उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पिछले दिनों विधानसभा में बिफरे हुए नजर आए। इस हद तक कि विधानसभा में भाषाई मर्यादा को ताक पर रखकर तुम और तू तक का इस्तेमाल कर बैठे। उनकी झुंझलाहट एक तरह से सही भी लगती है, कुछ चंद रोज पहले ही उन्होंने सरकारी राष्ट्रीय चैनल दूरदर्शन पर इंटरव्यू में दावा किया था कि “उत्तर प्रदेश में संगठित अपराध जीरो हो चुके हैं...।”
लेकिन उनका यह दावा बम धमाकों से उठे धुएं में हो गया, दिनदहाड़े भरे बाजार चली गोलियों की तड़तड़ाहट में खो गया। उन्होंने उत्तर प्रदेश में संगठित अपराधों के जीरो होने का जो दावा किया था उसे खुद ही अपने अधिकारिक ट्विटर हैंडल से शेयर भी किया था। सुनिए उन्हीं की जुबानी योगी आदित्यनाथ ने क्या कहा था...
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लेकिन बुलडोजर बाबा की छवि पर इतराते हुए जीरो टालरेंस की बात करने वाले योगी आदित्यनाथ के इकबाल की हकीकत क्या है, इसे सभी ने बीते दिनों प्रयागराज की सड़कों पर अपनी नंगी आंखों से देख लिया है।
सिर्फ प्रयागराज ही नहीं लखीमपुर से कानपुर और मऊ से मुजफ्फरनगर तक आये दिन सड़कों पर दिन दहाड़े गरजती गोलियां लोगों के लिए आम बात हो गई है। जीरो टॉलरेंस के सियासी जुमले के बीच माफियाओं का नेटवर्क लगातार मजबूत हो रहा है। नेशनल मीडिया में भले ही ये घटनाएं सुर्खियां नहीं बन रही हों, लेकिन माफियाओं और संगठित अपराध से आम अवाम कांप रहा है।
प्रयागराज में जिस तरह दिनदहाड़े बिना नकाब और खौफ के पूर्व विधायक राजू पाल की हत्या में मुख्य गवाह उमेश पाल के साथ गनर की हत्या की गई, वैसा जंगलराज में ही संभव है। कहने को प्रयागराज में तेज तर्रार आईपीएस रमित शर्मा पुलिस कमिश्नर हैं, लेकिन हत्याकांड ने कथित उत्तम प्रदेश की कलई खोल कर रख दी है।
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बेखौफी का ही आलम है कि उमेश पाल हत्याकांड में साजिशकर्ता के रूप में चिन्हित अधिवक्ता सदाकत खान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर में छिपा मिलता है। पुलिस ने उसे गोरखपुर से गिरफ्तार किया है। जौनपुर में बीते 26 फरवरी को पत्रकार देवेंद्र खरे को बीजेपी के जिलाध्यक्ष पुष्पराज के छोटे भाई ऋतुराज सिंह उर्फ छोटू ने इस लिए गोली मार दी कि पत्रकार ने नेताजी की कारगुजारियों को लेकर एक खबर चला दी थी। मामले में बीजेपी जिलाध्यक्ष समेत तीन के खिलाफ गंभीर मामलों में केस दर्ज किया गया है।
अपराध की घटनाओं को लेकर विधानसभा में समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के सवाल पर बौखलाए सीएम योगी के माफियाओं को मिट्टी में मिलाने के ऐलान कर दिया। इसके बाद वारदात के समय इस्तेमाल हुई एक कार चलाने वाले ड्राइवर का एसटीएफ द्वारा एनकाउंटर किया जा चुका है। हो सकता है कि आने वाले दिनों में ऐसे ही पूर्व नियोजित एनकाउंटर में हत्याकांड में शामिल अन्य भी मारे जाएं।
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कांग्रेस नेता अनिल सोनकर कहते हैं कि ‘कानपुर में पुलिस वालों की हत्या के बाद विकास दुबे और उसके साथी मारे गए। तब दावा किया गया कि माफिया और बदमाश या तो सलाखों के पीछे हैं या प्रदेश छोड़ चुके हैं। सरकार को बताना चाहिए कि प्रयागराज की सड़कों पर शूटिंग की प्रेक्टिस करने वाले कहां से आ गए।’
लेकिन शासन-प्रशासन को बचाने के लिए बीजेपी ने टीम को उतार रखा है। फिल्म अभिनेता और गोरखपुर से सांसद रवि किशन शुक्ला योगी के सुर में सुर मिलाते हुए कहते भी हैं कि ‘यूपी में बाबा बा। योगी जो कहते हैं, वह करते हैं। माफिया एक-एक कर मिट्टी में मिलेंगे। जब भी लोगों का शैतान जागेगा, उसे योगी बाबा मिट्टी में मिला देंगे।’ लेकिन वह इस सवाल पर कन्नी काट जाते हैं कि जब बुलडोजर बाबा का इतना खौफ है तो गुंडों ने बेखौफ होकर घटना को क्यों अंजाम दिया? पुलिस इंटीलेंस और एलआईयू क्यो फेल हो गई?
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इस विषय में समाजवादी पार्टी नेता राजू तिवारी कहते हैं कि ‘बुलडोजर वाली न्याय व्यवस्था में लोगों की नाउम्मीदी बढ़ रही है। योगी का इकबाल सिर्फ बयानों में है। कागजी है। लोगों को न्याय मिलता तो योगी के गोरखपुर पहुंचने पर गोरखनाथ में होने वाले जनता दर्शन में अर्जी लेकर 1000 से अधिक लोग नहीं पहुंच जाते।’
इसके अलावा उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार एनसीआरबी के आंकड़ों के आधार पर भी खुद की पीठ थपथपाती दिखती है। लेकिन, सरकारी आकड़ों के मुताबिक ही, हत्या के मामले में यूपी देश में नंबर वन है। हत्या की वजहों को देखें तो इसमें सर्वाधिक मामले विवाद और रंजिश के हैं। साफ है कि ये हत्याएं अचानक नहीं हो रहीं हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, साल 2021 में देश में हुई कुल 29,272 हत्याओं के मामलों में सर्वाधिक 3,717 हत्याएं यूपी में दर्ज हुई हैं। यूपी के शहरों में हत्याओं की बात करें तो लखनऊ में सर्वाधिक 101 मामले मुख्यमंत्री की नाक के नीचे हुए हैं। यूपी में जो हत्याएं हुईं उनमें विवाद के 849 और व्यक्तिगत दुश्मनी के 380 मामले हैं।
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ऐसा नहीं है कि अपराध के मामले में उत्तर प्रदेश योगी के दूसरे कार्यकाल में बेपटरी हुआ है। योगी के पहले कार्यकाल में नौ जुलाई 2018 को बागपत की जिला जेल में माफिया मुन्ना बजरंगी की हत्या हुई थी। इसके कुछ दिन बाद बागपत में ही बंदी ऋषिपाल की हत्या कर दी गई थी। कुख्यात गैंगस्टर अंकित गुर्जर की हत्या भी करीब डेढ़ साल पहले सबसे सुरक्षित माने जाने वाले तिहाड़ जेल में हो गई। इस हत्या को भी संगठित अपराधियों ने अंजाम दिया था।
योगी सरकार दावा करती है कि जीरो टालरेंस का ही नतीजा है कि अपराधियों के खिलाफ हुई कार्रवाई में पिछले छह साल में 44 अरब 59 करोड़ की संपत्ति जब्त हुई या उसे बुलडोजर से मिट्टी में मिला दिया गया। इस दौरान 166 अपराधी मारे गए, 58,648 पर गैंगस्टर और 807 पर एनएसए के तहत कार्रवाई हुई। 50 माफियाओं और उनके सदस्यों की लगभग 2268 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त अथवा ध्वस्त की गई।
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बीजेपी सरकार ने योगी के दूसरे कार्यकाल में माफियाओं पर नकेल कसने के लिए 61 माफियाओं की सूची तैयार की थी। मुख्तार, अतीक जैसे कुछ माफियाओं को छोड़ दें तो सूची में शामिल ज्यादातर अपने राजनीतिक आकाओं की सरपरस्ती में ठेका-पट्टी कर रहे हैं। इस सूची में त्रिभुवन सिंह, बृजेश सिंह, ध्रुव कुमार सिंह उर्फ कुंटू सिंह, गब्बर सिंह के भी नाम हैं। इन्हें लेकर सरकार पर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं।
गब्बर सिंह 27 मार्च, 2020 को बहराइच पहुंचे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मंच पर दिखा था। तब पूर्व आईएएस सूर्य प्रताप सिंह ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर लिखा था कि ‘योगी के मंच पर हिस्ट्रीशीटर देवेंद्र सिंह गब्बर की मौजूदगी पर कोई चैनल डिबेट की हिम्मत नहीं दिखा सकता।’
जीरो टालरेंस की बात करने वाली सरकार कई मामलों में मानवाधिकार आयोग और कोर्ट के हस्तक्षेप होने तक चुप्पी साधे है। 2020 में लखीमपुर खीरी में 13 वर्षीय एक लड़की की गैंगरेप के बाद हत्या राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के संज्ञान लेने के बाद योगी सरकार ने अभियुक्तों के खिलाफ एनएसए लगाने का आदेश दिया। कानपुर में संजीत यादव अपहरण कांड में पुलिस वालों ने किडनैपर्स को कथित तौर पर फ़िरौती की रक़म भी दिला दी, फिर भी संजीत की हत्या कर दी गई।
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वरिष्ठ पत्रकार उत्कर्ष कुमार का कहना है कि ‘मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी कहते थे कि हम आकड़ों में अपराध के साथ जो सामने होगा उसे मानेंगे। अखबारों के पन्नों के साथ सोशल मीडिया पर आपराधिक घटनाओं की भरमार है। लेकिन अब सीएम सिर्फ आंकड़ों की बात करते हैं। क़ानून-व्यवस्था बेहतर होने का मतलब यह भी होता है कि क़ानून का भय दिखना भी चाहिए। राजधानी लखनऊ के पॉश इलाक़े में दो लोगों की सरेराह गोली मारकर हत्या होती है। प्रयागराज में जो कुछ हुआ सीसीटीवी के माध्यम से पूरा देश देख रहा है। ऐसी बेखौफी को देखकर कहना बड़ा मुश्किल है कि अपराधियों में क़ानून का कोई खौफ है।’
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