मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में बदलाव के जनादेश के साथ सत्ता में वापस आई थी। इसी बदलाव के जनादेश में उसे 2014 की तुलना में 2019 में अधिक सीटें और अधिक वोट मिले। मतदाताओं ने इस हद तक एनडीए को समर्थन दिया कि इससे पहले हमारे यहां हमारे सिस्टम जैसा कभी नहीं हुआ था।
एनडीए की विचारधारा को लागू करने का काम 2019 में तुरंत शुरु हो गया। सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2017 में तीन तालक को अवैध घोषित कर दिया था और इस प्रथा को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। लेकिन बीजेपी ने फैसला किया कि इस पर भी कुछ करना चाहिए र उसने जुलाई 2019 में पहले से गैरकानूनी घोषित कर दी गई इस प्रथा का अपराधीकरण कर दिया गया। यानी तीन तलाक को अपराध बना दिया। देश में समान नागरिक संहिता को लागू करना 1950 के दशक से ही बीजेपी /जनसंघ के एजेंडे का हिस्सा रहा है, और तीन तलाक का अपराधीकरण इस मायने में एक तरह की जीत थी।
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अगले ही कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया गया और कश्मीर के सभी गैर-बीजेपी नेताओं को अनिश्चित काल के लिए जेल में डाल दिया गया। ध्यान रहे कि कश्मीर से धारा 370 हटाना भी 1950 के दशक में से ही बीजेपी के एजेंडे का दूसरा हिस्सा था। इसके दो महीने बाद, सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या पर फैसला सुनाया और विवादों में घिरी बाबरी मस्जिद को हिंदू पक्ष को सौंप दिया।
छह महीने के भीतर ही मोदी ने उन तीनों अहम मुद्दों को हकीकत में बदल दिया जिसके लिए उनकी पार्टी दशकों से प्रचार कर रही थी। अगले ही महीने बीजेपी ने कहा कि वह अपने घोषणापत्र में किए गए नागरिकता के वादे को भी पूरा करेगी।
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2019 के बीजेपी घोषणापत्र में 'घुसपैठ से मुकाबला' शीर्षक के हिस्से में लिखा गया था: "अवैध अप्रवास के कारण कुछ क्षेत्रों की सांस्कृतिक और भाषाई पहचान में भारी बदलाव आया है, जिसके परिणामस्वरूप स्थानीय लोगों की आजीविका और रोजगार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इन क्षेत्रों में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर की प्रक्रिया को प्राथमिकता के आधार पर हम तेजी से प्राथमिकता के साथ पूरा करेंगे। भविष्य में हम देश के अन्य हिस्सों में चरणबद्ध तरीके से एनआरसी लागू करेंगे।'
इस प्रक्रिया के पहले चरण के रूप में, जैसा कि अमित शाह ने अपने प्रसिद्ध ‘क्रोनोलॉजी’ वाले भाषण में कहा था, बीजेपी ने नागरिकता संशोधन अधिनियम पारित किया। इस कानून से कानून पड़ोसी देशों के गैर-मुसलमानों को शरण दी जानी है और फिर घर-घर जाकर एनआरसी के जरिए 'घुसपैठियों' और 'दीमकों' को बाहर निकाला जाएगा।
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लेकिन बीजेपी को अनुमान नहीं था कि भारत के मुसलमान इस तरह से इसका विरोध करेंगे और पास होने के बावजूद और 20 महीने गुजरने के बाद भी इसे लागू नहीं किया जा सका है। 2019 के घोषणापत्र की अहम वादा एनआरसी भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। ध्यान रहे कि दिल्ली में फरवरी 2020 में हुए दंगे भी इसी की प्रतिक्रिया थी।
यहां तक हम देखते हैं कि बीजेपी कुछ पीछे हटी है लेकिन जनादेश को लागू करने की भावना अभी भी मजबूत है। इसी दौरान जून 2020 में कृषि अध्यादेश लाया गया,लेकिन सरकार और उसके सहयोगियों को यह अनुमान नहीं था कि कृषि कानूनों का इस तरह से विरोध होगा। यहां तक कि एनडीए में शामिल पंजाब की प्रमुख पार्टी, अकाली दल को अहससा हुआ कि इन कानूनों से किसान बेहद नाराज हैं तो उसने ने सरकार से नाता ही तोड़ लिया।
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कृषि अध्यादेशों का मसौदा तैयार करने और सितंबर में पारित कर कानून बनाने के बीच देश के सामने कोरोना संकट भी था और देश इस वायरस की पहली लहर से जूझ रहा था। इस दौरान दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुई थीं, एक था देशव्यापी लॉकडाउन और दूसरा था प्रवासी मजदूरों का देश के पश्चिम और दक्षिण हिस्सों से वापस उत्तर और पूर्व की तरफ वापस लौटना। इसके चलते देश ने चार दशकों में पहली बार आर्थिक मंदी का सामना किया।
