विचार

2019 के चुनाव प्रचार के भद्दे आरोपों-प्रत्यारोपों के गुबार से नायक बनकर उभरे हैं राहुल गांधी

राहुल गांधी न केवल भारत के भविष्य के लिहाज से जरूरी बदलावों को आवाज देते रहे हैं बल्कि वह इसके प्रमुख पैरोकार रहे हैं। कांग्रेस के इस युवा अध्यक्ष ने जिस दृढ़ता और आत्मविश्वास के साथ मोदी को चुनौती दी, उतना किसी और ने नहीं।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

एक सच्चा नेता जिस लक्ष्य को लेकर चलता है, उसे कभी नहीं छोड़ता। अगर उसे शुरू में असफलता मिलती है, झटके लगते हैं, तो भी वह बहादुरी के साथ डटा रहता है क्योंकि उसे अपने लक्ष्य की पवित्रता का अटूट विश्वास होता है। और इस कारण उसकी सफलता तय होती है। कुछ नेताओं के साथ ऐसा होता है कि उनकी मेहनत के फल तब आते हैं जब वे दृश्य से हट चुके होते हैं। लेकिन जब फल आता है तो लोगों को पता होता है कि इसके पौधे को किसने रोपा, ठीक वैसे ही जैसे हो ची मिन्ह के मामले में हुआ। वियतनाम शक्तिशाली अमेरिकी सेना को 1975 में हराता, उससे पहले ही 1969 में मिन्ह की मृत्यु हो चुकी थी।

कोई नेता जन्मजात ऐसा शख्स नहीं होता बल्कि नेता खुद को उस स्तर तक तैयार करते हैं। केवल जन्म के आधार पर कोई नेता इतिहास बदलने वाली शख्सियत नहीं बना। बगैर अथक प्रयास, निरंतरता, धैर्य, दृढ़ संकल्प और खुद को खास खांचे में ढालने के अनुशासन, आत्म- विश्लेषण और अपनी गलतियों को सुधारने में निष्ठुर ईमानदारी बरते बिना कोई नेता बदलाव लाने वाली शख्सियत नहीं बनता। ऐसी शख्सियत जिसमें भयाक्रांत करने वाले तूफान का सामना करने, वेग से बहती धारा के खिलाफ तैरने और अंततः एक बेहतर इतिहास की बुनियाद रखने का माद्दा हो।

Published: undefined

यह सब करने के क्रम में उस शख्स के सामने तीखे उपहास, जाने-आनजाने लोगों की कड़वी आलोचना और इस आधार पर अपना रास्ता बदलने की नसीहतें आती हैं कि उसने बदलाव का जो एजेंडा तय किया है, वह गलत है या इसे अंततः विफल ही तो होना है। लेकिन एक सच्चा नेता अडिग खड़ा रहता है क्योंकि उसका अपने लक्ष्य और खुद पर अगाध विश्वास होता है। ऐसे नेताओं के बारे में महात्मा गांधी ने कहा थाः पहले वे आप पर हंसेंगे फिर आपका मजाक उड़ाएंगे। फिर वे आप पर हमला करेंगे, और तब आप जीत जाएंगे।

ईमानदारी से कहूं तो राहुल गांधी भारत के इतिहास को बदलने वाले नेता के तौर पर उभरेंगे या नहीं, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। साफ है कि राहुल को अभी लंबा, बहुत लंबा रास्ता तय करना है जब इतिहास अपना फैसला सुनाए कि वह आए, उन्होंने संघर्ष किया, असंभव सी दिखने वाली चुनौतियों का सामना किया, लेकिन अंततः अंधेरे को दूर कर उजाले और उस सकारात्मक बदलाव को लाने में कामयाब रहे जो भारत की उत्कृष्ट अवधारणा और एक अरब से अधिक भारतीयों की आकांक्षाओं में अंतर्निहित है।

Published: undefined

फिर भी, 2019 के चुनाव प्रचार के भद्दे आरोपों-प्रत्यारोपों के गुबार से अगर कोई नायक बनकर निकला है तो वह हैं राहुल गांधी।

लोकसभा चुनाव के नतीजों से परे होकर बात करें तो इसमें कोई संदेह नहीं कि राहुल का जोर वैसे दीर्घकालिक सकारात्मक बदलावों पर रहा जिनसे लोगों में आशा का संचार होता हो। भारतीय राजनीति का गुरुत्व केंद्र भाजपा से दूर खिसकना शुरू होगा। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और बहुसंख्यक राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने वाली ताकतें, जिनका लक्ष्य भारतीयता की सोच को खत्म कर धर्मनिरपेक्ष भारत को एक हिंदू राष्ट्र में बदलने का है, कमजोर होने जा रही हैं। जिन ताकतों ने लोकतंत्र से जुड़ी संस्थाओं पर भयावह हमले करने शुरू कर दिए हैं और ऐसा करके उन्होंने एक तरह से हमारे संविधान के आधार स्तंभों पर ही प्रहार किए हैं, उन्हें गंभीर चुनौती मिलने जा रही है।

Published: undefined

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अक्खड़ और महत्वाकांक्षा के उन्माद से भरी राजनीति और विपक्ष समेत अपनी पार्टी के भी बुजुर्गों का अपमान करने की प्रवृत्ति सवालों से परे नहीं रह सकती।

राहुल गांधी न केवल भारत के भविष्य के लिहाज से जरूरी बदलावों को आवाज देते रहे हैं बल्कि वह इसके प्रमुख पैरोकार रहे हैं। कांग्रेस के इस युवा अध्यक्ष ने जिस दृढ़ता और आत्मविश्वास के साथ मोदी को चुनौती दी, उतना किसी और ने नहीं। इससे भी अधिक अहम बात यह है कि चुनावी विमर्श को घटिया स्तर तक ले जाने में उन्होंने नरेंद्र मोदी या फिर भाजपा में अपने समकक्ष अमित शाह के साथ कभी होड़ नहीं की। उनकी अपनी पार्टी के किसी साथी ने जब भी कोई आपत्तिजनक बात की, उन्होंने सार्वजनिक रूप से उसकी निंदा करने में देरी नहीं की।

