अब तक कोई औपचारिक बोली नहीं लगी है और न ही आयोजन स्थल का कोई पता है। निश्चित ही भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) की अपनी कुछ न कुछ राय होगी। लेकिन गुजरात ने तो मान लिया है कि यह खेल अहमदाबाद में ही होगा। ओलंपिक मेजबानी को लेकर गुजरात किस हद तक आश्वस्त है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अहमदाबाद पर भूमि अधिग्रहण का ‘बुखार’ चढ़ा हुआ है और इसकी वजह से भ्रम और अराजकता का माहौल है
अहमदाबाद की नब्ज पर पकड़ रखने वाले नेता, नौकरशाह, रियल एस्टेट टाइकून, बिल्डिंग हस्तियों और सरकारी लाभार्थियों की मानें तो 2036 ओलंपिक की मेजबानी ‘तय’ हो चुकी है। 2036 में ओलंपिक का आयोजन अहमदाबाद-गांधीनगर की झोली में ही आना है। वैसे, अगर आप गुजरात के बाहर के भारतीय खेल उद्योग को देखें, तो संदेश है: इतनी भी जल्दबाजी का कोई मतलब नहीं! अहमदाबाद-गांधीनगर की छोड़िए, भारत के लिए भी 2036 की मेजबानी अभी दूर की कौड़ी है।
फिलहाल कुछ भी तय नहीं हुआ है और इस बात पर भी आम सहमति नहीं बनी है कि भारत को इन खेलों की मेजबानी कहां करनी चाहिए। अहमदाबाद-गांधीनगर के अलावा अन्य संभावनाएं भी हैं जिन पर बात की जा रही है। इनमें स्वर्णिम पर्यटक त्रिकोण दिल्ली-नोएडा-जयपुर शामिल है जहां खेलकूद से जुड़ा अच्छा बुनियादी ढांचा है। इसके अलावा भी कई क्षेत्रीय समूह भी हैं।
इसे लेकर कई तरह की टिप्पणियां सुनने को मिल रही हैं। मसलन, ‘हमें नहीं भूलना चाहिए कि ओलंपिक खेलों में दो सबसे महत्वपूर्ण चीजें होती हैं- एथलीट का अनुभव और दर्शकों का अनुभव। … लोग दिल्ली-आगरा-जयपुर आकर कई जगहों को देखना चाहेंगे। मुझे नहीं पता कि अहमदाबाद-गांधीनगर-बड़ौदा इस मामले में कैसे आकर्षक हो जाते हैं!’ एक अन्य व्यक्ति ने कहा, ‘यह ऐसा ओलिम्पिक होना चाहिए जो कई शहरों में आयोजित हो। इससे भारत की विविधता दिखेगी।’
अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) ने सितंबर के मध्य में मुझे ईमेल के जरिये जानकारी दी है कि ‘खेल के प्रति जबर्दस्त जुनून और युवा आबादी वाले भारत की मेजबानी में रुचि देखकर वे खुश हैं … लेकिन आईओसी को आईओए ने किसी भी चयनित क्षेत्र के बारे में सूचित नहीं किया है।’
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भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) भारत में ओलंपिक खेलों से जुड़ा सर्वोच्च संगठन है और 2036 की मेजबानी के लिए भारत की प्रस्तावित बोली उसी के माध्यम से आईओसी तक जानी है। फिलहाल, आईओए खुद उथल-पुथल में है। इसके विभिन्न गुट पदों और कार्यकाल को लेकर तलवारें भांज रहे हैं। भारत के ओलिम्पिक मैदान में सबसे ताजा हंगामा रघुराम अय्यर की आईओए के पहले पेशेवर (और वेतनभोगी) सीईओ के रूप में नियुक्ति से संबंधित है। जनवरी 2024 में उनकी नियुक्ति का आईओए कार्यकारी परिषद के 15 में से 10 सदस्यों ने विरोध किया। उन्होंने रघुराम की नियुक्ति को ‘अमान्य’ घोषित करने वाले पत्र पर दस्तखत किए और एक समानांतर सीईओ के नाम का ऐलान कर दिया। बताया जा रहा है कि अय्यर को आईओए के कार्यालय में घुसने नहीं दिया जा रहा है और नियुक्ति के बाद से उन्हें वेतन भी नहीं दिया गया है।
