नहीं, इसमें वास्तव में 99 गीत नहीं हैं लेकिन इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि ए.आर.रहमान की फिल्म के 14 साउंड ट्रैक बहुत ही पावरफुल हैं। लेखक और निर्माता के रूप में पहली बार सामने आ रहे रहमान ‘99 सॉन्ग्स’ फिल्म पर बीते एक दशक से काम कर रहे थे। कई जाने-माने गायकों ने इस संगीतमय रोमांस के लिए अपनी आवाज दी है। यह फिल्म एक कलाकार के जीवन की पड़ताल करती है कि किस तरह से जोखिम लेना एक कलाकार की महत्वपूर्ण खासियत है और किस तरह से कला और जीवन एक-दूसरे को लगातार प्रेरित करते हैं।
नए लॉन्च किए गए ट्विटर स्पेस पर रहमान ने ‘99 सॉन्ग्स’ की टीम के साथ जुनून से भरे अपने इस प्रोजेक्ट के बारे में खुलकर की बातचीत की। इस सत्र को रोलिंग स्टोन इंडिया की कार्यकारी संपादक निरमिका सिंह ने संचालित किया। संगीतकार से फिल्म निर्माण की तरफ एक लंबी छलांग लगाते हुए रहमान जानते थे, यह एक ऐसा अवसर है जिसमें वह असफल भी हो सकते हैं लेकिन उन्होंने अपने अंतर्मन की आवाज सुनी। एक ऑस्कर की जीत थी जिसने उनमें लेखक की ऊर्जा को संचालित किया। वह मानते हैं कि एक लाख अलग-अलग अफसाने हो सकते हैं जिन्हें इस दुनिया में हर एक चीज के इर्द-गिर्द बुना जा सकता है।
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हालांकि सिनेमा के पास ऐसा अहसास कराने की ताकत है कि आप पर्दे पर जो कहानी देख रहे हैं वही अंतिम सत्य है। यही वह बात है जिसकी वजह से रहमान ने फिल्म बनाने की कोशिश की। ट्विटर सेशन में रहमान ने कहा, ‘मुझे लगा कि मुझे इस पीढ़ी को यह सुंदरता और जादू देना है। इस अनुभव पर हमें गर्व है।’ एक और बात है। उन्होंने इस फिल्म के जरिये फिल्म निर्माण के व्यवसाय में बने-बनाए खांचों को तोड़ने की कोशिश की है। यह याद करते हुए वह कहते हैं कि उनसे कहा गया था कि फिल्म के प्रदर्शन से केवल चंद हफ्ते पहले ही उन्हें साउंडट्रैक को रिलीज करना चाहिए। उन्होंने ऐसा नहीं करने का फैसला किया। वह चाहते थे कि दर्शकों के पास प्रत्येक गीत को सुनने और उसमें डूबने और फिर साउंडट्रैक को अपने भीतर समेटकर उसके साथ फिल्म देखने का विकल्प हो। वह कहते हैं कि विभिन्न प्रयोगात्मक सिनेमाई उपकरणों का सीमित इस्तेमाल करना एकऔर चुनौती थी। वह कहानी को सरल और सहज तरीके से बताना चाहते थे। वह कहते हैं, ‘कई सारे स्टीरियो टाइप को तोड़ना चुनौतीपूर्ण था।’
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रहमान ने जैज और पंकरॉक के साथ प्रयोग किया है क्योंकि वह उस उत्साह को बाहर लाना चाहते थे जो एक बिगिनर महसूस करे खासकर जब उसका सामना संगीत की अनेक नई शैलियों से होता है। लेकिन यहां भी उन्हें नई चुनौती का सामना करना पड़ा– आपके पास म्यूजिकल में केवल संगीत ही नहीं हो सकता है, लोग फिल्म का आनंद उठा सकें उसके लिए एक मुक्कमल कहानी की जरूरत भी होती है।
चूंकि फिल्म एक संगीतमय कहानी है, इसलिए प्रत्येक कम्पोजिशन और गीत के पीछे बहुत सारे विचार और प्रयास रहे हैं। फिल्म में जो गीत अरमान मलिक ने गाए हैं उन्हें रहमान ने करीब दो दशक पहले लिखा और संगीतबद्ध किया था। निकिता गांधी बताती हैं कि किस तरह से उन्होंने अपने गीत के कुछ हिस्सों को तीन साल पहले रहमान के साथ जैमिंग (भीड़-भाड़) सत्र में रिकॉर्ड किया था।
