विचार

आकार पटेल का लेख: मानवता के अस्तित्व को बचाए रखने की कोशिश है इसरो का मिशन ‘चंद्रयान-2’

मानव जीवन और अवचेतन को जीवित रहना है, तो उसके लिए ब्राह्मांड ही एकमात्र स्थान है। ऐसे में हमें इसरो, नासा और चीन की स्पेस एजेंसी द्वारा किए जा रहे प्रयासों को मानव जीवन को बचाने के लिए किए जा रहे सामूहिक प्रयास के रूप में देखना होगा।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

अगर हम विकासक्रम के मुताबिक जीवन का उद्भव देखें, तो हमें मालूम पड़ता है कि इसमें कौन-कौन से महत्वपूर्ण पड़ाव थे। करीब 350 करोड़ साल पहले सिर्फ एक कोशिकीय (सिंगल सेल) जीवन हुआ करता था। इसके बाद बहु कोशिकीय जीवन, इसके बाद स्तनधारियों का विकास और फिर और भी तमाम जटिल किस्म के जीवों का उद्भव। समुद्र से शुरु हुई जीवन की यात्रा पृथ्वी पर और इसके बाद अवचेतन का विकास। इन सारे पड़ावों से होते हुए हम वर्तमान समय में पहुंचे हैं।

यहां से आगे जीवन का क्या कदम और विकास होगा? अगर हम जीवन को विकास क्रम में अपने ग्रह पर देखें तो सामने आता है कि कला, संस्कृति और भाषाएं संदर्भहीन हैं। जिस तरह सभी युद्ध लड़े गए और जिस तरह हमारा इतिहास हमें पढ़ाया गया या हमने समझा, उसका कोई महत्व ही नहीं रह गया है। इतिहास के सभी महापुरुष और महिलाएं भी संदर्भहीन हो चुके हैं।

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ऐसे में इस आधार पर जीवन का अगला पड़ाव बहु ग्रह होना चाहिए। यानी, मानव सभ्यता के विकास को पृथ्वी से आगे अपने सौर्यमंडल के दूसरे ग्रहों और आकाशगंगा में या फिर उससे भी आगे ले जाना चाहिए। जब हम इतिहास और उद्भव के साथ महत्वकांक्षाओं को देखते तो बहुत सारी चीज़ें अर्थहीन हो जाती हैं। एक दूसरे के साथ हमारी समस्याएं और राष्ट्रों और धर्म के आधार पर हमारे मतभेद भी बहुत सूक्ष्म और अर्थहीन लगने लगते हैं।

हमें चंद्रयान की असफलता को भी इसी पैमाने से देखना चाहिए। इसका एक लक्ष्य यह जानना भी था कि चंद्रमा पर बर्फ के रूप में कितना पानी मौजूद है, क्योंकि चंद्रमा पर इंसानों के बसने के लिए यह जरूरी है। इसी से एक से अधिक ग्रहों पर मानव सभ्यता के बसने का रास्ता खुलता जब हम चंद्रमा पर पानी खोज पाते और उसका इस्तेमाल कर पाते।

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पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण इतना अधिक है कि अपनी अंतरिक्ष यात्राओं के लिए हमें बहुत कुछ साथ ले जाना होता है। रॉकेट के कुल वजन के 10 फीसदी से भी कम का भार कक्षा में भेजा जा सकता है। बाकी का 90 फीसदी भार ईंधन और दूसरे कंटेनर का होता है जो शुरुआती मिनटों के लिए होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि कक्षा यानी ऑर्बिट को भेदन के लिए 28000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार चाहिए होती है। अगर को भी वस्तु इससे कम गति से अंतरिक्ष की तरफ जाएगा तो पृथ्वी का गुरुत्वाकर्ण उसे अपनी ओर वापस खींच लेगा।

अगर हमें 4 वर्ष या इससे अधिक की यात्रा करनी है (मंगल ग्रह पर किसी मानव के जाने और वापस आने में इतना ही समय लगता है), तो इसके लिए जरूरी भोजन और पानी के साथ ही ईंधन भी एक बार में नहीं जा सकता। यह सब हमें या तो साथ ले जाने का उपक्रम करना होगा या फिर इसे किसी और जगह उत्पन्न करना होगा। हममें से कई लोग गरीब देशों की सरकारों द्वारा ऐसे प्रोजेक्ट पर इतना भारी-भरकम खर्च करने के पक्षधर नहीं हैं। फिर, भी कुछ चीज़ें हैं जिन पर ध्यान देना चाहिए।

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मैंने पहले भी लिखा है कि अंतरिक्ष अनुसंधान हमारे खुले मस्तिष्क को सामने लाने का साधन भी है। ऐसे में जीवन के उद्भव और उसके आकार-प्रकार को देखें तो निश्चित तौर पर मौजूदा मुद्दों को लेकर हमारा नजरिया बदलेगा।

एक नाकाम प्रयास को नाकामी ही माना जाएगा और अगर इससे हमने कुछ नहीं सीखा जो इसे नुकसान भी कहा जाएगा। अंतरिक्ष बहुत खतरनाक है और इससे साधने में और भी कई नाकामियां सामने आ सकती है। इस तरह उद्भव के अगले स्तर पर मानव क्षमता की परख भी होगी अगर हम किसी प्रयास को दुर्घटनावश या संयोग से न करें बल्कि जानबूझकर कुछ तलाशने की कोशिश करें।

दुनिया की सबसे बड़ी अंतरिक्ष कंपनी स्पेसएक्स ऐसी पहली निजी कंपनी है जिसने 10 साल पहले अंतरिक्ष की कक्षा में रॉकेट भेजा था। यह कंपनी अपने पहले तीन प्रयासों में नाकाम रही थी, लेकिन इसके पास पर्याप्त धन था कि वह चौथी बार कोशिश कर सके, और इस तरह यह कामयाब हुई।

और, आज करीब एक दशक बाद, कंपनी ने इस क्षेत्र में जबरदस्त काम किया है और इंसान को रॉकेट के जरिए मंगल ग्रह पर भेजनी की तैयारी कर रही है।

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आधुनिक दौर में तकनीकी बहुत तेजी से विकसित होती हैं, क्योंकि अब कम्प्यूटर की शक्ति का इस्तेमाल कर बहुत कुछ करना संभव हो पाया है। हमारे अपने जीवनकाल में ही बहुत कुछ संभल हो सकेगा, बल्कि यूं कहें कि कुछ ही वर्षों में क्या कुछ हो पाएगा, उसकी अभी कल्पना भी नहीं की जा सकती।

लेकिन, यह भी होगा कि पृथ्वी मौजूदा जीवन को बहुत दिन तक सहने या उसका भार ढोने में सक्षम नहीं रहेगी। कोई धूमकेतु गिरेगा, या कुछ ऐसा होगा कि पृथ्वी पर जीवन नषट हो जाएगा। यह एक तथ्य है। यह भी नहीं हुआ तो तय मानो कि करीब एक अरब साल बाद सूर्य अपनी ऊर्जा खोलेगा और एक बेहद बड़े लाल गोले में बदलेगा, जो पृथ्वी जैसे गृहों को निगल जाएगा।

मानव जीवन और अवचेतन को जीवित रहना है, तो उसके लिए ब्राह्मांड ही एकमात्र स्थान है। ऐसे में हमें इसरो, नासा और चीन की स्पेस एजेंसी द्वारा किए जा रहे प्रयासों को मानव जीवन को बचाने के लिए किए जा रहे सामूहिक प्रयास के रूप में देखना होगा।

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