तथाकथित आधुनिक विकास के दौर में दो चीजें - वायु प्रदूषण और सोशल मीडिया - सर्वव्यापी हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व की 95 प्रतिशत से अधिक आबादी वायु प्रदूषण की चपेट में है। दूसरी तरफ सोशल मीडिया की पहुंच भी हरेक देश और हरेक आयु वर्ग में है। अब, नए अनुसंधान बताते हैं कि वायु प्रदूषण और सोशल मीडिया का अत्यधिक इस्तेमाल - दोनों ही मनुष्य को दिमागी तौर पर कमजोर कर रहे हैं।
प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस नामक जर्नल के अगस्त अंक में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार वायु प्रदूषण से मस्तिष्क और सोचने-समझाने की शक्ति पर बुरा असर पड़ता है। यह अध्ययन चीन में किया गया है पर शोधपत्र के लेखकों का दावा है कि पूरी दुनिया में ऐसा ही असर होता है। अमेरिका स्थित येल यूनिवर्सिटी ऑफ पब्लिक हेल्थ के वैज्ञानिक ची चेन की अगुवाई में 22000 व्यक्तियों पर वायु प्रदूषण का असर भाषा और अंकगणित की दक्षता पर देखा गया। यह अध्ययन 4 वर्षों तक चला और इसमें सभी आयु, आय वर्ग के लोग थे। इस वर्ग में महिलायें भी थीं और पुरुष भी।
अध्ययन का निष्कर्ष है कि बुजुर्ग लोग, पुरुष और अपेक्षाकृत कम शिक्षा-प्राप्त लोग वायु प्रदूषण से अधिक प्रभावित होते हैं। सबसे अधिक असर भाषा पर पड़ता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि केवल वायु प्रदूषण के कारण एक साल से अधिक की शिक्षा व्यर्थ हो जाती है। बुजुर्ग लोगों के लिए अंकगणित में वायु प्रदूषण के कारण कमजोर होना अधिक घातक है क्योंकि नौकरी खत्म करने के बाद उन्हें जीवन संभालने के लिए अंकगणित की अधिक आवश्यकता होती है।
इससे पहले भी एक शोध में दावा किया गया था कि विद्यार्थियों में वायु प्रदूषण के असर से मस्तिष्क के ज्ञान संबंधी हिस्से प्रभावित होते हैं। दूसरे अध्ययन का दावा है कि वायु प्रदूषण की बहुलता के दौरान मानसिक रोग से ग्रस्त व्यक्तियों की मृत्युदर बढ़ जाती है। एक अन्य अध्ययन से पता चलता है कि व्यस्त सड़कों के किनारे रहने वाले बच्चे वायु प्रदूषण के कारण जल्दी ही मानसिक रोगों की चपेट में आ जाते है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर से बुद्धि कमजोर होती है। वायु प्रदूषण का असर मस्तिष्क पर केवल दीर्घकालीन नहीं होता, बल्कि अल्पकालीन भी होता है। कल्पना कीजिये, कम प्रदूषित क्षेत्र से कोई विद्यार्थी अत्यधिक प्रदूषित शहर में महत्वपूर्ण परीक्षा देने पहुंचता है, और उसके मस्तिष्क पर वायु प्रदूषण का अल्पकालिक प्रभाव पड़ता है। फिर, उसकी बुद्धि थोड़ी देर के लिए कुन्द हो जाती है, तो उसका भविष्य क्या होगा?
Published: 02 Sep 2018, 8:59 AM IST
दूसरी तरफ, कुछ महीने पहले इंटरनेशनल जर्नल ऑफ कम्युनिकेशन में प्रकाशित एक शोधपत्र में बताया गया कि सोशल मीडिया का अत्यधिक इस्तेमाल करने वाले विद्यार्थी गणित, विज्ञान और भाषा में अपेक्षाकृत कमजोर होते हैं। यह अध्ययन ऑस्ट्रेलिया के 12000 विद्यार्थियों पर किया गया था। जितना अधिक सोशल मीडिया का इस्तेमाल बच्चे कर रहे थे, वे इन विषयों में उतने ही कमजोर हो रहे थे। सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह था कि जो बच्चे सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं कर रहे थे, पर ऑनलाइन वीडियो गेम्स खेल रहे थे वे सामान्य विद्यार्थियों की तुलना में गणित और विज्ञान में अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे।
स्पष्ट है कि भविष्य खतरनाक होने वाला है, जब भावी पीढ़ी मंदबुद्धि होगी और सारा काम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से किया जाएगा।
Published: 02 Sep 2018, 8:59 AM IST
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Published: 02 Sep 2018, 8:59 AM IST