हालांकि पिछले नौ महीनों में आईओसी ने अय्यर के साथ संपर्क बना रखा है और 2036 की संभावित बोली लगाने वाली ओलंपिक समितियों के सीईओ के लिए पेरिस में हुए कार्यक्रम में भी उन्हें शामिल किया गया था। आईओसी के प्रवक्ता ने पुष्टि की: ‘आईओसी ने औपचारिक रूप से दिसंबर 2022 में हुए आईओए चुनावों के परिणामों को स्वीकार कर लिया है और इसके साथ ही जनवरी 2024 में सीईओ की नियुक्ति को भी और इस मामले में उसे कोई और टिप्पणी नहीं करनी है।’
आईओसी राडार पर अय्यर की निरंतर उपस्थिति आईओए के शीर्ष पर एक अप्रत्याशित बदलाव के कारण संभव हुई। जब पी.टी. उषा को दिसंबर 2022 में आईओए की पहली महिला अध्यक्ष नियुक्त किया गया तो उनसे एक रबर स्टैंप की तरह काम करने की उम्मीद थी जिसका रिमोट कंट्रोल कार्यकारी परिषद के अन्य लोगों के पास होता जिसमें भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से जुड़े लोग भी शामिल थे। कार्यकारी परिषद में संयुक्त सचिव हैं कल्याण चौबे जो भाजपा सदस्य होने के साथ-साथ अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ के अध्यक्ष हैं और आईओए के ‘कार्यवाहक’ सीईओ के रूप में काम कर चुके हैं। वरिष्ठ उपाध्यक्ष हैं अजय पटेल जो गुजरात राज्य शतरंज संघ के अध्यक्ष और गुजरात राज्य सहकारी बैंक के अध्यक्ष हैं और इन्हें केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह का विश्वासपात्र कहा जाता है।
लेकिन उषा ने सभी को चौंकाते हुए ‘अलग राह’ पकड़ ली। युवा वफादारों के एक समूह के साथ वह भारतीय खेल परिदृश्य के सबसे नए और चमकदार खेमे से जुड़ गईं जिसे आईओसी सदस्य नीता अंबानी चलाती हैं। एक पेशेवर सीईओ की मांग आईओसी ने खुद की थी और आईओए के संशोधित संविधान में इसका उल्लेख किया गया है। आईओए के नियंत्रण के लिए दो खेमों के बीच गंभीर और खामोश संघर्ष अब 2036 की बोली पर मंडरा रहा है। यह मानना कि 2036 खेलों की मेजबानी के लिए प्रतिस्पर्धी बोली के पीछे भारत का एकजुट प्रयास है, बस कहने की बात है। गुजराती संदर्भ का उपयोग करें तो उड़ान पथ पर ‘फाफड़ा’।
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2036 की बोली के बारे में एकमात्र निश्चित बात यही है कि भारत सरकार पूरी तरह से आश्वस्त है। 2020 ओलंपिक के बाद युवा मामले और खेल मंत्रालय के अधिकारी जहां ‘अगर हम बोली लगाते हैं’, ‘अगर बोली लगाएंगे’ कहकर टाल देते थे, अब कह रहे हैं कि ‘यह हो रहा है!’ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अक्तूबर 2023 में मुंबई में आईओसी की वार्षिक बैठक में अपने संबोधन में इन महत्वाकांक्षाओं को अभिव्यक्त किया: ‘2036 में भारत में ओलंपिक आयोजित करने के प्रयासों में कोई कसर नहीं छोड़ा जाएगा। यह 140 करोड़ भारतीयों का सदियों पुराना सपना है, यह उनकी आकांक्षा है।’ तब से, खेल मंत्रालय के अधिकारी इस मामले में संदेह जताने वालों पर यह कहते हुए आक्रामक हो जाते हैं कि ‘पीएमओ ने कह दिया है, आपको और क्या पुष्टि चाहिए?’