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शाशा तिरुपति, जिन्होंने ‘सोजा सोजा’ गीत गाया, बताती हैं, ‘खूबी यह थी कि कई वर्षों के अंतराल में हम इतनी अच्छी तरह से घुल-मिल गए। जिस समय हमने तमिल संस्करण को रिकॉर्ड किया, तो यह अपने पुराने आरामदायक कपड़ों को पहनने जैसा था।’ वह सोचती हैं कि तीन भाषाओं में गाना गाने से उन्हें न केवल गीतकी बारीकियों को बल्कि भाषा और संस्कृतियों को भी जानने-खोजने का मौका मिला।
बेनी दयाल शाशा से सहमत थे। उन्होंने कहा कि रहमान पार्श्वगायक/गायिकाओं को उनकी सीमा तक ले गए और उनमें से बेहतरीन बाहर निकाला। इस पर रहमान मंद-मंद मुस्कराते हुए कहते हैं, ‘जब आपको सोना मिलता है, तो आप उसकी टेप नहीं बनाते हैं, उसका गहना बनाते हो।’
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प्रतिभाशाली गायक/गायिकाओं के साथ काम करते हुए रहमान ने भी लगातार अपनी सीमाओं का विस्तार किया। भले ही उनके पास हर कम्पोजिशन के लिए पहले से निर्धारित धुन थी लेकिन उन्होंने रिकॉर्डिंग के हर सत्र में उनमें सुधार किए। कुछ गीतों में कई बार दोहराव किए गए ताकि उन्हें स्क्रिप्ट के बेहद करीब लाया जा सके। कुछ मामलों में रहमान रिकॉर्डिंग के बाद ड्राइव पर निकले और उन्होंने गाने को अपनी कार में सुना, ताकि यह मालूम किया जा सके कि एफएम में ऑडियंश को यह कैसा लगेगा।
संगीत की तरह कलाकारों का चयन भी बहुत सावधानी से किया गया। रहमान किसी ऐसे व्यक्ति को चाहते थे जिसके भीतर संगीत आसानी से उतर जाए। वह एक नया चेहरा चाहते थे जिसे वह निखार सकें और जिसके पास संगीत को सीखने के लिए समय हो। आठ सौ ऑडिशंस के बाद अंततः उन्होंने इहान भट को चुना। दिलचस्प बात यह है कि संगीतकार को लगता है कि उन्होंने इस फिल्म के माध्यम से बहुत कुछ सीखा है। एक ऐसा व्यक्ति जिसने कई सारे गाने जो करीब-करीब पूरे हो चुके थे उन्हें छोड़ दिया, उसे जिम्मेदारी की कीमत का अहसास हुआ। और साथ ही एक टीम के बतौर काम करने की कीमत भी। सिनेमा के परंपरागत और आधुनिक उपकरणों के साथ कई तरह के सुरों और धुन के मिश्रण के जरिये ‘99 सॉन्ग्स’ में जादू लाने का श्रेय रहमान अपने निर्देशक विश्वेश कृष्णमूर्ति को देते हैं। ट्विटर स्पेस इवेंट में विश्वेश ने कहा, ‘हम एक संगीतकार का दुनिया के साथ रिश्ते के बारे में फिल्म बनाना चाहते थे, क्योंकि संगीत हर रोज लोगों के घावों को भरता है।’
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रहमान की हर किसी को एक सलाह हैः रचनात्मकता सपनों को साकार करने की कुंजी है। दुनिया के सामने एक उद्देश्य लाओ! संगीत, कला और दास्तानगोई को एक करियर के रूप में चुनो। हर किसी के पास क्षमता है, उन्हें बस थोड़ा साहस की जरूरत है।
और जब एकबार फिर से लॉकडाउन लगाए जा रहे हों तो ऐसे में अपनी फिल्म को रिलीज करने के लिए रहमान को भी साहस की जरूरत है। लेकिन वह आशावादी हैं कि इन विपरीत समयों में भी यह उम्मीद की एककिरण बन सकती है और कुछ की जिंदगियों को रोशन करने में मदद करेगी।
16 अप्रैल की हिंदी, तमिल और तेलुगु में रिलीज अपनी फिल्म को रहमान जरूरत से ज्यादा प्रचार नहीं देना चाहते हैं। जैसा कि उन्होंने वर्चुअल ट्विटर सत्र में कहा, ‘आप कम उम्मीदों के साथ जाइए, आप आश्चर्य के साथ लौटेंगे।’
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