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आरक्षण की आग सुलगी तो नीतीश सरकार दौड़ती-गिरती भागी सुप्रीम कोर्ट

नीतीश कुमार 2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन में रहते देख चुके हैं कि लालू यादव किस तरह ‘आरक्षण’ के मुद्दे पर सामने वाले की रोटी जला देते हैं। आरजेडी से ऐसे संकेत मिलते ही नीतीश को याद आया कि पिछले साल के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ अर्जी जरूरी है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

आरक्षण की आग कैसी होती है, कितना काम करती है और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू प्रसाद इस पर कैसे सामने वाले की रोटी जला देते हैं- यह सब कुछ नीतीश कुमार साल 2015 में बहुत अच्छे तरीके से देख चुके हैं। इसलिए, जैसे ही इस बार उत्तराखंड के बहाने आरक्षण की बात निकली तो नीतीश कुमार सरकार को याद आया कि बिहार में आरक्षण के कारण ही प्रोन्नति रुकी हुई है। यह रोक 15 अप्रैल 2019 से ही है, लेकिन नीतीश सरकार को याद अब आई, क्योंकि चुनावी साल में विपक्ष आरक्षण को लेकर केंद्र की एनडीए सरकार को घेर चुका है और ऐसे में कहीं ये आग बिहार तक न पहुंच जाए।

बता दें कि पटना हाईकोर्ट ने प्रोन्नति में आरक्षण को लेकर बिहार सरकार के रवैये को असंवैधानिक करार दे दिया था, जिसके खिलाफ बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। बीते साल 15 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक यथास्थिति बनाए रखने को कहा था। कोर्ट से बात नहीं बनी तो सरकार ने पुराने (20 जुलाई 2018 को पारित) संकल्प का हवाला देकर बिहार में प्रोन्नति में आरक्षण की प्रक्रिया आगे बढ़ा दी थी। सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित होने और हाईकोर्ट की रोक के बावजूद प्रक्रिया बढ़ाने के खिलाफ कुछ लोग फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे तो बिहार सरकार ने इस प्रक्रिया पर पुन: रोक लगा दी थी।

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अब, जब उत्तराखंड के ऐसे ही एक मामले को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विपक्ष ने केंद्र की एनडीए सरकार को घेरा और संसद में बवाल शुरू हुआ तो आरजेडी नेता तेजस्वी यादव एक झटके में कूद पड़े। नीतीश कुमार 2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के सीएम प्रत्याशी रहते हुए देख चुके हैं कि लालू प्रसाद किस तरह ‘आरक्षण’ के मुद्दे से जनता को अपने खेमे में कर लेते हैं। तेजस्वी से यह संकेत मिलते ही अचानक नीतीश सरकार को याद आया कि 15 अप्रैल 2019 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर अर्जी जरूरी है।

साल 2015 चुनाव के दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा की बात कही थी, जिसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत बीजेपी के तमाम नेता बार-बार बोलते रह गए कि आरक्षण खत्म नहीं होगा लेकिन महागठबंधन ने इस मुद्दे को जनता के सामने रखकर एनडीए को बिहार की कुर्सी से हटा दिया था। हालांकि नीतीश बाद में पाला बदल कर फिर एनडीए में कुर्सी समेत चले गए, लेकिन उन्हें इस बात का अंदाजा लग चुका है कि आरक्षण के मुद्दे पर विशेष रूप से लालू परिवार किस तरह हमलावर हो सकता है।

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उधर एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान पहले ही ताजा मामले में केंद्र सरकार को आगे आने के लिए कह चुके हैं। ऐसे में नीतीश की हड़बड़ी स्वाभाविक भी है। ऐसे में सरकार ने अपने ही रिकॉर्ड को आननफानन में निकालकर सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई है। इस अपील में कहा गया है कि उसके 26 विभागों में प्रोन्नति से भरे जाने वाले 21,275 पद प्रभावित हैं। प्रोन्नति नहीं मिल पाने से उच्च पदों का काम भी बाधित हो रहा है और बहुत सारे कर्मचारी प्रोन्नति के बगैर ही रिटायर हो जा रहे हैं।

बिहार सरकार ने अर्जी में जिक्र किया है कि बिहार में 44 विभागों में से 26 विभागों में प्रोन्नति के मामले हैं। प्रोन्नति में आरक्षण का मामला ठहरे होने के कारण सामान्य प्रोन्नति की भी प्रक्रिया रुकी हुई है, क्योंकि अबतक की स्थितियों के मद्देनजर इसे अलग-अलग नहीं किया जा सकता। जारी आरक्षण नीति के तहत प्रोन्नति के 21,275 पदों में से 17,109 पद सामान्य वर्ग, 3957 पद अनुसूचित जाति और 209 पद अनुसूचित जनजाति से भरने हैं।

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अभी ऐसी और कमजोरियां ढूंढ़ेंगे नीतीश

दिल्ली विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार भी एनडीए के पक्ष में चुनाव प्रचार में उतरे थे, लेकिन हश्र सामने है। इधर, बिहार विधानसभा चुनाव सामने देख विपक्ष बिहार में नीतीश की कमियों-कमजोरियों की फाइल ढूंढ़ने में लगा हुआ है ही। ऐसे में चाणक्या स्कूल ऑफ पॉलिटिकल राइट्स एंड रिसर्च के अध्यक्ष सुनील कुमार सिन्हा कहते हैं कि नीतीश ने बिहार में प्रोन्नति के आरक्षण की फाइल तो विपक्ष के हाथ में लगने से पहले सुप्रीम कोर्ट में अर्जी डाल दी, लेकिन ऐसी कई और कमजोरियां नीतीश के लिए परेशानी बन सकती हैं। तेजस्वी समेत पूरा विपक्ष इस पर काम कर रहा है, इसलिए नीतीश को भी अब बचाव की मुद्रा में तत्काल कमजोरियां ढूंढ़कर काम करना होगा।

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