हालांकि, ‘कहां’ का सवाल अब भी बना हुआ है और यह अपने आप में बड़ा जटिल सवाल है। ‘किसलिए’ का सवाल अभी तक उठा ही नहीं है- क्या इन भव्य आयोजनों पर होने वाले भारी-भरकम र्खचे को देखते हुए भारत के लिए मेगा खेलों की मेजबानी करना प्राथमिकता होनी चाहिए? बेंगलुरू स्थित वकील नंदन कामथ ने अपनी पुस्तक ‘बाउंड्री लैब: इनसाइड द ग्लोबल एक्सपेरीमेंट कॉल्ड स्पोर्ट’ में इस भारत के मामले में शानदार तर्क दिया है:
‘भारत की राष्ट्रीय खेल प्राथमिकताएं केवल उत्कृष्टता, प्रतिस्पर्धा और प्रदर्शन के दायरे में नहीं रहनी चाहिए। मानवता के छठे हिस्से के जीवन को बेहतर बनाने के लिए खेल का उपयोग करना किसी भी अन्य प्रयास जितना ही सार्थक है … एक बार जब हम सामाजिक और संस्थागत बुनियादी ढांचे की स्थापना कर लेते हैं जो सभी भारतीयों को खेल और शारीरिक गतिविधि संबंधी लाभ दे सकता है, तो हम सार्थक रूप से ओलंपिक खेलों की मेजबानी करने में सक्षम हो सकते हैं।’ भारत की ओलंपिक परियोजना सार्थकता से कोसों दूर है और इतने बड़े पैमाने पर होने वाली फिजूलखर्ची शर्मनाक है। हां, इसमें राजनीतिक दिखावा जरूर है। इस साल के शुरू में हुए दो कार्यक्रम बढ़िया उदाहरण हैं। 11 जनवरी को गुजरात ओलिम्पिक प्लानिंग एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन लिमिटेड (गोलंपिक) ने वाइब्रेंट गुजरात शिखर सम्मेलन में 2036 के लिए अपना मास्टर प्लान पेश किया। (गोलंपिक गुजरात सरकार का स्पेशल पर्पस व्हेकिल है जिसे 2023 के अंत में 6,000 करोड़ रुपये के सार्वजनिक धन से बनाया गया था।) इस योजना में मोटेरा के सरदार वल्लभभाई पटेल स्पोर्ट्स एन्क्लेव के आसपास और उसके अंदर 350 एकड़ का खेल परिसर बनाना शामिल था जिसका केन्द्र बिंदु नरेन्द्र मोदी क्रिकेट स्टेडियम है।
आईओसी ने ओलंपिक नाम और लोगो के ट्रेडमार्क और संरक्षित नाम के ‘गोलंपिक’ के रूप में इस्तेमाल पर फौरन आपत्ति जताई। जैसे ही मामले ने तूल पकड़ा, मीडिया से ‘गोलंपिक्स’ तुरंत गायब हो गया और इसके साथ ही कंपनी का उल्लेख भी जिसे अब ‘गोइपिक’ या ‘गोपेल’ के रूप में संदर्भित किया जाता है। गांधीनगर में गुजरात के स्पोर्ट्स अथॉरिटी के प्रवेश द्वार पर उसके आधिकारिक पते पर लगा बड़ा सा ‘गोलंपिक्स’ चिह्न थोड़े समय तक लटके रहने के बाद अभी अगस्त में हटा है।
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मास्टरप्लान के सामने आने के एक सप्ताह बाद आईओए और केन्द्रीय खेल मंत्रालय ने संभावित मेजबान देशों के साथ अनौपचारिक संवाद शुरू किया जिसे आईओसी ने शुरुआती चरण की बातचीत बताया है। यह संवाद चर्चा के तीन चरणों में से पहला है। ‘अनौपचारिक’ बातचीत के बाद संवादों का सिलसिला चलता है और अंतिम निर्णय के पास आने के समय ‘लक्षित’ संवाद होता है। आईओसी के साथ भारत के पहले दो अनौपचारिक संवादों में एक स्लाइड प्रस्तुति शामिल थी जिसमें अहमदाबाद-गांधीनगर के बारे में नहीं बल्कि पूरे भारत के बारे में बात की गई थी। दूसरे संवाद में यंग इंडिया, डिजिटल इंडिया, वाइब्रेंट इंडिया से लेकर बढ़ते भारत और मजबूत मध्यम वर्ग वाले भारत जैसी बातें की गईं लेकिन अहमदाबाद-गांधीनगर का इसमें भी कोई उल्लेख नहीं किया गया।
चर्चा के दौरान मौजूद एक व्यक्ति ने बताया कि तत्कालीन खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने आईओसी को सूचित किया था कि क्षेत्र या मेजबान स्थल को अंतिम रूप नहीं दिया गया है। जून 2024 के आम चुनावों के बाद ठाकुर की जगह गुजरात के पोरबंदर से सांसद मनसुख मंडाविया को खेल मंत्री बनाया गया। बातचीत की नई श्रृंखला के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन इतना तय है कि सितंबर के अंत तक आईओसी को किसी विशेष स्थल के बारे में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं भेजी गई थी। इस आयोजन की प्रक्रिया के बारे में अच्छी समझ रखने वाले एक व्यक्ति ने कहा, ‘अब समय आ गया है कि लोग किसी शहर या शहरों के समूह के बारे में बात करना शुरू करें। आप भारत की कहानी को कितना दोहरा सकते हैं?’
