उत्तर प्रदेश सरकार ने एक बार फिर ताजमहल को नजरअंदाज किया है। हाल में विश्व पर्यटन दिवस पर पर्यटन विभाग द्वारा प्रकाशित विज्ञापन में 17वी शताब्दी में निर्मित ऐतिहासिक विरासत ताजमहल को शामिल नहीं किया गया है। इस विज्ञापन में प्रदेश के 12 ऐसे स्थलों को दर्शाया गया है, जो पर्यटकों को आकर्षित कर सकते हैं। लेकिन प्रति वर्ष 6 मिलियन से अधिक पर्यटकों को आकर्षित करने वाले ताजमहल को इसमें जगह नहीं मिली है।
उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा विश्व पर्यटन दिवस- 27 सितंबर को अंग्रेजी और हिंदी दैनिक समाचार पत्रों में एक विज्ञापन प्रकाशित किया गया। दरअसल पर्यटन दिवस पर आयोजित एक वेबिनार के लिए यह विज्ञापन दिया गया था, जिसमें मुख्य अतिथि प्रदेश के पर्यटन मंत्री डॉक्टर नीलकांत तिवारी थे। इसी विज्ञापन में प्रदेश के कई पर्यटन स्थलों को तो शामिल किया गया, लेकिन पूरी दुनिया में उत्तर प्रदेश का नाम पहुंचाने वाले ताजमहल को ही जगह नहीं दी गई।
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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मुगल बादशाह शाहजहां द्वारा अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में आगरा में युमना किनारे बनवाया गया ताजमहल 4 लाख के करीब लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार देता है। लेकिन प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद से संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) में दर्ज ताजमहल को नजरअंदाज किया जा रहा है। प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने लिए 2017 में प्रकाशित एक सरकारी पुस्तिका में ताजमहल का जिक्र तक नहीं किया गया था।
दरअसल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं भी लगातार मुगल बादशाहों की निंदा करते रहते हैं।हाल में ही उन्होंने ताजमहल के निकट बन रहे संग्रहालय का नाम शिवाजी महाराज पर रखने का फैसला लिया। इस मौके पर भी कई ऐतिहासिक शहरों का नाम बदलने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने बयान में कहा कि “मुगल हमारे हीरो कैसे हो सकते हैं?” बता दें कि इस संग्राहलय कि शुरुआत 2016 में समाजवादी पार्टी के कार्यकाल में हुई थी।
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विदेशों से भारत आने वाले आम पर्यटकों के अलवा विश्व नेता भी आगरा में ताजमहल देखने आते हैं। इसी साल फरवरी में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी अपने भारत दौरे पर ताजमहल देखने गए थे। दिलचस्प बात यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ताजमहल की तस्वीर ही उपहार स्वरूप भेंट की थी।
इतिहासकारों का कहना है कि ताजमहल को नजरअंदाज करना उस विचारधारा (आरएसएस) का हिस्सा है, जिससे भारतीय जनता पार्टी और मुख्यमंत्री प्रभावित हैं। प्रसिद्ध इतिहासकार इरफान हबीब ने कहा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आरएसएस की विचारधरा से प्रभावित होकर प्राचीन स्मारकों को नजरअंदाज कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कोई भी ताजमहल को कितना भी नजरअंदाज करे, लेकिन जो इतिहास में दर्ज हो चुका, उसको बदला नहीं जा सकता है। हालांकि, उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि भारत में आने वाली पीढ़ियों को अज्ञानता के अंधकार में धकेला जा रहा है, उनको गलत इतिहास पढ़ाया जाएगा।
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ऐसे ही विचार इतिहासकार रवि भट्ट के हैं, जिनका कहना है, “किसी को पसंद हो या नहीं, इतिहास जैसा लिख दिया गया वैसा ही रहेगा”। इतिहासकार योगेश परवीन ने कहा कि उनको आश्चर्य हुआ की पर्यटन की पत्रिका और विज्ञापन में ताजमहल का जिक्र तक नहीं है।
वहीं धरोहरों के संरक्षण के लिए सक्रिय रहने वाले मोहम्मद हैदर कहते हैं कि ताजमहल पर कोई फर्क नहीं पड़ता, किसी विज्ञापन में उसे दिखाया जाए या नहीं दिखाया जाए। मोहम्मद हैदर कहते हैं कि “ताजमहल, यूनेस्को में दर्ज भारत की एक धरोहर है, जिसकी सारे विश्व में एक अलग पहचान है। ताजमहल मुगल वास्तुकला का एक खूबसूरत नमूना है, जिसको प्रचार सामग्री में उसका नाम होने या ना होने से फर्क नहीं पड़ता। ताजमहल हमेशा से पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र था और रहेगा।”
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