विचार

अमित शाह की गंदी बात !

बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जब बोलते हैं तो मर्यादा, शालीनता और सौम्यता उनके आसपास भी नहीं फटकतीं। उनकी शब्दावली बेहद घटिया, लहजा सड़कछाप और भाव अत्यंत आपत्तिजनक होता है।

फोटो : Getty Images
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उनके वक्त्व्यों और भाषणों में राजनीतिक विमर्श की संस्कृति और परंपराओं से परे अहंकार और ओछापन स्पष्ट झलकता है। उनकी बातों में न इतिहास बोध होता है और न ही विमर्श के सिद्धांतों का पालन।

हाल ही में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने एक सभा में कहा कि, “कांग्रेस ने अब तक सिर्फ चार यात्राएं ही निकाली हैं, जिसमें से तीन जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की अस्थि कलश यात्रा है और चौथी राहुल गांधी की बिना कलश की यात्रा है।” ये बेहद आपत्तिजनक और दुर्भावना से भरी हुई भाषा है। यह भाषा दक्षिणपंथ और हिंदुत्ववाद का वह आख्यान है जिसमें मनोवृत्ति के विकृत रूप के दर्शन होते हैं।

ऐसे लोगों को यह याद दिलाने की आवश्यकता है कि इतिहास कभी बीतता नहीं है, बल्कि नए संदर्भों में हमारे सामने आता है, हमें परिवेश को पहचानने का संदेश देता है। लेकिन अमित शाह जब बोलते हैं तो इतिहास को लेकर उनकी अज्ञानता के प्रदर्शन के साथ ही उनका चरित्र चित्रण भी हो जाता है।

Published: 17 Sep 2017, 5:27 PM IST

अमित शाह को ऐतिहासिक यात्राओं का बोध कराने के लिए अब से करीब सौ बरस पीछे जाना होगा। महात्मा गांधी ने देश को समझने के लिए 1915 में दक्षिण अफ्रीका से लौटकर पूरे देश की यात्रा की थी। रेल के दूसरे दर्जे में की गयी महात्मा गांधी की यह यात्रा ऐतिहासिक तो है ही, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और राजनीति की बेहद अहम परिघटना भी है। इस यात्रा में कांग्रेस के उस समय के नेता लगातार बापू के साथ थे। इसके बाद ही बापू ने गुजरात में अहमदाबाद के पास साबरमती नदी के तट पर अपना आश्रम बनाया और इसका नाम सत्याग्रह आश्रम रखा। आश्रम की नींव, दरअसल इस भारत यात्रा में हुए अनुभवों से ही पड़ी थी। तो क्या यह कांग्रेस की यात्रा नहीं थी?

Published: 17 Sep 2017, 5:27 PM IST

यूं भी यह वर्ष यानी 2017 महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह का शताब्दी वर्ष है। 100 वर्ष पहले गांधी जी ने बिहार के चंपारण में नील बागान मालिकों और मजदूरों पर अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ सत्याग्रह किया था। गांधी जी को चंपारण में अंग्रेजी अत्याचार की जानकारी कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन से मिली थी, जहां चंपारण के एक व्यक्ति ने गांधी जी से इस आंदोलन का नेतृत्व करने की अपील की थी। महात्मा सहर्ष इस आंदोलन के लिए चल पड़े थे, क्योंकि वे भारत की नब्ज को, उसके दर्द को, मर्म को समझते जानते थे। क्या यह कांग्रेस की यात्रा नहीं थी?

जिस राज्य से अमित शाह आते हैं, उसी राज्य में साबरमती आश्रम से ऐतिहासिक दांडी यात्रा शुरु हुई थी। कांग्रेस ने संपूर्ण स्वराज्य को अपना प्राथमिक लक्ष्य घोषित किया और इसी पृष्ठभूमि में, गांधीजी ने कांग्रेस के तहत पहला कदम उठाते हुए सविनय अवज्ञा आंदोलन यानी नमक सत्याग्रह या दांडी यात्रा का सूत्रपात किया। इस यात्रा के लिए नेहरू, पटेल और दूसरे कांग्रेसी, लोगों को जुटाने का काम कर रहे थे। क्या यह भी कांग्रेस की यात्रा नहीं थी।

लेकिन घटिया और सड़कछाप शब्दावली का इस्तेमाल करने वाले, इस ऐतिहासिक तथ्य को न जानते हैं और न ही जानना चाहते हैं। कांग्रेस की यात्राओं के संदर्भ में आगे बढ़ें, आजादी के पहले और बाद में, जवाहर लाल नेहरू लगातार पूरे देश में घूम-घूम कर स्वतंत्रता आंदोलन के लिए लोगों को एकजुट करने का काम कर रहे थे। भले ही इसे किसी यात्रा का नाम नहीं दिया गया हो, लेकिन देश को जमीनी स्तर पर समझने का यही तरीका नेहरू ने अपनाया था। यह भी तथ्य ही है कि जवाहर लाल नेहरू ने लंदन से पढ़ाई पूरी करने के बाद तमाम इलाकों का साइकिल से भी दौरा किया। यह भी यात्रा ही थी, जिसने स्वतंत्रता आंदोलन में जन-भागीदारी और सक्रियता को सुनिश्चित किया। आजादी के बाद भी नेहरू ने देश के तमाम हिस्सों की यात्रा कर स्थानीय संभावनाओं को देखा-समझा और जन कल्याण की योजनाएं और मूलभूत ढांचे तैयार करने की बुनियाद रखी। क्या यह कांग्रेस की यात्राएं नहीं थीं?

