलाड़ियों की बी टीम बना रहा है। उसका उद्देश्य अब यह है कि यदि बीजेपी सत्ता से बाहर हो तो उसका विकल्प कांग्रेस नहीं बल्कि केजरीवाल–जैसे अयोध्या मंदिर के पुजारी सत्ता में आ सकें और उसका हिन्दू राष्ट्र का उद्देश्य चलता रहे।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined