दुनिया में एक नकलची देश है। वह आज के भारत की कॉपी करता रहता है। सुविधा के लिए मैं उसे फलां देश कहूंगा। उस देश में कोई महात्मा गांधी भी हुए थे, मगर उस देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री भी मोदी-शाह जैसे हैं। फलां देश के मोदीजी ने अपने महात्मा गांधी के 'वध दिवस' पर फोदरा में असत्य और हिंसा विश्वविद्यालय की आधारशिला रखने का निर्णय लिया है ताकि सत्य और अहिंसा का विधि-विधानपूर्वक अंतिम क्रियाकर्म किया जा सके! इस विश्वविद्यालय का उसी दिन, उसी समय शुभारंभ होगा, जिस दिन मोदीजी शंख ध्वनि के बीच राममंदिर के प्रथम दर्शन प्राप्त करेंगे। सूत्रों के अनुसार यह विश्वविद्यालय राममंदिर से भी भव्य होगा। इसमें असत्य देवता का विशाल मंदिर भी होगा।
सूत्रों के अनुसार फलां देश के फलां प्रधानमंत्री इसके आजीवन कुलाधिपति और गृहमंत्री इसके आजीवन कुलपति होंगे। इसकी कार्यकारी परिषद के सदस्यों में राष्ट्रीय गोदी चैनलों के एंकर और भारत के संबित पात्रा जैसे 'विद्वान' शामिल किए जाएंगे! विधि विशेषज्ञों से सलाह ली जा रही है कि क्या कानून में ऐसा प्रावधान करना संभव है कि इस जीवन के बाद भी कुलाधिपति और कुलपति के पद पर बने रह सकते हैं? वहां के कानून मंत्री ने कहा है कि इसमें कोई बाधा नहीं है बल्कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री पदों के लिए भी ऐसी व्यवस्था संभव है। इसके लिए संविधान-कानून किसी में संशोधन आवश्यकता नहीं है। राष्ट्रपति का अध्यादेश ही काफी है।
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सूत्रों के अनुसार मोदीजी इस बात से नाराज हैं कि इस विश्वविद्यालय की परिकल्पना उनकी है, मगर श्रेय फलां देश को मिल रहा है। किसी ने उनकी योजना का अपहरण करके उस देश को बेच दिया है। इसकी जांच के आदेश दिए गए हैं।अगर दोषी भाजपाई हुआ तो वह देशभक्त और नहीं हुआ तो देशद्रोही माना जाएगा!
फलां देश मानता है कि भारत सरकार का दावा कुछ भी हो मगर असत्य और हिंसा विश्वविद्यालय खोलने पर कॉपीराइट अब हमारा है। भारत बताए कि उसके किस प्राचीन ग्रंथ में इसका उल्लेख है? फलां देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री प्रसन्न हैं कि अब उनके देश का नाम दुनिया में आदर से लिया जाएगा। उनका देश अब जगद्गुरु माना जाएगा, भारत नहीं। भारत के संघ प्रमुख को यह आइडिया इतना पसंद आया है कि उन्होंने इस अवसर पर वहां मंच पर उपस्थित होकर दो शब्द कहने की अनुमति मांगी है।
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ज्ञात हुआ है कि अमेरिकी राष्ट्रपति फलां देश की इस योजना से बहुत प्रभावित हैं। उन्होंने इस अवसर पर उपस्थित रहना सहर्ष स्वीकार किया है। वह चाहते हैं कि उनके और फलां देश के विशेषज्ञ मिलकर इस तरह की परियोजना उनके देश के लिए भी तैयार करें। शीघ्र ही वहां की बीजेपी के आईटी सेल के प्रमुख वाशिंगटन में अमेरिकी प्रशासन के विशेषज्ञों से इस बारे में सविस्तार चर्चा करेंगे।
अन्य देशों के लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित तानाशाहों की इस अवसर पर उपस्थिति को सुनिश्चित करने के प्रयास चल रहे हैं। रूसी राष्ट्रपति के साथ भारतीय प्रधानमंत्री को भी आमंत्रित करने के विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। मोदीजी ने कहा है कि वह उनके आइडिया को चुराने वाले देश के कारनामे को वहां जाकर वैधता नहीं देगे। वह अन्य देशों के प्रमुखों को भी राजी करेंगे कि वे भी न जाएं।
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अभी यह निर्णय होना बाकी है कि इसका नाम एडोल्फ हिटलर, मुसोलिनी के नाम पर रखा जाए या मोदी सरकार की नाराजगी दूर करने के लिए हेडगेवार, मुंजे, गुरु गोलवलकर या नाथूराम गोडसे में से किसी के नाम पर। इस अवसर पर संभावना है कि फलां देश के प्रधानमंत्री यह घोषणा कर सकते हैं कि आज से असत्य को ही अधिकृत रूप से सत्य माना जाएगा। अगर वहां का कोई नागरिक इसके विपरीत आचरण करता पाया गया तो उसकी सजा वही होगी, जो गोहत्या की होती है।
इस अवसर पर झूठ को पैर देने का प्रस्ताव भी सामने आया था। अभी तक यह माना जाता है कि झूठ के पैर नहीं होते मगर प्रधानमंत्री कार्यालय और गृह मंत्रालय झूठ को पैर देने से सहमत नहीं हैं।पैर होंगे तो भय है कि झूठ पैदल-पैदल चलना आरंभ कर देगा और यह इस विश्वविद्यालय के मूल उद्देश्योंं के प्रतिकूल होगा। एक मौलिक विचार यह भी सामने आ रहा है कि इसमें फर्जी बीए या एमए पास को न केवल प्राथमिकता के आधार पर बल्कि नि:शुल्क प्रवेश देने के साथ ही होस्टल और मेस की मुफ्त सुविधा भी दी जाए। साथ ही छात्रवृत्ति के रूप में सहायक प्राध्यापक जितनी राशि दी जाए।
इसके पुस्तकालय में विश्व में झूठ फैलाने के उपायों पर विपुल साहित्य उपलब्ध होगा। असत्य के प्रयोग की अपने ढंग की एक प्रयोगशाला भी वहां होगी। इसके मुख्य द्वार पर 'असत्यमेव जयते' लिखना उपयुक्त समझा गया है। प्रधानमंत्री ने इस सूत्र वाक्य के साथ अपने नाम के प्रयोग की अनुमति दी है। गृहमंत्री चाहते थे कि इस वाक्य के साथ उनका नाम भी संबद्ध किया जाए। उन्हें सुझाव दिया गया है कि वह कोई और ऐसा सूत्रवाक्य अपने लिए चुन सकते हैं। गृहमंत्री ने भक्तों से सुझाव आमंत्रित किए हैं।
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