Published: 17 Sep 2017, 5:27 PM IST

‘अस्थिकलश यात्रा’ को ही यात्रा मानने वाले इन अशिक्षित और अहंकारी लोगों को और याद दिलाएं तो 70 के दशक में इंदिरा गांधी की यात्राएं भी सामने हैं। 1977 में जब यह खबर आयी कि बिहार के बेलची में हरिजनों और दलितों की हत्या हुई है तो इंदिरा गांधी ने वहां जाने का फैसला लिया। बेलची गांव दूर-दराज का इलाका था। इंदिरा गांधी ने वहां जाने के लिए लंबी यात्रा की। मीलों पैदल चलकर जब सामने नदी आ गयी तो उन्होंने हाथी पर चढ़कर नदी को पार किया और पीड़ित परिवारों से मिलीं। क्या यह कांग्रेस की यात्रा नहीं थी? लेकिन टोयोटा की बड़ी-बड़ी एसयूवी में भारी भरकम काफिले के साथ चलने वाले अहंकारी और देश के लोगों की सोच का ‘स्केल’ बदलने का दावा करने वाले ऐसी यात्राओं के अर्थ को समझ ही नहीं सकते।

बीजेपी अध्यक्ष को एक और यात्रा की याद दिलाना होगी, जब स्व. राजीव गांधी ने रेल यात्रा शुरु की थी। 1989 में चुनाव हारने के बाद राजीव गांधी ने देश भर में लोगों से सीधे संवाद कायम करने के लिए रेल यात्रा की। इस यात्रा में राजीव गांधी को जो जनसमर्थन मिल रहा था उससे विपक्षी दलों और राजनीतिक विरोधियों की नींद उड़ी हुयी थी। क्या यह कांग्रेस की यात्रा नहीं थी? 1991 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी राजीव गांधी देश के पूरब से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक सीधे लोगों से संवाद कर रहे थे। और कांग्रेस की अभूतपूर्व विजय सामने थी। लेकिन होनी को कुछ और मंजूर था और काल ने असमय राजीव गांधी को देश से छीन लिया। क्या बीजेपी अध्यक्ष इस यात्रा को समझ पाएंगे?

जिन तीन कलश यात्राओं का उल्लेख अमित शाह ने अपने भाषण में किया है, दरअसल वे आधुनिक भारत के निर्माण, देश को गरीबी से मिटाने के संकल्प और देश को 21वीं सदी में एक तकनीक संपन्न राष्ट्र के तौर पर ले जाने के प्रयासों की मिसालें हैं। लेकिन देश को नफरत, संप्रदायवाद, बहुसंख्यकवाद और ध्रुवीकरण की आग में झोंकने वाले इन यात्राओं का न तो मकसद समझ सकते हैं और न ही उन महान नेताओं के बलिदान और त्याग का महत्व।

लगता है अमित शाह ने संत कबीर को कभी पढ़ा ही नहीं, वरन् भाषा की शालीनता और सौम्यता का कुछ तो बोध होता उन्हें। एक दोहे में कबीर कहते हैं :

कुटिल वचन सब ते बुरा, जारि करै सब छार...

इस दोहे का अर्थ है कि दुष्टता पूर्ण वचनों से बुरा कुछ नहीं होता-यह सबों को जला कर राख कर देता है।

बीजेपी अध्यक्ष को याद दिलाना जरूरी है कि उनके इस अहंकारपूर्ण और अपमानजनक भाषण से दो दिन पहले ही अमेरिका में राहुल गांधी द्वारा दिए गए भाषण की तनिक तुलना भर कर लें। व्यक्तित्व की ताजगी और भाषा की विनम्रता और सौम्यता की चर्चा आज हर जगह हो रही है। वे समाचार पत्र और न्यूज चैनल जो कांग्रेस नेताओं को ‘घेरने’ का कोई मौका नहीं छोड़ते, उन्होंने भी राहुल गांधी के इस भाषण की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। अहंकार की भाषा बोलने वालों को ये दोहे सदा याद रखना चाहिए:

तुलसी मीठे वचन तै, सुख उपजत चहुं ओर।

वशीकरण के मंत्र हैं, तज दे वचन कठोर।

- गोस्वामी तुलसीदास

ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।

औरन को शीतल करै, आपहु शीतल होय।

- संत कबीर

Published: 17 Sep 2017, 5:27 PM IST

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Published: 17 Sep 2017, 5:27 PM IST