गुजरात दंगों के दौरान गैंगरेप का शिकार हुई बिलकिस बानो के 11 दोषियों को सजा पूरी होने से पहले रिहा करने के गुजरात सरकार के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर मंगलवार को सुनवाई हुई। इस सुनवाई के दौरान केंद्र और राज्य सरकार को उस समय सुप्रीम कोर्ट से फटकार पड़ी, जब सरकार के वकील ने दोषियों को छोड़ने से जुड़ी फाइल दिखाने के आदेश का विरोध किया।
दरअसल केंद्र और गुजरात सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दावा किया कि बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों को छूट देने के संबंध में फाइलों पर विशेषाधिकार है और कहा है कि वे अदालत के फैसले की समीक्षा की मांग कर सकते हैं। हालांकि, शीर्ष अदालत ने जोर देकर कहा कि विचाराधीन अपराध 'भयानक' था और गुजरात सरकार के लिए यह अनिवार्य है कि वह 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई की अनुमति देने में दिमाग का इस्तेमाल करती।
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न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ और बी.वी. नागरत्ना ने इस पर भी गौर किया कि एक गर्भवती महिला के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और कई लोग मारे गए थे और इस मामले की तुलना मानक धारा 302 (हत्या) के मामलों से नहीं की जा सकती। पीठ ने कहा, "जैसे आप सेब की तुलना संतरे से नहीं कर सकते, उसी तरह नरसंहार की तुलना एक हत्या से नहीं की जा सकती। अपराध आम तौर पर समाज और समुदाय के खिलाफ किए जाते हैं। असमान लोगों के साथ समान व्यवहार नहीं किया जा सकता।"
पीठ ने गुजरात के वकील से कहा कि "अदालत यह देखने में रुचि रखती है कि कानूनी रूप से किन शक्तियों का प्रयोग किया गया और उसके लिए यदि आप हमें कारण नहीं बताते हैं, तो अदालत निष्कर्ष निकालने के लिए स्वतंत्र है।" इस पर केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने कहा कि फाइलें उनके पास मंगलवार को ही आई हैं। मुझे फाइल देखने दीजिए और मैं अगले हफ्ते इस पर वापस आऊंगा।
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इस पर न्यायमूर्ति जोसेफ ने राजू से कहा, "आज यह महिला (बिलकिस) है। कल, यह आप या मैं हो सकते हैं। फिर आप कौन से मानक लागू करेंगे .. वस्तुनिष्ठ मानक निर्धारित हैं। इसे दिखाने में क्या समस्या है (11 दोषियों की छूट से जुड़ी फाइलें) आज?.. हमने तो पहले ही कहा था, फाइलें दूसरे दिन ले आना, मुश्किल क्या है? कानूनी लड़ाई में शर्म क्यों?"
इस पर राजू ने कहा, "मेरे निर्देश हैं, हम विशेषाधिकार का दावा कर रहे हैं और समीक्षा के लिए कह रहे हैं।" तब न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, "यदि आप हमें फाइलें दिखाते हैं तो आप बेहतर स्थिति में होंगे।" इस पर राजू ने जोर देकर कहा कि उनके निर्देश अलग हैं और इसलिए उन्हें उनका पालन करना होगा। इस पर पीठ ने कहा कि उसने सरकार को समीक्षा के लिए याचिका दायर करने से नहीं रोका है और पूछा कि फाइलों के अभाव में क्या वकील बहस कर पाएंगे?
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इस पर फिर राजू ने कहा, "शुरुआत में मैंने कहा कि दलीलें पूरी नहीं हैं और समीक्षा याचिका दायर करने के लिए कुछ समय मांगा है।" इस पर जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि फाइलों के अभाव में सरकार के वकील की दलीलों का आधार क्या होगा। न्यायमूर्ति जोसेफ ने राजू से कहा, "हम समीक्षा याचिका दायर करने में आपके रास्ते में नहीं खड़े होना चाहते। सवाल यह है कि क्या सरकार ने अपना दिमाग लगाया, कौन सी सामग्री उसके फैसले का आधार बनी?
बिलकिस बानो का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने कहा कि गुजरात राज्य सरकार ने पहले ही जवाबी हलफनामे में अदालत में अधिकांश दस्तावेज दाखिल कर दिए हैं। सुनवाई के दौरान पीठ ने मामले के रिकॉर्ड की भी जांच की और कहा कि सजा काटने के दौरान दोषियों को 3 साल की पैरोल दी गई थी। यह नोट किया गया कि उनमें से प्रत्येक को 1,000 दिनों से अधिक की पैरोल दी गई थी, एक दोषी को 1,500 दिन की पैरोल मिली। पीठ ने इस पर पूछा, "आप किस नीति का पालन कर रहे हैं?"
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मामले में एक विस्तृत सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने मामले को 2 मई को आगे की सुनवाई के लिए तय कर दिया, लेकिन इस बात पर जोर दिया कि विचाराधीन अपराध 'भयानक' था और गुजरात सरकार के लिए यह अनिवार्य है कि वह 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई की अनुमति देने के लिए दिमाग का इस्तेमाल करे।
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