Published: undefined

यह सिद्धांत पर चलने वाले और बड़े फैसले लेने वाले एक नेता की पहचान होती है और इस गुण के कारण राहुल के भविष्य का अच्छा होना तय है।

इसके विपरीत मोदी ने आतंकवाद का आरोप झेल रही प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल से लोकसभा उम्मीदवार बनाकर नैतिक तौर पर समझौता कर लिया और इस फैसले के प्रति देश भर में गुस्सा है। मोदी ने अपने इस फैसले का एक टीवी इंटरव्यू में बचाव भी किया। जब इस महिला, जो किसी कोण से ‘साध्वी’ कहलाने के काबिल नहीं, ने मुंबई में 26/11 को पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी हमले में शहीद हुए हेमंत करकरे को ‘देशद्रोही’ कहा तो मोदी चुप रहे। जब इसी महिला ने महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को ‘देशभक्त’ करार दिया तो उसके खिलाफ मोदी बोले, लेकिन उनमें सच्चाई नहीं दिखी।

मोदी ने खुद ही प्रज्ञा ठाकुर के खिलाफ अपनी प्रतिक्रिया की ईमानदारी पर संदेह करने की गुंजाइश छोड़ रखी है, इसका स्पष्ट कारण यह है कि बड़े ही आक्रामक तरीके से मुखर मोदी का समर्थक वर्ग इस मुद्दे पर मोदी की जगह प्रज्ञा की बातों से ज्यादा सहमत है। आजाद भारत के इतिहास में कभी भी गांधी जी और उनके मूल्यों के प्रति इतनी घृणा नहीं दिखी और इसी का प्रतिफल है कि मोदी के कार्यकाल में गोडसे का इतना खुलकर समर्थन किया जाता रहा। हिंदू-मुस्लिम एकता की अवधारणा गांधी के जीवन की आदर्श रही, लेकिन यह विचार हमेशा ही संघ परिवार के निशाने पर रहा।

मोदी और राहुल के प्रचार करने के तरीके में बड़ा फर्क रहा। मोदी चुनावी सभाओं से लेकर मीडिया को दिए इंटरव्यू में अपने बारे में ही ज्यादा बोलते रहे। उन्होंने अपने सरकारी आवास पर ही इंटरव्यू दिए और यह सुनिश्चित किया गया कि उनसे टेढ़े सवाल न किए जाएं। जबकि राहुल ने प्रचार से जुड़े बैठक स्थलों पर ही मीडिया का सामना किया और पत्रकारों को कुछ भी पूछने की आजादी थी। इसी का नतीजा था कि मीडिया से राहुल की बातचीत में नकली जैसा कुछ नहीं लगता जबकि मोदी के साथ ऐसी बात नहीं। दोनों नेताओं के बीच का फर्क इससे भी स्पष्ट है कि राहुल ने चुनाव के दौरान तमाम संवाददाता सम्मेलनों को संबोधित किया जबकि मोदी ने एक का भी नहीं। एकमात्र प्रेस कांफ्रेंस जिसमें मोदी मौजूद रहे, उसमें उन्होंने किसी भी सवाल का जवाब देने से इनकार कर दिया।

इसके अलावा राहुल ने अपने प्रचार को जनता और देश के वास्तविक मुद्दों के इर्द-गिर्द रखा। उन्होंने रोजगार संकट, किसानों की दुर्दशा, नोटबंदी और जीएसटी के दुष्प्रभावों, लोकतांत्रिक संस्थाओं के दुरुपयोग और चुनावी फायदे के लिए सशस्त्र बलों के राजनीतिकरण जैसे मुद्दे उठाए। बहरहाल, इसमें कोई संदेह नहीं कि राहुल गांधी के रूप में भारत को एक नए तरह का नेता मिला है। मैं यह इसलिए कह रहा हूं कि राहुल के प्रचार अभियान की सबसे खास बात यह रही कि उन्होंने ‘घृणा’ की काट के लिए ‘प्यार’ को पेश किया।

भारतीय राजनीति क्या, दुनिया की राजनीति में यह एक नई भाषा है। एनडीटीवी के रवीश कुमार को दिए इंटरव्यू में राहुल ने कहा. “अगर आरएसएस किसी हिंसा का शिकार होता है तो मैं उसके साथ भी खड़ा मिलूंगा।” ऊंचे सिद्धांतों और हिम्मत वाला कोई नेता ही इस तरह की बात कह सकता है। अगर आने वाले समय में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने प्रेम, भाईचारे, बातचीत और जनता की सेवा की अवधारणा पर आधारित राजनीति और शासन-प्रशासन कायम करने तथा कांग्रेस को इसी लाइन पर चलने वाली पार्टी बनाया तो भारत उन्हें देश की राजनीति की दिशा बदलने वाले नेताओं के तौर पर याद रखेगा।

इन कोशिशों में सफल होना आसान नहीं, लेकिन महात्मा गांधी की विरासत को बचाने का दावा करने वाली पार्टी को प्रयास से पीछे नहीं हटना चाहिए। अगर मैं अपनी बात एक वाक्य में कहूं तो यही होगा कि राहुल के नेतृत्व के कारण कांग्रेस का भविष्य उज्जवल है और इस कारण भारत सुरक्षित है।

(लेखक पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निकट सहयोगी रहे हैं।)

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined