विचार

आकार पटेल का लेख: बंगाल में क्या परिवर्तन लेकर आना चाहती है बीजेपी, आखिर खुलकर बताती क्यों नहीं!

प्रधानमंत्री कहते हैं कि वे बंगाल में असली बदलाव लाएंगे। हो सकता है ऐसा हो। लेकिन रोचक बात यह है कि उनकी पार्टी ने कभी यह नहीं बताया कि यह बदलाव आखिर होगा क्या?

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फोटो : Getty Images Debajyoti Chakraborty

पिछले यानी 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बंगाल की 42 में से 18 सीटें जीती थीं। ऐसे में यह कहना बहुत ही मुश्किल है वह इस बार का विधानसभा चुनाव नहीं क्यों नहीं जीत सकती, क्योंकि उसके पास सभी राजनीतिक दलों के मुकाबले कहीं (इलेक्टोरल बॉन्ड से मिलने वाला करीब 90 फीसदी पैसा। आरटीआई रिपोर्ट के मुताबिक इलेक्टोरल बॉन्ड एक ऐसा कानूनी चंदा है जो बेनामी है) अधिक संसाधन हैं। इतना ही नहीं केंद्र में भी बीजेपी का ही शासन है। प्रधानमंत्री कहते हैं कि वे बंगाल में असली बदलाव लाएंगे। हो सकता है ऐसा हो। लेकिन रोचक बात यह है कि उनकी पार्टी ने कभी यह नहीं बताया कि यह बदलाव आखिर होगा क्या?

1951 में अपनी स्थापना के बाद से ही जनसंघ (अब बीजेपी) अपने घोषणापत्रों को बदलती रही हैं और उनमें राष्ट्रीय पुनर्जागरण जैसे मुद्दों को उठाती रही है। इसके अलावा वह एसी ट्रेनों का विरोध करते हुए अधिक तीसरे दर्जे की ट्रेने चलाने की मांग भी करती रही है। इतना ही नहीं वह गाय के गोबर के लाभ गिनाने से लेकर वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्र में अंग्रेजी को हटाकर संस्कृत की वकालत करती रही है।

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पार्टी के विचारक दीनदयाल उपाध्याय राज्यों का अस्तित्व ही नहीं चाहते थे। उनके एकात्म मानवतावाद भाषणों में वे कहते हैं, “संविधान के पहले पैरा के मुताबिक इंडिया जो कि भारत है, वह एक संघीय सरकार वाला देश होगा, यानी बिहार माता, बंग माता, पंजाब माता, कन्नड माता. तमिल माता आदि सबको मिलाकर भारत माता बनती हैं। यह उपहासपूर्ण बात है।” लेकिन वे हमें यह नहीं बताते कि अगर राज्यों को खत्म कर दिया तो केंद्र सरकार और गांवों के बीच शासन चलाने की कौन सी प्रक्रिया अपनाई जाएगी।

अपने पहले घोषणापत्र में पार्टी ने कालाबाजारी, मुनाफाखोरी और वंशवाद को देश की मुख्य समस्याओं के तौर पर सामने रखा था। वक्त के साथ जनसंघ इन समस्याओं को यह कहकर भूल गया कि या तो इन समस्याओं का समाधान हो चुका है या फिर ये समस्याएं अब पार्टी के लिए उतनी महत्वपूर्ण नहीं रह गई हैं।

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कृषि के मुद्दे पर इसके घोषणापत्र मे पहली बार जो बात कही गई थी वह यह कि देश में कड़े परिश्रम और अधिक उत्पादन के लिए अभियान चलाया जाना चाहिए और किसानों को इसके लिए उत्साहित करना चाहिए। लेकिन बाद में (1954 में) इसने कहा कि ट्रैक्टरों का इस्तेमाल सिर्फ बनजर भूमि को जोतने के लिए ही किया जाएगा और आम बुआई रोपआई के तरीको को बदला जाएगा। जाहिर है कि वह बैल और सांड को कटान से रोकने की कोशिश कर रहा था। 1951 में उसने मांस के लिए गाय के वध को सामने रखा और कहा कि, “गाय को कृषि जीवन की आर्थिक इकाई माना जाएगा।” 1954 में उसकी भाषा धार्मिक अधिक थी जिसमें गौरक्षा को पवित्र कर्तव्य कहा गया।

1954 और फिर 1971 में जनसंघ ने सभी भारतीयों का आमदनी अधिकतम 2000 रुपए प्रति माह और न्यूनतम 100 रुपए प्रति माह करने का प्रस्ताव सामने रखा। इसमें 20-1 का औसत सामने रखा गया। बाद के दिनों में वह इस औसत को घटाते-घटाते 10-1 पर ले आई। प्रस्ताव में कहा गया कि इस सीमा से जो भी आमदनी ऊपर होगी वह सरकार ले लेगी जिसे विकास के कामों में खर्च किया जाएगा। इसके साथ ही पार्टी ने शहरी इलाकों में आवासीय भवनों के आकार को निर्धारित करते हे कहा कि कोई भी मकान 1000 गज से अधिक बड़ा नहीं होना चाहिए।

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1954 में ही पार्टी ने कहा था कि वह संविधान का पहला संशोधन खत्म कर देगी जिसमें बोलने की आजादी पर तर्कपूर्ण पाबंदियां लगाई जाएंगी। इस संशोधन से बुनियादी तौर पर अभिव्यक्ति की आजादी खत्म हो जाती क्योंकि तर्कपूर्ण पाबंदिया बहुत व्यापक थीं। जनसंघ को ऐहसास हुआ कि यह ऐसा कदम था जिसे चुनौती दी जा सकती थी। हालांकि 1954 के बाद संविधान में संशोधन को बदलकर बोलने की आजादी, लोगों के जमा होने की आजादी पर पाबंदी के उसके वादे घोषणापत्र से गायब हो गए।

मजेदार बात है कि जनसंघ ने यह भी कहा कि यह एहतियाती तौर पर हिरासत में लिए जाने के कानून को खत्म कर देगी। उसका कहना था कि यह निजी आजादी का उल्लंघन है। 50 के दशक में यह वादा बार-बार दोहराया गया। लेकिन बदलते वक्त क साथ जनसंघ और बीजेपी एहतियाती हिरासत के कानून का इस्तेमाल करने में माहिर हो गई और उसने यूएपीए जैसे कानून देश पर लाद दिए। हालांकि अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद में मूर्तियों को जनसंघ की स्थापना से पहले 22-23 दिसंबर 1949 की रात में रखा गया गया था, लेकिन 1951 से लेकर 1980 तक इसके घोषणापत्र में अयोध्या या राम मंदिर का जिक्र नहीं था।

रक्षा के मोर्चे पर इसके विचार थे कि देश के सभी लड़के-लड़कियों को अनिवार्य रूप से सैन्य प्रशिक्षण दिया जाए, मजल लोडिंग गन (18वीं शताब्दी की एक बंदूक) के लाइसेंस खत्म किए जाएं और एनसीसी का विस्तार किया जाए।

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मजेदार बात यह है कि आज के आत्मनिर्भर भारत का नारा जनसंघ के उस स्वदेशी अर्थ का संकेत है दिसमें स्थानीय उद्योगों को सब्सिडी देने और इनके कीमतों की रक्षा की जाएगी, उपभोक्ता वस्तुओं और विलासितापूर्ण सामान के आयात को उत्साहित नहीं किया जाएगा। हड़ातल और तालाबंदी जैसे श्रम अधिकारों को रोका जाएगा।

1957 में, पार्टी ने घोषणा की कि वह आर्थिक क्रम में 'क्रांतिकारी बदलाव' पेश करेगी, जो 'भारतीय जीवन मूल्यों को ध्यान में रखते हुए' होगा। हालाँकि, इनके बारे में विस्तार से नहीं बताया गया था और न ही किसी भविष्य के घोषणापत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन के इस विषय को फिर से उठाया गया। सांस्कृतिक रूप से, पार्टी शराब के खिलाफ मजबूती से खड़ी रही और राष्ट्रव्यापी निषेध की मांग की। पार्टी चाहती थी कि अंग्रेजी को समाप्त कर दिया जाए और सभी क्षेत्रों में अंग्रेजी की जगह स्थानीय भाषाओं और विशेषकर हिंदी का इस्तेमाल किया जाए।

जनसंघ के पहले घोषणापत्र के उलट पार्टी ने फिर संविधान पर सकारात्मक या नकारात्मक कोई टिप्पणी नहीं की। यहां तक कि इसके प्रतिनिधि आदर्शों पर भी खामोशी रही। आम्बेडकर ने हिंदू पर्सनल लॉ में मामूली बदलाव का प्रस्ताव किया था, खासकर महिलाओं के लिए विरासत के सवाल पर। उन्होंने पारंपरिक वंशानुक्रम कानून के दो प्रमुख रूपों की पहचान की और उनमें से एक को महिलाओं के लिए वंशानुक्रम को उचित बनाने के लिए संशोधित किया। 1951 के अपने घोषणापत्र में जनसंघ ने इस सुधार का विरोध किया।

हालांकि जनसंघ अपनी मुस्लिम विरोधी मंशा का संकेत देता रहा, लेकिन जनसंघ ने बीजेपी तरह खुलकर मुसलमानों के प्रति नापसंदगी कभी जाहिर नहीं की। जनसंघ अपने बहुंसख्यवाद या प्रमुखवाद को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने में असमर्थ रहा जबकि बीजेपी ने इसका खुलकर प्रदर्शन किया।

ऐसा इसलिए था क्योंकि इसके पीछे एक विशिष्ट कार्यक्रम का अभाव था, जिसकी वजह से मुस्लिम विरोधी भावना को बढ़ाया जा सकता था, जैसे कि बाबरी मस्जिद के खिलाफ अभियान। उस समय बाबरी मस्जिद एक महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं थी। राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़े पैमाने पर जुटने वाले मुद्दे की कमी का मतलब था कि जनसंघ एक मामूली राजनीतिक खिलाड़ी बनकर रह गया, जिसे प्रत्येक चुनाव में कुछ ही सीटें मिलती रहीं। 1971 में जनसंघ ने 22 सीटें और 7 प्रतिशत वोट हासिल किए, जिससे यह देश की चौथी सबसे बड़ी पार्टी बन गई। पहले आडवाणी और फिर विशेष रूप से मोदी के नेतृत्व में बीजेपी कैडर आधारित पार्टी से बदलकर जनाधार वाली पार्टी बन सकी। इस सारे घटनाक्रम को इस नजर से देखना चाहिए चाहिए एक सुसंगत विचारधारा की अनुपस्थिति में आखिर परिवर्तन का अर्थ क्या है।

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