इस बीच, भारत के 2036 के प्रतिद्वंद्वियों का रुख बिल्कुल स्पष्ट रहा है। हंगरी ने बुडापेस्ट की घोषणा की है तो तुर्की ने इस्तांबुल की। इंडोनेशिया चाहता है कि बोर्नियो द्वीप पर उसकी नई राजधानी नुसंतारा में एक शानदार पार्टी हो। चिली के राष्ट्रपति ने अगस्त में सैंटियागो में 2023 पैन अमेरिकन खेलों की सफल मेजबानी का जोरशोर से उल्लेख करके अपने देश की आधिकारिक बोली की पुष्टि की है। मिस्र की नई प्रशासनिक राजधानी, जिसका निर्माण 2015 से हो रहा है, अपने आप में एक संपूर्ण अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक शहर है। इसके 7,500 सीटों वाले इनडोर स्टेडियम में पहले ही 2021 में विश्व हैंडबॉल चैंपियनशिप के मैच आयोजित किए जा चुके हैं जिसमें क्वार्टर फाइनल और 2022 में विश्व शूटिंग चैंपियनशिप राइफल/पिस्टल इवेंट शामिल हैं। कतर का दोहा चर्चा में है और 2022 फीफा विश्व कप की मेजबानी उसके पक्ष को मजबूती देती है। ओलिम्पिक आयोजन की मेजबानी ऐसी प्रतिस्पर्धा है जिसमें भारत ने अस्पष्ट रहना चुना है।
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हालांकि गुजरात की सत्ता को कहीं कोई संदेह नहीं है। खेल में उत्कृष्टता या एथलीटों को बढ़ावा देने या जमीनी स्तर पर विकास में गुजरात का न्यूनतम योगदान कोई मुद्दा नहीं है क्योंकि वे ओलंपिक को बहुत अलग नजरिये से देख रहे हैं: एक ऐसा नजरिया जो बुनियादी ढांचे, निर्माण और रियल एस्टेट पर केन्द्रित है। एक स्थानीय व्यक्ति ने कहा, ‘आज अहमदाबाद आने वाले किसी भी व्यक्ति को यह कहते नहीं सुनेंगे कि ओलिम्पिक उनके शहर में आ सकता है। वे कह रहे हैं कि ओलिम्पिक यहीं हो रहा है। ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने जमीन खरीद ली है और वे मोटी कमाई का इंतजार रह रहे हैं। आम आदमी को मेजबानी की बोली या उसकी प्रक्रिया के बारे में कोई अंदाजा नहीं।’
ओलंपिक खेलों के आयोजन स्थल की तो बात ही छोड़िए, जो अब तक एक आधिकारिक ओलंपिक शहर भी नहीं है, वहां तमाम एजेंसियां विस्तार से इंजीनियरिंग और वास्तुकला की योजनाएं तैयार करने की होड़ में लगी हुई हैं। फरवरी 2021 में मोटेरा स्टेडियम का औपचारिक रूप से नरेन्द्र मोदी के नाम पर नामकरण किए जाने के चार महीने बाद अहमदाबाद शहरी विकास प्राधिकरण ने मौजूदा बुनियादी ढांचे के आसपास कमियों के बारे में विश्लेषण प्रस्तुत करने और ओलंपिक आयोजनों के लिए संभावित स्थानों का सुझाव देने के लिए सलाहकारों से प्रस्ताव आमंत्रित किए। प्राइसवाटरहाउस कूपर्स ने अनुबंध जीता और उसने अहमदाबाद-गांधीनगर के आसपास 22 उपयुक्त ओलंपिक स्थलों का सुझाव दिया।