आर्थिक संकट वास्तव में नोटबंदी के बाद से धीरे-धीरे सामने आ रहा था, लेकिन न तो सरकार ने इसे समझकर स्वीकार किया और न ही इस बारे में कुछ बात की। लेकिन बाहरी या बाकी दुनिया ने इसे अच्छे से समझा और इसका नोटिस लिया। 2014 में, भारत का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद ($1573) 1.17 लाख रुपये, बांग्लादेश के ($1118) या 83,000 रुपये से लगभग 50 प्रतिशत आगे था। लेकिन वित्त वर्ष 2020-21 के अंत में, बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति जीडीपी 2227 डॉलर या 1.65 लाख रुपये है जबकि भारत की प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष जीडीपी 1947डॉलर या 1.45 लाख रुपये है। यानी बांग्लादेश भारत से आगे निकल गया। हम कब तक बांग्लादेश के पीछे रहेंगे कहा नहीं जा सकता। यहां से तब तक बांग्लादेश से पीछे रहेंगे जब तक कुछ बदल नहीं जाता।
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न्यायपालिका ने कृषि कानूनों के मुद्दे पर मोदी सरकार की मदद की कृषि कानूनों को ठंडे बस्ते में डालने के साथ ही एक विशेषज्ञ समिति से 'सीलबंद लिफाफे' में अपने विचार देने के साथ ही इसे सार्वजनिक न करने को कहा। सरकार ने तो खुद आवश्यक वस्तु अधिनियम को उलट कर कृषि कानूनों का उल्लंघन किया था, लेकिन इन कानूनों को पीछे छोड़कर सरकार आगे बढ़ गई है जबकि किसान अभई भी सड़क पर हैं और सरकार को अब कृषि कानूनों की परवाह नहीं है।
अन्य मुद्दों पर भी सरकार की कामयाबी कोई बहुत स्पष्ट नहीं रही है जितनी कि उसे उम्मीद थी। कश्मीर अभी भी अशांत है और जेल में बंद नेताओं ने स्थानीय चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया। कश्मीर की बहुसंख्या आबादी अभी भी निराश है और उसका मोदी सरकार क फैसले का विरोध जारी है। लद्दाख की स्थिति में बदलाव से चीन नाराज है और हमने उसके परिणाम देखे हैं।
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समान नागरिक संहिता का वास्तविक लक्ष्य वास्तव में बहुविवाह है और इसलिए तीन तलाक पर जीत का मतलब कुछ नहीं है। न्यायपालिका ने मंदिर पर, और अन्य मुद्दों पर भी कश्मीरियों की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं को न सुनकर, सीएए की वैधता को न सुनकर और 370 के कदम की वैधता को न सुनकर एक तरह से सरकार का साथ दिया। जिस जज ने दिल्ली दंगों के लिए बीजेपी नेताओं कपिल मिश्रा और अनुराग ठाकुर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए कहा था, उसी रात उनका तबादला कर दिया गया था।
लेकिन दुर्भाग्यवश देश की गिरती अर्थव्यवस्था सुधारने में जज कोई मदद नहीं कर सकते। नौकरियों की कमी और बढ़ती महंगाई पर सरकार के साथ नहीं खड़े हो सकते। ध्यान रहे देश के तमाम हिस्सों में पेट्रोल की कीमत 100 रुपए प्रति लीटरसे अधिक है।
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देश बेचैन है, लेकिन इस बेचैनी को उचित राजनीतिक अभिव्यक्ति नहीं मिली है। एनडीए के सहयोगी नीतीश एक जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं जिसे सरकार ने अस्वीकार कर दिया है (भारत के अधिकार अभी भी एक सामाजिक आर्थिक जनगणना के आधार पर वितरित किए जाते हैं जो एक दशक पहले मनमोहन सिंह के दौर में शुरु की गई।
विदेशों में, मोदी सरकार ने अपने दोस्तों ट्रम्प, अबे और नेतन्याहू को खो दिया है। अमेरिकी दोस्त तो अपने मित्र मोदी के साथ एक व्यापार समझौता पूरा किए बिना ही चले गए।
मोदी ने 2019 में अपनी अब तक अर्जित अधिकतर राजनीतिक पूंजी खर्च कर दी है। हालांकि अभी यह पूरी तरह खत्म नहीं हुई है, लेकिन 2020 और 2021 में जो समस्याएं सामने हैं उनकी भयावहता की भावना से बचना मुश्किल है और इसके लिए कुछ विशेष ही करने की जरूर होगी जोकि फिलहाल तो होती दिखाई नहीं रही।
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