रक्षा और रणनीतिक मामलों से जुड़ी दो खबरें हाल के दिनों में काफी चर्चा में रही हैं। पहली खबर फ्रांस से लड़ाकू विमान राफेल खरीदने के बारे में है, और दूसरी खबर अमेरिका से भारत की बातचीत को लेकर थी जिसे 2+2 का नाम दिया गया था। फिलहाल मैं 2+2 मुलाकात पर ध्यान केंद्रित करना चाहता हूं, लेकिन रणनीतिक मामले की दृष्टि से नहीं, मैं इससे जुड़ी किसी और चीज की चर्चा करना चाहता हूं।
यह मामले आमतौर पर सिर्फ कुछ लोगों की दिलचस्पी का हिस्सा होती हैं, जो इन पर खबरें करते हैं और अंतर्राष्ट्रीय मामलों का अध्ययन करते हैं। यह समूह 2+2 बैठक के प्रभावों को लेकर काफी उत्साहित था क्योंकि इसके जरिये कई नई चीजों की शुरुआत होगी।
एक राष्ट्रीय अखबार में छपी इस बैठक की खबर में इस समूह की संकुचित दृष्टि दिखाई देती है। पहली पंक्ति थी: “हाल में संपन्न हुई 2+2 भारत-अमेरिका वार्ता में सीओएमसीएएसए पर दस्तख्त होने पर भारत के रणनीतिक समूह के कई सदस्य अपनी खुशी छिपा नहीं पा रहे थे, जो सीआईएसएमओए का भारत-विशेष रूप है।”
कितने भारतीय सीओएमसीएएसए या सीआईएसएमओए जानते हैं या फिर 2+2 जानते हैं? शायद एक लाख में एक, और वास्तव में उससे भी कम हो सकते हैं। चूंकि यह लेख रक्षा से जुड़े मसलों और स्कैंडल को लेकर नहीं है, हम इस पर बात नहीं करेंगे कि सीओएमसीएएसए और सीआईएसएमओए का क्या अर्थ है। मेरी दिलचस्पी उस तस्वीर में थी जो उस खबर के साथ छपी थी। उसमें चार लोग थे, अमेरिका के रक्षा और विदेश सचिव और भारत की रक्षा और विदेश मंत्री।
इन लोगों के पद बराबर हैं। इसका मतलब यह हुआ कि अमेरिका के सचिव और भारत के कैबिनेट मंत्री का पद एक बराबर होता है। हम पर अक्सर आरोप लगाया जाता है कि एक राष्ट्र और संस्कृति के नाते हम उन लोगों से बात नहीं करना चाहते जो हमसे नीचे हैं। पूर्व राजदूत और भारत-अमेरिका रिश्तों के अध्येता डेनिस कुक्स ने लिखा है कि भारतीय कुटनीतिज्ञ नीचे के पद वाले अमेरिकी अधिकारी से बात नहीं करना चाहते, अगर अमेरिकी अधिकारी को उस मामले में फैसला लेने का अधिकार प्राप्त हो तब भी नहीं। भारतीय अपने पद के बराबर के लोगों से बात करते हैं, भले ही मुलाकात से कोई फैसला नहीं निकले।
निश्चित रूप से 2+2 बैठक में यह स्थिति नहीं थी। मुझे लगता है रणनीतिक जगत के बहुत सारे लोग इस बात से बहुत खुश होंगे कि ताकतवर अमेरिका ने राष्ट्रपति के बाद दो सबसे ताकतवर लोगों को हमसे बातचीत करने के लिए भेजा, और वह भी मंत्री स्तर के लोगों को।
वह तस्वीर उन चारों लोगों की थी जो साथ में खड़े थे और श्रोताओं की ओर मुखातिब थे। बाएं में अमेरिका के विदेश सचिव माइक पॉम्पियो और रक्षा सचिव जिम मैटिस थे, वे दोनों श्वेत हैं। मैटिस सेना के पूर्व जनरल हैं। पॉम्पियो भी सेना के पूर्व सदस्य हैं जो एक वक्त अमेरिकी जासूस एजेंसी सीआईए के मुखिया थे।
दाएं में भारत की विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री खड़ी थीं। दोनों महिलाएं हैं। उत्तर से एक (सुषमा स्वराज) और दक्षिण से एक (निर्मला सीतारमण)। दोनों खुद से तैयार हुईं ताकतवर महिलाएं हैं, वे अपनी प्रगति या ताकतवर पदों के लिए किसी पर निर्भर नहीं हैं। दो ताकतवर पुरुष दो ताकतवर महिलाओं से समानता के स्तर पर हाथ मिला रहे हैं। इस तस्वीर ने मुझे काफी आनंदित किया। मैं आमतौर पर रक्षा मुद्दों के बारे में पढ़ना पसंद नहीं करता क्योंकि मुझे लगता है कि यह एक ऐसे राष्ट्र में पैसे की बर्बादी है जिसके पास पहले से संसाधनों की कमी है। और यह खर्च अमीर लोगों के संकुचित हितों को फायदा पहुंचाता है (जो रक्षा मुद्दों को लेकर चर्चा में चल रही राफेल की खबर में दिख रहा है)। लेकिन 2+2 की इस खबर और तस्वीर ने मुझे काफी ज्यादा आनंदित किया।
दुनिया के अन्य देशों की तरह ही हम बहुत ज्यादा असमानता पर आधारित एक समाज में रहते हैं। अमेरिका में श्वेत (गोरे) लोगों का दबदबा उनकी पूरी संस्कृति में साफ-साफ दिखता है। महिलाओं के लिए वहां ज्यादा जगह नहीं है और अश्वेत और दूसरे धर्मों को मानने वालों के लिए तो निश्चित ही बहुत कम जगह है।
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भारत की भी यही सच्चाई है। वह तस्वीर मोदी सरकार के बारे में पूरा सच नहीं दिखाती, और मैं सिर्फ एक और ताकतवर महिला मंत्री (स्मृति जेड ईरानी) के बारे में सोच सकता हूं लेकिन इस तस्वीर ने दिखाया कि क्या संभव है।
निश्चित तौर पर हमारी राजनीति में महिलाओं के समुचित प्रतिनिधित्व का अभाव प्रतिभा की कमी की वजह से नहीं है। स्वराज, सीतारमण और ईरानी – और विपक्ष में मायावती, ममता और अन्य – इस बात को पूरी तरह खारिज करते हैं।
यह पूरी तरह मौकों के अभाव की वजह से है। 2+2 बैठक जैसे क्षणों को हमें इससे अवगत कराना चाहिए, और हमें सारी राजनीतिक पार्टियों पर दबाव बनाना चाहिए कि अगर वे हमारा वोट और समर्थन चाहते हैं तो वे सक्रिय रूप से ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को शामिल करें।
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