जब महाराष्ट्र में एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना ने गठबंधन करके सरकार बनाई तो माना गया कि यह बस कुछ समय की बात है क्योंकि इन दलों के विचार और मिजाज काफी अलग हैं और उनके आपसी अनुभव भी ऐसे हैं जो उन्हें लंबे समय तक साथ नहीं रहने देंगे। लेकिन ऐसी आशंकाएं गलत निकलीं। सरकार न केवल अच्छा काम कर रही है और जनता की उम्मीदों पर खरा उतर रही है बल्कि इनका आपसी तालमेल भी बेहतर होता जा रहा है। तीनों दलों ने मोटे तौर पर यह सीख लिया है कि कैसे एक-दूसरे की संवेदनशीलताओं का ध्यान रखते हुए बढ़ा जा सकता है और इस संदर्भ में उन्होंने अपने-अपने नजरिये से लेकर व्यवहार में काफी कुछ बदलाव भी करने की इच्छा शक्ति का परिचय दिया है। साफ है, अगर बीजेपी-संघ की सांप्रदायिक राजनीति का मुकाबला करना है तो विपक्षी दलों को आपसी मतभेद भुलाकर साथ काम करने की कला सीखनी होगी।
लगभग उसी समय बृहन्मुंबई महानगरपालिका के चुनाव होने हैं जिस वक्त यूपी समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे। माना जाता है कि इन चुनावों में उत्तर भारतीय वोटरों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। हालांकि, इसका कोई पुख्ता आंकड़ा नहीं है लेकिन माना जाता है कि मुंबई के वोटरों में लगभग 40 प्रतिशत उत्तर भारतीय हैं। उत्तर-प्रदेश बिहार के लोग कुछ साल पहले तक सरपंच-मुखिया बनने-बनाने के लिए गांव जाते थे। ऐसे में कुछ लोग दोनों जगह वोट भी कर लेते थे। अब डिजिटल का जमाना है जिससे दोनों जगह वोटिंग करने वालों की संख्या काफी कम, बल्कि नगण्य हो गई है। इसीलिए इस दफा मुंबई चुनावों में उत्तर भारतीयों के वोट का महत्व काफी बढ़ गया है।
अभी बृहन्मुंबई महानगरपालिका में शिव सेना सत्तासीन है। पिछली बार उसका बीजेपी से गठबंधन था। लेकिन इस बार वह कांग्रेस और एनसीपी के साथ राज्य में सत्ता संभाल रही है। बीजेपी उसे चुनौती देने का प्रयास तो कर रही है लेकिन लोगों से बातचीत से लगता है कि उसकी मुश्किलें बढ़ गई हैं।
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले के रहने वाले लगभग 50 साल के भगवानदास केसरवानी कई सालों से अपने परिवार के साथ सायन इलाके में सड़क किनारे आलू-प्याज का व्यवसाय कर रहे हैं। उनका दावा है कि वह किसी पार्टी के समर्थक नहीं हैं। लेकिन वह कहते हैं कि अब तुलना करने पर उन्हें महाविकास आघाड़ी सरकार बेहतर लगती है। वह कहते हैं कि एक तरफ नोटबंदी, जीएसटी और कोरोनाकाल में उठाए गए बीजेपी के कदम हैं, तो दूसरी ओर आघाड़ी सरकार में असामाजिक तत्वों पर काबू पाना है।
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मुंबई में टैक्सी चलाने वाले रियाज खान इसे दूसरे ढंग से बताते हैं। वह कहते हैं कि पहले भले ही शिव सेना की छवि लोगों ने कट्टर हिन्दुत्व वाली पार्टी की बना रखी थी लेकिन महा विकास अघाड़ी सरकार आने के बाद से उन्हें मुस्लिम होने के नाते डर नहीं सताता है। बीएमसी की नौकरी से रिटायर होने के बाद मटन का धंधा करने वाले सत्तर साल के मोहम्मद शमी ऐसी चर्चा के दौरान कहते हैं कि एक वक्त वह परेल इलाके में रहते थे और उन दिनों जब कभी पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी मुंबई आते थे, तो वह उन्हें खुली गाड़ी में देखते थे। आज के नेता बंद गाड़ी में रहते हैं। आजादी के इस दो रूप को आप क्या कहेंगे? वह कहते हैं कि उत्तर भारतीयों, खास तौर से अल्पसंख्यकों का झुकाव अब आघाड़ी सरकार की ओर है इसलिए बीजेपी के लिए यह चुनाव आसान नहीं होगा।
