कहा जा रहा है कि उत्तराखंड की समान नागरिक संहिता से 'हिंदू अविभाजित परिवार' को बाहर रखा गया है। लेकिन क्या यह सच है? क्या कहता है इस विषय पर उत्तराखंड का यूसीसी? उत्तराखंड में बीजेपी की पुष्कर सिंह धामी सरकार द्वारा लाए गए समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक को राज्य की विधानसभा ने पारित कर दिया है। इसके बाद राज्यपाल और फिर भारत की राष्ट्रपति की अनुमति मिलने के बाद यह कानून बन जाएगा।
कानून के सभी प्रावधान उत्तराखंड में रहने वाले सभी लोगों पर लागू होंगे। इसके अलावा वे उत्तराखंड के सभी पंजीकृत नागरिकों पर भी लागू होंगे, भले ही वो किसी दूसरे प्रदेश में ही क्यों ना रहते हों।
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लेकिन कुछ लोगों ने आरोप लगाया है कि यह एक सांप्रदायिक कानून है, बल्कि एक "हिंदू संहिता" है। सांसद और एआईएमआईएम पार्टी के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने दावा किया है कि "हिंदू अविभाजित परिवार" को इस यूसीसी के दायरे में नहीं लाया गया है। आपको बता दें, "हिंदू अविभाजित परिवार" या एचयूएफ एक कानूनी इकाई है जिसे भारत के आयकर कानून के तहत 'एक व्यक्ति' के तौर पर मान्यता मिली हुई है। इस मान्यता के तहत एक अविभाजित हिंदू परिवार को कर देने के उद्देश्य से एक ही इकाई माना जाता है।
एचयूएफ उस परिवार को माना जाता है जिसके सभी सदस्य किसी एक पूर्वज के सीधे वंशज हों। इसमें उनकी पत्नियों और अविवाहित बेटियों को भी शामिल किया जाता है। एचयूएफ का अपना पैन नंबर होता है और इससे अलग से कर लिया जाता है। आयकर कानून की कुछ शर्तें पूरा करने पर इसे करों के आकलन में विशेष छूट भी मिलती है। एचयूएफ का इस्तेमाल अक्सर हिंदू परिवार संपत्ति बढ़ाने के लिए करते हैं। अक्सर ऐसे परिवार जिनके पास पैतृक संपत्ति और व्यापार होता है वो एक एचयूएफ के तहत अलग से पैन नंबर ले लेते हैं।
ऐसा करने से इन संपत्तियों और व्यापार से होने वाली आय का कर देने के लिए अलग से आकलन होता है। ऐसा करने से परिवार की 'टैक्स-लायबिलिटी' या कर-देयता कम हो जाती है।
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ऐसे परिवार के सबसे वरिष्ठ सदस्य या परिवार के मुखिया को 'कर्ता' कहा जाता है, जो इसके सभी मामलों का प्रबंधन करता है। दूसरे सदस्यों को 'सहदायक' कहा जाता है। आयकर कानून के तहत एचयूएफ को किसी कॉन्ट्रैक्ट के जरिए बनाने की जरूरत नहीं पड़ती है, बल्कि इसे अपने आप बना हुआ माना जाता है। जैन और सिख परिवारों को भी इस कानून के तहत एचयूएफ की मान्यता मिलती है। एचयूएफ उत्तराधिकार के फैसले लेने में भी काम आता है। उत्तराखंड के यूसीसी में एचयूएफ को अलग से संबोधित नहीं किया गया है, यानी यह माना जा सकता है कि एचयूएफ यूसीसी के तहत आते हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की वेबसाइट पर छपे एक लेख के मुताबिक उत्तराखंड का यूसीसी जब कानून बन जाएगा तब मुमकिन है कि इसके प्रावधान हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (एचएसए) के ऊपर माने जाएं। एचएसए के तहत 'सहदायक' को भी संपत्ति पर अधिकार मिलते हैं, लेकिन यूसीसी में 'सहदायक' का कहीं जिक्र नहीं है। एचएसए के तहत कोई भी सहदायक वसीहत के जरिए संपत्ति को बेच नहीं सकता है। इससे संपत्ति में बेटियों का अधिकार सुनिश्चित रहता है। इंडियन एक्सप्रेस के इस लेख के मुताबिक यूसीसी के तहत बेटियों को यह सुरक्षा नहीं मिल पाएगी।
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