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उत्तर प्रदेश: ब्राह्मणों की मदद की मार्केटिंग कर आग पर पानी डालने की कोशिश कर रही योगी सरकार

सोशल मीडिया पर तमाम ब्राह्मण संगठन सवाल कर रहे हैं कि ‘आखिर, विधायक कुलदीप सेंगर, पूर्व मंत्री चिन्मयानंद, राजा भैया और माफिया बृजेश सिंह जैसे लोगों के कारनामों पर सरकार की खामोशी क्यों है?’

फोटो : सोशल मीडिया
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कानपुर वाले माफिया विकास दुबे को कथित पुलिस एनकाउंटर में मार गिराने के बाद प्रयागराज, रायबरेली से लेकर एटा तक में हुई ब्राह्मणों की हत्याओं के बाद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ जिस तरह विपक्ष के साथ खुद भाजपा सांसद-विधायक मुखर हो गए हैं, उससे चिंतित सरकार डैमेज कंट्रोल मोड में आ गई है। योगी सरकार न सिर्फ ब्राह्मणों की मदद करती दिखना चाह रही है बल्कि इसकी मार्केटिंग भी कर रही है। विकास दुबे-जैसे एनकाउंटर का खौफ दिखाकर ज्ञानपुर के विधायक विजय मिश्रा ने जिस तरह खुद को सुरक्षित किया, उससे ही लगता है कि सरकार ब्राह्मणों के खिलाफ कार्रवाई में पहले जैसी सख्त नहीं है।

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उत्पीड़न और हत्याओं के मामलों में घिरी सरकार के बचाव की मुद्रा में आने की वजह भी है। खुद योगी के गृह जनपद- गोरखपुर, में उनके करीबी विधायक डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल का एक कथित ऑडियो (इसकी पुष्टि नवजीवन नहीं करता) वायरल हुआ जिसमें वह भाजपा कार्यकर्ता से कहते सुनाई दे रहे हैं कि ‘ठाकुरों की सरकार है। डर कर रहिए उनसे।’ अखिल भारतीय ब्राह्मण संगठन के अध्यक्ष असीम पांडेय पहले ही आरोप लगा चुके हैं कि ‘विकास दुबे की हत्या संवैधानिक मूल्यों की हत्या है। उसकी जगह कोई क्षत्रिय होता, तो क्या ऐसा ही हश्र होता?’ इसीलिए सोशल मीडिया पर तमाम ब्राह्मण संगठन सवाल कर रहे हैं कि ‘आखिर, विधायक कुलदीप सिंह सेंगर, पूर्व मंत्री चिन्मयानंद, राजा भैया और माफिया बृजेश सिंह-जैसे लोगों के कारनामों पर सरकार की खामोशी क्यों है?’

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सरकार के लिए ये बातें परेशानी बन गई हैं। इसीलिए ब्राह्मण विरोधी छवि में सुधार को लेकर सरकार ने कोशिशें तेज की हैं। पिछले दिनों गोरखपुर की विधि छात्रा प्रज्ञा मिश्रा ने घुटने की हड्डी टूटने के बाद विधायक से लेकर जिलाधिकारी से आर्थिक मदद को गुहार लगाई लेकिन निराशा हाथ लगी। प्रज्ञा ने फिल्म अभिनेता सोनू सूद को ट्वीट किया और चंद दिनों बाद गाजियाबाद के प्रतिष्ठित अस्पताल में उनका ऑपरेशन हो गया। प्रज्ञा के बयानों से मुश्किल में फंसी सरकार ने कैम्पियरगंज की मधुरिमा मिश्रा के हृदय का वॉल्व बदलवाने को मुख्यमंत्री राहत कोष से दस लाख की मदद में देरी नहीं की।

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फोटो : Getty Images

मुख्यमंत्री की मीडिया सलाहकार टीम ने खबर को छपवाने के लिए गोरखपुर से लेकर लखनऊ के संपादकों को फोन तक किया। गोरखपुर के एक पार्षद कहते हैं कि ‘गोरखनाथ मंदिर से चंद किलोमीटर दूरी पर रहने वाले कैंसर पीड़ित बैजनाथ की मदद की फाइल चार महीने तक अफसरों की मेज पर धूल फांकती रही। बाद में उनकी मौत हो गई। जाति देखकर मदद दुर्भाग्यपूर्ण है।’ सरकार के बचाव में उतरे भाजपा एमएलसी उमेश द्विवेदी ने दावा किया है कि ‘सरकार जल्दी ही प्रदेश के गरीब ब्राह्मणों के लिए बीमा और मेडिक्लेम पॉलिसी लाने वाली है ताकि उन्हें जीवन की सुरक्षा मिल सके।’

दरअसल, प्रदेश के बारह फीसदी ब्राह्मणों पर सभी राजनीतिक दलों की नजर है। यूपी में अभी तक के 19 मुख्यमंत्रियों में सर्वाधिक 6 ब्राह्मण रहे हैं। ब्राह्मण मुख्यमंत्रियों ने सूबे में 23 साल तक राज किया। प्रदेश के 62 जिलों से 12 फीसदी तक ब्राह्मण मतदाता हैं। कांग्रेस के प्रदेश महासचिव विश्वविजय सिंह कहते हैं कि ‘मुख्यमंत्री जब गोरखपुर आते हैं तो करीबियों के निधन पर उनके परिवारीजनों से मिलते हैं। लेकिन अपनी ही पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष उपेंद्र दत्त शुक्ला के निधन पर वह उनके गांव तक नहीं गए। जातिगत छवि अब 18 महीने में नहीं बदलने वाली है।’

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तेजी दिखाने में फंसे महाराज जी

सुल्तानपुर से भाजपा विधायक देवमणि द्विवेदी ने सत्र से पहले विधानसभा में प्रश्न लगाया था कि कितने ब्राह्मणों को असलहा के लाइसेंस दिए गए हैं और कितने आवेदन लंबित हैं। इनका जबाव देने के चक्कर में योगी सरकार खुद ही उलझ गई। बीते 18 अगस्त को उत्तर प्रदेश के गृह विभाग के अंडर सेक्रेटरी प्रकाश चंद्र अग्रवाल के हस्ताक्षर से जिलों को पत्र भेजा गया जिसमें ब्राह्मणों के लाइसेंस के बारे में जानकारी मांगी गई। पत्र को लेकर उठे सवालों में खुद को घिरता देख सरकार बैकफुट पर आ गई। सरकार की तरफ से पत्र की बात को दरकिनार कर दिया गया लेकिन हकीकत यह है कि एक जिले के डीएम ने सूचना भी भेज दी।

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ब्राह्मण कार्ड खेल बचे विजय मिश्रा

सरकार की कमजोर नस हर कोई दबा रहा है। ज्ञानपुर से निषाद पार्टी के बैनर पर जीते विजय मिश्रा पर बीते दिनों रिश्तेदार कृष्ण कुमार तिवारी ने संपत्ति को लेकर कानूनी फंदा कसा तो वह बचाव में ब्राह्मण कार्ड खेलने लगे। विधायक पर 73 आपराधिक मुकदमे हैं। उन्होंने यह कहते हुए सहानुभूति बटोरने की कोशिश की कि उन्हें ब्राह्मण होने की वजह से फंसाया जा रहा है। समाजवदी पार्टी के एक विधायक कहते हैं कि ‘विजय मिश्रा भले ही चित्रकूट जेल भेज दिए गए हों, हकीकत यही है कि उन्होंने ब्राह्मण कार्ड नहीं खेला होता तो सपा नेता आजम खां की तरह बकरी और किताब चोर साबित किए जाते।’

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योगी का उभार हुआ ही ऐसे

वैसे, योगी आदित्यनाथ की ब्राह्मण विरोधी छवि एक दिन में नहीं बनी है। उन्होंने अपने जेबी संगठन हिन्दू युवा वाहिनी की बदौलत 2002 में शिवप्रताप शुक्ला को चुनाव हरवाया था, तभी उनकी इस तरह की छवि बन गई थी। माफिया वीरेंद्र प्रताप शाही की हत्या के बाद प्रभावशाली ठाकुर चेहरे मठ से जुड़ने लगे। मुख्यमंत्री बनने के चंद महीने बाद ही पूर्वमंत्री और बाहुबली हरिशंकर तिवारी के घर पुलिस की दबिश डलवाकर उन्होंने ब्राह्मणों के जख्म हरे कर दिए। इसके बाद जब पार्टी के ब्राह्मण विधायक तक उनके खिलाफ लामबंद हो गए तो योगी को बैकफुट पर आना पड़ा।

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