चर्च गेट में पान की दुकान चलाने वाले इलाहाबाद के दो भाई- शाबान और इरफान भी कहते हैं कि बीजेपी जपा नेता अब भी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कर ही राजनीति कर रहे जबकि यहांआघाड़ी सरकार के दौरान उत्तर भारतीय या मुसलमान के नाम पर कोई परेशान नहीं करता है। मूल रूप से देवरिया के रहने वाले लेकिन घाटकोपर में ही जन्मे राजकुमार गुप्ता 12 साल से यहां रिक्शा चला रहे हैं। उनके भाई का भी जन्म यहीं हुआ है। वह कहते हैं कि कोरोना काल में भले ही शुरू में आपाधापी रही लेकिन बाद में आघाड़ी सरकार ने जिस प्रकार कई कदम एक साथ उठाए, उससे लोगों को काफी राहत मिली और हजारों लोगों की जान बची। यह इस सरकार की उपलब्धिहै।
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एक बड़े व्यापारी ने बताया कि आघाड़ी सरकार के आने से बड़ी राहत मिली है, खासकर चंदा देने के मामले में। चंदा हम बीजेपी के समय भी देते ही थे। लेकिन उस समय बीजेपी हमारे ऊपर हर वक्त दवाब बनाए रखती थी। वह हाल अब नहीं है। इधर, आरएसएस से जुड़े एक व्यापारी तक ने कहा कि पिछले दो सालों के अंदर आघाड़ी सरकार ने बीजेपी की अपेक्षा ज्यादा बेहतर काम किया है। व्यापारी इनके कामकाज की तारीफ करते हैं। मुझे उम्मीद है कि अगले चुनावों में गुजराती, मारवाड़ी और उत्तर भारतीय समाज का ज्यादा से ज्यादा समर्थन आघाड़ी सरकार को मिलेगा।
यूपी में भी चुनाव होने वाले हैं, तो लोग स्वाभाविक तौर पर वहांऔर महाराष्ट्र की स्थितियों की तुलना करते हैं। मूल रूप से जौनपुर के रामपुर गांव के रहने वाले पचपन साल के राजेन्द्र गुप्ता ग्रैजुएशन करने के बाद मुंबई में फुटपाथ पर सब्जी बेचने का धंधा लगभग 25 साल से कर रहे हैं। उनका कहना है, ‘मैं गांव कम जाता हूं। अखबारों में खबरें पढ़ने से लगता है कि लोग योगी आदित्यनाथ के कामकाज से खुश नहीं हैं। लेकिन यहां की सरकार के साथ वैसी स्थिति नहीं दिखती।’
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बीजेपी की एक बड़ी दिक्कत यह है कि वह सिर्फ आघाड़ी सरकार पर लगातार हमले कर स्कोर करना चाहती है। पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस समेत बीजेपी के नेता हर छोटी-बड़ी बात को लेकर जिस तरह राज्यपाल के पास पहुंच रहे हैं, उससे उनकी खुद की छवि ही प्रभावित हो रही है। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इस प्रकार के राजनीतिक आक्रमण की जिस तरह अनदेखी कर रहे हैं और जरूरत होने पर ही अपनी प्रतिक्रिया देते हैं, यह अंदाज भी लोगों को प्रभावित कर रहा है। अभी दीपावली के मौके पर भी जब मुख्यमंत्री ठाकरे पत्रकारों से मिले तो उन्होंने राजनीति के बजाय विकास के मुद्दों पर बात करने को तवज्जो दी। उन्होंने कहा किमंत्रालय में फाइलों से घिरकर बैठने की अपेक्षा उन्हें जमीन पर विकास का काम करना ज्यादा सही लगता है। एक पत्रकार ने उनसे उनके फोटोग्राफी के शौक के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि अगर मैं मुख्यमंत्री नहीं होता तो मैं फोटो प्रदर्शनी के लिए आप सबको निमंत्रित करता।
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