यूके के बीडीपी (बिल्डिंग डिजाइन पार्टनरशिप) के नेतृत्व में वास्तुकला कंपनियों के समूह को खेल स्थलों के लिए इंजीनियरिंग और वास्तुशिल्प डिजाइन तैयार करने के लिए नियुक्त किया गया है। सरदार वल्लभभाई पटेल स्पोर्ट्स एन्क्लेव के 350 एकड़ के आसपास गोइपिक के काम के लिए एक ऑस्ट्रेलियाई खेल वास्तुकला फर्म पॉपुलस की सेवाएं ली गई हैं। दोनों फर्म ओलंपिक विलेज परियोजना और एसवीपीएस एन्क्लेव के अंदर अन्य स्थानों के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही हैं। जानकार लोगों का कहना है कि निर्माण अगले साल की शुरुआत में शुरू होगा। खेल एन्क्लेव से सटे इलाकों के अलावा और भी तमाम भूखंडों को ‘खेल मिशन’ द्वारा हड़पा जा रहा है जिसका न तो गठन किया गया है और न ही इस बारे में कोई औपचारिक घोषणा ही हुई है। जुलाई 2023 में पॉपुलस ने गांधीनगर के करीब आठ क्षेत्रों को खेल के बुनियादी ढांचे के लिए चिह्नित किया: मोटेरा, कोटेश्वर, भट और सुघड़ के आसपास का इलाका, चांदखेड़ा, जुंडल और कोबा के आसपास के क्षेत्र।
अहमदाबाद के पश्चिम में मणिपुर-गोधावी के ग्रामीण क्षेत्र में बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण अभियान चलाया गया है। जून 2022 में 200 एकड़ जमीन की जरूरत बताई जा रही थी जो इस मार्च में बढ़कर 500 से 1,000 एकड़ के बीच हो गई है। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार की योजना वहां 750 एकड़ में खेल, कौशल और ज्ञान गलियारा बनाने की है। किसानों ने अपनी जमीन के लिए उन्हें दिए जा रहे कम दाम का विरोध किया है और निजी निकायों द्वारा किए जा रहे जबरन अधिग्रहण के खिलाफ अहमदाबाद के जिला कलक्टर को ज्ञापन भेजा है। इन विरोध प्रदर्शनों के बारे में खबरें मोटे तौर पर नहीं ही आई हैं।
जब मैंने 2036 की बोली के नाम पर गुजरात सरकार की योजना, बुनियादी ढांचे और भूमि अधिग्रहण के बारे में पूछा तो गुजरात के खेल, युवा और सांस्कृतिक गतिविधियों के प्रमुख सचिव अश्विनी कुमार ने बताया कि वह इस समय मीडिया से बातचीत नहीं कर रहे हैं, ‘वरिष्ठ राजनीतिक नेतृत्व उचित समय पर बात करेगा।’ (कुमार गोइपिक के छह निदेशकों में से एक हैं।)
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अहमदाबाद के आस-पास के क्षेत्रों में खेल स्थलों और खेल गांवों के निर्माण में तेजी की उम्मीद में जमीन हड़पना, कोविड के बाद ओलंपिक खुद को जिस भाव के साथ पेश करना चाह रहा है, उसके बिल्कुल उलट है। एक खेल अधिकारी ने बताया, ‘आईओसी की नीति बहुत स्पष्ट है। वे नहीं चाहते कि ओलंपिक को एक सफेद हाथी के रूप में देखा जाए।’ पेरिस 2024 ने ओलिम्पिक खेलों की मेजबानी के बारे में स्थापित विचारों को बदल दिया है। इसमें लागत को नियंत्रित करने, एथलीट विलेज और इसके एक्वेटिक सेंटर के अलावा कोई नया बुनियादी ढांचा नहीं बनाने और खेलों के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। अगर लॉस एंजिल्स 2028 खेलों में ‘कार रहित’ होने के अपने वादे पर खरा उतर सकता है, तो अगले हर मेजबान देश को पर्यावरण हितैषी, समावेशी, कम खर्चे वाला होने का सबूत देना होगा। जबकि गुजरात में जो भी हो रहा है, वह जिम्मेदार, हरित खेलों के बारे में आईओसी की बातों के उलट है। एथलेटिक विरासत की बात तो छोड़ ही दें, यहां तक कि मौसम के लिहाज से भी गुजरात उच्च प्रदर्शन वाले खेलों से जुड़े प्रशिक्षण या प्रतियोगिता के लिए आदर्श इलाका नहीं है जो 1,000 एकड़ में खेल-संबंधी सुविधाएं बनाने को उचित ठहरा सके।
अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज और उनके सबसे करीबी व्यापारिक प्रतिद्वंद्वी गौतम अडानी समूह के बीच ओलंपिक के मामले में भी दिलचस्प प्रतिद्वंद्विता चल रही है। दोनों समूह निर्माण के मामले में कमर कसे हुए हैं और क्या होगा अगर बोली में अहमदाबाद जीत जाता है? जाहिर है, दांव पर होगा ओलंपिक के ही आकार का मुनाफा! लेकिन क्या होगा अगर अहमदाबाद को मेजबानी नही मिलती है? केवल उम्मीद के भरोसे किए जा रहे निर्माणों का क्या होगा? इससे किसको फायदा होगा?
इसका उत्तर दुनिया के दूसरे हिस्से से मिल सकता है। हाल ही में पैरालिंपिक में एक भारतीय आगंतुक ने खेलों के वोलंटियर को रियो के बाद कहते सुना: ‘अभी सब कुछ बंद है। हर कोई बस निर्माण करना, इवेंट करना और इसे बेहतरीन तरीके से करना पसंद करता है और उसके बाद उन्हें इन निर्माणों की परवाह नहीं होती क्योंकि उन्होंने अपना सारा पैसा कमा लिया होता है।’ बात कुछ जानी-पहचानी लग रही है?
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एक अनुभवी ओलिम्पिक दर्शक कहते हैं कि आईओसी के अध्यक्ष थॉमस बाक ‘अब तक के सबसे राजनीतिक आईओसी अध्यक्षों में एक हैं। हर दूसरे दिन वह किसी नए राष्ट्राध्यक्ष के साथ होते हैं।’ प्रासंगिक और लाभदायक बने रहने के लिए आईओसी तीन नए बाजारों को लक्षित कर रहा है: भारत को उसकी जनसंख्या के कारण, मध्य पूर्व को उसकी संपत्ति के कारण और अफ्रीका को एक स्प्रिंगबोर्ड के रूप में। महामारी के बाद पहला यूथ ओलंपिक 2026 में सेनेगल में होने जा रहा है। वह कहते हैं, ‘आईओसी भारत को लुभाने का हरसंभव प्रयास करेगा। वे भारत को 2036 देते हैं या नहीं, यह अप्रासंगिक है। इस मामले में पीछे मुड़ने का कोई रास्ता नहीं है। 2036 या 2040, हम नहीं जानते।’ आगे क्या हो सकता है, इस पर वह कहते हैं, ‘देखने की बात है कि क्या वे भारत को यूथ ओलिम्पिक की मेजबानी देते हैं? सच पूछें, तो यह वास्तव में अच्छी बात होगी क्योंकि साफ दिख रहा है कि भारत को अभी (ओलिम्पिक की मेजबानी के मामले में) पता ही नहीं कि इस समय क्या करना है। वे भ्रमित हैं।’
बात कड़वी लेकिन सच है कि गुजरात में भूमि अधिग्रहण और पेरिस में गुलाबी दीवारों वाले इंडिया हाउस के अलावा भारत की ओर से 2036 ओलंपिक की बोली के लिए कोई ठोस योजना नहीं दिखती है। शहर के एक ऊर्जावान मेयर या बोली लगाने वाली स्मार्ट टीम के करिश्माई प्रमुख की पहचान करना तो दूर की बात है, भारतीय ओलंपिक खेल अब भी टीम की ही खोज कर रहा है।
शारदा उग्रा बेंगलुरु की स्वतंत्र खेल पत्रकार हैं। यह लेख मूल रूप से ‘The India Forum’ में प्रकाशित हुआ था
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