मोहतरमा मरियम नवाज़,
पाकिस्तानी सूबे पंजाब की पहली खातून वज़ीर-ए-आला का ओहदा संभालने पर मेरी और हमारे पाठकों की जानिब से दिली मुबारकबाद। यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं। आपने तो पाकिस्तानी तारीख में तारीख रकम की है। मोहतरमा नवाज़, यह बात तारीख में सुनहरे लफ्ज़ों में लिखी जाएगी। महज इसलिए नहीं कि आप पाकिस्तान की पहली खातून वजीर-ए-आला हैं, बल्कि इसलिए भी काबिले दाद है कि आप पहली मुस्लिम खातून हैं जो चुनाव के जरिये इस कदर आला ओहदे पर फायज़ हुई हैं। यह एक ऐसी कामयाबी है जो पूरे आलम-ए-इस्लाम के लिए बहुत हद तक अनोखी है।
इस्लामी मुमालिक में किसी औरत का यह ख्वाब देखना ही गुनाह होता है कि औरत होकर लाखों क्या, करोड़ों मर्दों पर राज करे। यही सबब है कि आप महज काबिल-ए-सताइश ही नहीं बल्कि आप अपने मुल्क के साथ ही दुनिया भर की मुस्लिम खवातीन के लिए एक रोल मॉडल बन गई हैं।
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मोहतरमा, ऐसा नहीं कि आप से पहले किसी भी मुस्लिम खातून ने सियासी मैदान में ऐसी सर बुलंदी हासिल नहीं की हो। खुद पाकिस्तान में ही आप से पहले मरहूमा बेनजीर भुट्टो मुल्क की वजीर-ए-आजम रह चुकी हैं। वह एक इंतिहाई करिश्माई खातून थीं जिन्होंने पाकिस्तानी अवाम को चकाचौंध कर दिया था। बेनजीर तीन बार पाकिस्तान की वजीर-ए-आजम बनीं और आखिरकार उनको गोली मार दी गई या मरवा दी गई।
सुनते हैं कि पाकिस्तान जैसे पुरुष प्रधान मुल्क में एक औरत का वजीर-ए-आजम चुना जाना वहां के निज़ाम के लिए एक गुनाह से कम नहीं था। आखिर बेनजीर साजिशों का शिकार बनीं, लेकिन वह गोलियों का शिकार हुईं और मुल्क में तारीख रकम कर गईं।
मोहतरमा नवाज़, ऐसा कतई नहीं कि इस्लामी मुमालिक और उसके बाहर किसी भी मुस्लिम खातून ने सियासी या दूसरे अहम मुकाम हासिल नहीं किए। सच तो यह है कि इस्लामी तारीख में आप या बेनजीर ही महज उन खवातीनों में नहीं हैं जिन्होंने मुस्लिम मुआशरे में ऐसी बुलंदी हासिल की हो।
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तारीख गवाह है कि आप और बेनजीर जैसी खवातीन से इस्लामी तारीख पटी पड़ी थी। आखिर किस-किस खातून का जिक्र किया जाए। हकीकत यही है कि इस्लाम के शुरुआती दौर से ही मुस्लिम खवातीन ने ऐसे-ऐसे सरनामे अंजाम दिए कि तारीख खुद में ही हैरत में रह गई।
मोहतरमा, आप तो बाखूबी वाकिफ होंगी कि खुद रसूले करीम हजरत मोहम्मद (सअ.) की बीवी जनाबे खदीजा आलमे अरब की एक इंतहाई कामयाब ताजिर थीं। हजरत मोहम्मद तो इनकी तिजारत के निगहबान थे। वह हजरत खदीजा का माल सीरिया और दीगर जगहों पर ऊंटों के जरिये लेकर जाते थे। इसी तरह हजरत आयशा लीडर तो नहीं थीं लेकिन एक इंतिहाई बहादुर खातून थीं।
वह अक्सर मदीने की ओर बहुत सारी खवातीन के साथ मैदान-ए-जंग तक जाती थीं। और तो और, रसूले करीम की मौत के बाद वह जंगे जमल में खुद ऊंट पर सवार होकर मैदाने जंग में मौजूद रहीं। वह भी खुद रसूल के दामाद हजरत अली के खिलाफ। किस-किस और मुस्लिम खातून के कारनामे याद दिलाए जाएं।
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हकीकत तो यह है कि इस्लाम वह मजहब है जिसने खवातीन को जैसे हुकूक अता किए, वैसे हुकूक खवातीन को गालिबन सारी दुनिया में पहले कहीं भी हासिल नहीं थे। मसलन, इस्लाम से पहले शायद ही किसी समाज में औरत को वह रुतबा हासिल हुआ हो जैसा कि मुस्लिम औरत को इस्लाम ने अता किया।
मुस्लिम खातून को कुरान के मुताबिक अपने शौहर को ‘ख़ुला’ (तलाक) देने का ह़क दिया है। इसी तरह, मुस्लिम खातून को अपने शौहर और मां-बाप की जायदाद में हिस्सा दिया गया है। अफसोस कि इस्लाम की वह शानदार रवायत अब महज एक दास्तान बनकर रह गई है।
मरियम नवाज़ साहिबा, अब यह आलम है कि मुस्लिम औरत अपने-अपने घरों की चहारदीवारी में कैदी बनकर रह गई है। आपके पड़ोस अफगानिस्तान में तो औरतों को जदीद तालीम से भी महरूम कर दिया गया था।
खैर, किस-किस बात का रोना रोइए! खुदा-खुदा कर आपको परवर दीगार ने यह मौका दिया कि आप कम-से-कम सूबा ए पंजाब में चली आ रही दकियानूसी रवायतों पर पाबंदी लगा सकती हैं। पाकिस्तानी अवाम को आपसे यह उम्मीद होगी कि आप कुछ नहीं तो ऐसी रवायतों को खत्म कर देंगी जिनकी इजाज़त इस्लाम खुद नहीं देता है।
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अगर आप पाकिस्तानी सूबा-ए-पंजाब की औरतों को उनके इस्लामी हुकूक दिलाने में कामयाब हो गईं, तो महज पाकिस्तान ही नहीं बल्कि तमाम इस्लामी मुल्कों की औरतों को न सिर्फ हौसला मिलेगा बल्कि दूसरे इस्लामी मुल्कों की औरत अपने हुकूक हासिल करने को उठ खड़ी होंगी।
मोहतरमा वज़ीरे आला, सूबा-ए-पंजाब (पाकिस्तान) में आप जैसी बेबाक खातून अगर ठान लें, तो क्या नहीं कर सकती हैं! ऐसा नहीं है कि मुस्लिम खातून इस जदीद दौर में भी जुजु बाबा बनकर जीना चाहती हैं। अगर आप इस्लामी मुल्कों पर ही निगाह डालें, तो आपको दिखेगा कि मुस्लिम खवातीन अपने हुकूक हासिल करने के लिए अंगड़ाई ले रही हैं। इस दिशा में आपका एक कदम सारी दुनिया की मुस्लिम औरतों को वह जज्बा देगा जिसकी मिसाल खोजे नहीं मिलेगी।
मोहतरमा नवाज़ मरियम साहिबा, उठिए और उन जंजीरों को काट फेंकिए। झिझक किस बात की। आप एक कदम बढ़ाइए और देखिए कि कैसा इंकलाब बपा होता है। अल्लाह आपको जुर्रत अता फरमाए और आप मुस्लिम तारीख में दरख्शां हो जाएं।
नियाजमंद
ज़फ़र आग़ा
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