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इलेक्शन हाईवे: केरल की ‘किलिंग फील्ड्स’ में राजनीतिक हिंसा से परेशान महिलाओं को कांग्रेस से उम्मीद

लोकसभा चुनावों की विशेष पेशकश ‘इलेक्शन हाईवे’ में हम आज आपको केरल के उन इलाकों के बारे में बता रहे हैं जहां राजनीतिक हिंसा के चलते उन्हें किलिंग फील्ड्स कहा जाने लगा है। इन इलाकों में महिलाएं यूडीएफ के साथ दिखती हैं, क्योंकि ज्यादातर हिंसा के मामलों में सीपीएम का हाथ रहा है।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

उत्तरी केरल के कोझिकोड ज़िले की वडाकरा लोकसभा सीट इस बार हाई वोल्टेज मुकाबले की गवाह बनने वाली है। यहां मुख्य मुकाबला कांग्रेस और सीपीएम के बीच है। इस इलाके को राजनीतिक हत्याओं के लिए जाना जाता है और यही मुद्दा इस बार यहां सबसे अहम नजर आ रहा है। फिलहाल इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा है जो फिर से इसे हासिल करना चाहती है, लेकिन सीपीएम ने इस सीट को कब्जाने के लिए पूरा जोर लगा दिया है। स्थिति ऐसी है कि कोई भी राजनीतिक विश्लेषक इस सीट के बारे में कोई भी अनुमान लगाने की स्थिति में नहीं है।

केरल की ‘किलिंग फील्ड्स’ में गिनी जाने वाले इसी निर्वाचन क्षेत्र में वाम कार्यकर्ता टी पी चंद्रशेखर की 2012 में पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी। चंद्रशेखर वाम मोर्चे का पक्का कार्यकर्ता था लेकिन पार्टी से मतभेदों के चलते वह अलग हो गया था और उसने 2009 में रिवॉल्युशनरी मार्क्सिस्ट पार्टी (आरएमपी) बना ली थी। पार्टी का मुख्यालय वडाकरा का ओंचियम इलाके में है। 2012 में उसकी हत्या के बाद से चंद्रशेखर की पत्नी के के रमा पार्टी की मुखिया है, और इस बार उसने खुलकर कांग्रेस को समर्थन का ऐलान किया है।

सीपीएम ने यहां से पी जयराजन को मैदान में उतारा है, जो चंद्रशेखर की हत्या के आरोपियों में से एक है। इसके अलावा जयराजन पर मुस्लिम लीग की यूथ शाखा के कार्यकर्ता अरियल अब्दुल शकूर की 2012 में हुई हत्या और 2014 में हुई संघ कार्यकर्ता कथिरूर मनोज की हत्या का भी आरोप है।

वहीं कांग्रेस ने काफी सोच विचार कर यहां से पूर्व मुख्यमंत्री के करुणाकरन के बेटे के मुरलीधरन को मैदान में उतारा है। मुरलीधरन की इलाके में काफी अच्छी छवि है। वह वह कोझिकोड से विधानसभा चुनाव जीत भी चुके हैं। मुरलीधरन की उम्मीदवारी का ऐलान होने के बाद कांग्रेस में गुटबंदी और अंतर्कलह की चर्चाओं पर भी विराम लग गया है। साथ ही मुस्लिम लीम के कार्यकर्ताओं में भी उत्साह देखने को मिल रहा है। इस इलाके में मुस्लिम लीग का भी अच्छा प्रभाव है।

कांग्रेस के इस कदम के बाद राजनीतिक तौर पर अस्थिर माने जाते रहे इस निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस की पकड़ मज़बूत नजर आने लगी है। यहां से मौजूदा सांसद भी कांग्रेस के एम रामाचंद्रन है, जो 2009 से इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। 2004 के लोकसभा चुनाव में जयराजनकी बहन पी सतिदेवी ने मुरलीधरन की बहन पद्मजा वेणुगोपाल को इस सीट से हराया था।

इलाके में एक रेस्त्रां चलाने वाले राजेश एस कहते हैं कि, “मैं दावे से नहीं कह सकता कि कौन जीतेगा। जयराजन को जिताने के लिए कन्नूर से सीपीएम की सारी मशीनरी यहां जमी हुई है। उनके लिए यह प्रतिष्ठा का मामला है। राजनीतिक हिंसा के चलते 2009 में सीपीएम की जमीन खिसकी थी और कांग्रेस ने जीत हासिल की थी।”

वहीं वडाकरा-विलियापल्ली रोड पर दुकान में काम करने वाली सरस्वती का मानना है कि, “बहुत सी महिलाएं जयराजन के खिलाफ हैं। यहां कई ऐसे परिवार हैं जो राजनीतिक हिंसा का शिकार हुए हैं। जयराजन के खिलाफ कई मामले हैं। मैं नहीं कह सकती कि कौन जीतेगा या जयराजन हार जाएगा।”

आरएमपी की मुखिया और चंद्रशेखर की पत्नी के के रमा का कहना है कि, “मुरलीधरन ही जीतेगा। यह चुनाव राजनीतिक हत्याओं के खिलाफ है। मैं इस हिंसा को बहुत अच्छे से जानती हूं। मेरे पति की जान ऐसी हिंसा में गई है। आरएमपी ने इस बार यूडीएफ को समर्थन देने का फैसला किया है।” उन्होंने कहा कि, “महिलाएं हिंसा के खिलाफ हैं और यहां सब तरफ यही माहौल है। सीपीएम ने पूरी ताकत झोंक दी है। चारों तरफ जयराजन के पोस्टर लगे हैं। कन्नूर, कोथुपराम्बु से कार्यकर्ताओं को यहां लाया गया है। लेकिन इससे भी कोई फायदा नहीं होने वाला।”

के के रमा का कहना है कि यह चुनाव केंद्र की सरकार बदलने के लिए है। इसके लिए लेफ्ट क्या कर लेगा। सिर्फ कांग्रेस को जिताने से ही बेहतर और सेक्युलर राजनीति आ सकती है।

लेकिन, वाम मोर्चे का जमीनी समर्थन भी यहां मजबूत दिखता है। यहां नाई की दुकान चलाने वाले एक शख्स का कहना है कि, “जयराजन भी तो खुत राजनीतिक हिंसा का शिकार हुआ है। उस पर भी तो हमला हुआ था। यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। बड़ा मुद्दा है बीजेपी को हराना।”

लेकिन उसकी बात को एक स्थानीय राजनीतिक कार्यकर्ता सजीर काट देते हैं। वे कहते हैं कि, “मुरलीधरन के मैदान में आने से कांग्रेस और मुस्लिम लीम कार्यकर्ताओं में जबरदस्त जोश है। कुछ इलाके हैं जहां से जयराजन को समर्थन मिलेगा, लेकिन पूरा इलाका राजनीतिक हिंसा के खिलाफ है। कई परिवार हैं जो राजनीतिक हिंसा के शिकार हुए हैं। वाम मोर्चे को वोट देने से क्या होगा? राष्ट्रीय स्तर पर उनका कोई खास प्रभाव है नहीं। ऐसे में बीजेपी को हराने के लिए यूडीएफ को जिताना होगा।”

यहां से बीजेपी ने बी वी के सजीवन को प्रत्याशी बनाया है, लेकिन एलडीएफ-यूडीएफ की सीधी टक्कर में कोई उनका नाम तक नहीं लेता नजर आता है। सजीवन 2014 में भी बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं।

वर्तमान सांसद मुलापल्ली रामचंद्रन ने 2009 में 50,000 वोटों से जीत हासिल की थी, लेकिन 2014 में वे सिर्फ 3306 वोटों से ही जीत पाए। इस बार उन्होंने खुद ही चुनाव न लड़ने का ऐलान किया था।

वडाकरा लोकसभा सीट में कुटियादी, नादपुरम, पेरम्बरा, कोइलांदी और वडाकरा विधानसभा सीटें हैं। 2016 के विधानसभा चुनाव में कुटियादी को छोड़कर सभी सीटों पर एलडीएफ ने जीत हासिल की थी।

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