यूपी के मुख्य शहरों की सभी अहम सड़कों और रास्तों पर बड़े-बड़े पोस्टर बैनर और होर्डिंग नजर आ रहे हैं जिसमें योगी सरकार के 4 साल के कारनामों का बखान किया गया है। ‘चुनौतियों में तलाशे अवसर’ शीर्षक से 64 पन्नों की एक बुकलेट भी प्रकाशित कर मीडिया को बांटी गई है। मुख्य सचिव आर के तिवारी ने सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिया है कि योगी सरकार के 4 साल का 6 दिवसीय जश्न धूमधाम से मनाया जाए और लोगों को योगी सरकार के ‘रिफॉर्म, परफॉर्म एंड ट्रांसफॉर्म’ से सबसे अवगत कराया जाए।
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इस पूरे मीडिया तामझाम के बीच आम लोगों की तकलीफों को दरकिनार कर दिया गया है और उस पर लापरवाह अफसरशाही और स्वार्थी सियासी असंवेदनशीलता की परत चढ़ा दी गई है। विडंबना है कि हाल ही में हुई सत्तारूढ़ बीजेपी की राज्य कार्यसमिति की बैठक में कई विधायकों ने लोगों की तकलीफों का जिक्र किया, लेकिन उन्हें अनसुना कर दिया गया। पार्टी में इन मुद्दों पर उठ रही असंतोष की आवाज़ों से स्पष्ट है कि सरकारी स्तर पर उत्तर प्रदेश में सबकुछ ठीक नहीं हैं, भले ही सरकार अपनी उपलब्धियां गिनाने के लिए आक्रामक प्रचार का रास्ता ही क्यों न चुने।
हाल के दिनों की कुछ घटनाओ पर नजर डालते हैं:
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बीजेपी विधायक राम इकबाल सिंह ने 15 मार्च को खुलेआम कहा कि तहसील और पुलिस थाने जबरन वसूली और भ्रष्टाचार का अड्डा बन गए हैं। बिना रिश्वत दिए कोई काम नहीं होता।
बीजेपी विधायक सुरेंद्र सिंह ने कहा कि योगी सरकार में भ्रष्टाचार अखिलेश यादव शासन से कहीं अधिक है
बीजेपी एमएलसी उमेश द्विवेदी ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा कि पुलिस विकास दुबे के दूर के रिश्तेदारों को सिर्फ इसलिए परेशान कर रही है क्योंकि वे ब्राह्मण हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि यूपी पुलिस कोई भी कार्रवाई करने से पहले जाति को ध्यान में रखती है
आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर ने विशाल सैनी आत्महत्या मामले में पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाए। विशान सैनी ने यह कहकर खुदकुशी की थी कि उसे एसपीए सेक्स रैकेट केस में बेवजह फंसाया गया है। परिवार की तरफ से एफआईआर दर्ज कराने की कोशिशें नाकाम साबित हुईं। अमिताभ ठाकुर का कहना है कि पुलिस को एफआईआर दर्ज कर सच्चाई का पता लगाना चाहिए था।
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दो दर्जन जिलाधिकारियों और एसएसपी ने पिछले सप्ताह मुख्यमंत्री कार्यालय से की गई कॉल का जवाब ही नहीं दिया। इस सिलसिले में सरकार ने इन्हें नोटिस जारी किया है।
योगी सरकार में कानून-व्यवस्था धराशायी हो चुकी है। महिलाओं के खिलाफ अपराधों में बहुत तेजी से और बहुत अधिक बढ़ोत्तरी हुई है। बलात्कार पीड़िता के पिता की ट्रक से कुचलकर मौत हो जाती है। इसी तरह छेड़छाड़ की शिकायत करने वाली लड़की के पिता को 12 मार्च को हाथरस में दिनदहाड़े गोलियों से भून दिया जाता है। आरोप लड़की के परिवार पर शिकायत वापस लेने का दबाव बना रहा था।
इसी तरह 4 मार्च को संभल में बलात्कार पीड़िता ने मामला वापस लेने का दबाव बनाए जाने के बाद खुदकुशी कर ली। अपने सुसाइड नोट में लड़की ने लिखा था कि वह इस अपमान को सह नहीं पा रही थी। उसने लिखा था कि वह अपनी जान दे रही है ताकि उसका परिवार शांति से रह सके।
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सवाल है कि आखिर इन जैसे सभी मामलों को अंजाम देने वाले गुनाहगार पीड़ित और उसके परिवार को खामोश करने की कोशिश करते रहे हैं। और सवाल यह भी है कि आखिर पुलिस पीड़ित के परिवार की सुरक्षा क्यों नहीं कर पा रही है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड बयूरों की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध बहुत अधिक हुए हैं। इनकी संख्या 59,853 है जोकि देश भर में महिलाओं के खिलाफ हुए अपराधों का 14.7 फीसदी है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में बच्चियों के खिलाफ भी अपराधों में बढ़ोत्तरी हुई है और पॉक्सो के मामले सर्वाधिक हुए हैं। प्रदेश बलात्कार के मामले में दूसरे नंबर पर है।
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लेकिन इन सब आंकड़ों को अनदेखा कर योगी सरकार दावा करती है कि बीते चार साल में उत्तर प्रदेष में अपराधों में कमी आई है। सरकार दावा करती है कि लूट के मामलों में करीब 66 फीसदी, हत्या के मामलों में 19 फीसदी बलात्कार और छेड़छाड़ के मामलों में 45 फीसदी कमी आई है। सरकार यह भी दावा करती है कि 1535 थानों में महिला हेल्प डेस्क बनाई गई हैं, वहीं बीते चार साल के दौरान हुए 7791 एनकाउंटर में 135 अपराधियों को मार गिराया गया है।
इन आंकड़ों को देखिए, और योगी के रामराज्य का हिसाब लगाते रहिए....
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