गर्मी के मौसम ने दस्तक दे दी है और इसके साथ ही एक बार फिर बुंदेलखंड के पानी, पलायन और सूखे की चर्चाओं ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया है। आने वाले दिनों में एक बार फिर इन मुद्दों के गरमाने के आसार बनने लगे हैं।
बुंदेलखंड वह इलाका है जिसकी देश में जल अभाव ग्रस्त क्षेत्र के तौर पर पहचान है। यहां जल संकट के कारण ही कई तरह की समस्याएं दशकों से लोगों की जिंदगी को मुश्किल भरा बना देती हैं।
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बुंदेलखंड उत्तर प्रदेश के सात और मध्य प्रदेश के भी सात जिलों को मिलाकर बनता है। कुल मिलाकर इस इलाके में 14 जिले आते हैं और इनमें से अधिकांश जिलों में पानी का संकट होता है। ऐसा नहीं है कि पानी का संकट पूरे साल नहीं रहता, मगर फरवरी-मार्च आते ही इस संकट की चर्चाएं जोर पकड़ने लगती हैं और तमाम तरह के लोग इन मुद्दों को उठाने लगते हैं।
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एक बार फिर गर्मी ने अपनी आहट दर्ज करा दी है तो उसके साथ ही इस इलाके का जल संकट, सूखा और पलायन पर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है। इस क्षेत्र की जल समस्या के निदान के लिए वर्षों से योजनाएं बन रही हैं, बजट आ रहे हैं और खर्च भी हो रहे हैं, मगर तस्वीर में ज्यादा बदलाव नहीं आ रहा है। यहां के हालात बदलने के लिए वर्ष 2008 में लगभग साढे सात हजार करोड़ का बुंदेलखंड पैकेज मंजूर किया गया था और उसमें से अधिकांश राशि खर्च भी हो चुकी। इसके अलावा भी जल स्रोतों को बचाने के लिए सरकारों ने करोड़ों रुपए का बजट मंजूर किया, नहरें बनाई, तालाब खुदबाए, मगर यह मुद्दा अब भी बना हुआ है।
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सामाजिक कार्यकर्ता और बुंदेलखंड पैकेज के दुरुपयोग को लेकर लंबी लड़ाई लड़ने वाले पवन घुवारा का कहना है कि इस इलाके की समस्या को ध्यान में रखकर कम ही योजनाएं बनाई गई हैं। सरकारों और अन्य संस्थाओं द्वारा मंजूर राशि को खर्च कर दिया गया, संरचनाएं बना दी गई जिसका क्षेत्र के लोगों को लाभ नहीं मिला। यहां इतना जरुर हुआ कि ये योजनाएं कुछ लोगों के स्वार्थ साधन का माध्यम बन गई। बुंदेलखंड पैकेज में जो बंदरबांट हुई है वह किसी से छुपी नहीं है।
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बुंदेलखंड के जानकार अशोक गुप्ता का कहना है कि इस इलाके की समस्याओं ने कुछ लोगों के पेट भरने का काम किया है और उसी का नतीजा है कि बुंदेलखंड के सूखा, पलायन और पानी के संकट को लोगों ने बेचने का काम किया है। जिन्होंने बेचा है उनके तो पेट भर गए, मगर इस इलाके का आदमी जहां का तहां खड़ा है।
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एक समाजसेवी का कहना है कि गर्मी ने एक बार फिर दस्तक देकर उन लोगों के चेहरे पर मुस्कान ला दी है जो इस इलाके पर नजर गड़ाए रहते हैं और मार्च के आने का इंतजार करते हैं। यह ठीक वैसे ही है जैसे निर्जन स्थान पर किसी मृत काया पर गिद्ध नजर गड़ाए रहते हैं। इस इलाके का सूखा भी ऐसे ही लोगों के लिए किसी उत्सव से कम नहीं है। वे अपनी योजना पर काम करते हैं। बजट आएगा, फिर बरसात आएगी और जल स्त्रोत भर जाएंगे, उसका परीक्षण कोई नहीं करेगा। परीक्षण इसका भी होना चाहिए कि जिन क्षेत्रों में नए जल स्त्रोत बनाने और कागजों पर पुर्नजीवित कर जल संकट खत्म होने का दावा किया जा चुका है, वहां की अब क्या स्थिति है।
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