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क्या था सरकार का प्रस्ताव, और क्या है अब किसानों का प्लान, जानिए इस खबर में

राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलनरत किसान संगठनों को बुधवार को केंद्र सरकार ने प्रस्तावों का एक मसौदा भेजा, जिसमें कानून में संशोधन समेत एमएसपी पर फसलों की खरीद का लिखित आश्वासन देने का भी जिक्र किया गया है। हालांकि किसानों ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।

फोटोः ऐश्लीन मैथ्यू
फोटोः ऐश्लीन मैथ्यू 

केंद्र सरकार के विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत किसानों के साथ मंगलवार रात गृह मंत्री अमित शाह की बैठक के बाद सरकार ने बुधवार को किसानों को 21 पन्नों का प्रस्ताव भेजा, जिसमें कानूनों में संशोधन और एमएसपी को लेकर अलग से लिखित आश्वासन देने की बात कही गई है। हालांकि सरकार ने कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को ठुकरा दिया है। वहीं किसान संगठनों ने सरकार के इन प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया है और आंदोलन को तेज करने का ऐलान किया है।

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फोटोः ऐश्लीन मैथ्यू

आइए जानते हैं कि सरकार के प्रस्ताव में किसानों के लिए क्या था। प्रस्ताव में सरकार ने कहा कि नये कानून से मंडी समितियों यानी एपीएमसी (कृषि उपज विपणन समिति) द्वारा स्थापित मंडियों के कमजोर होने और किसानों के निजी मंडियों के चंगुल में फंसने संबंधी किसानों के डर के समाधान के लिए सरकार कानून में संशोधन करने का प्रस्ताव देती है। इसके अलावा सरकार ने किसी प्रकार के विवाद की स्थिति में किसानों को सिविल कोर्ट जाने का विकल्प देने का भी प्रस्ताव दिया है। साथ ही सरकार ने पराली जलाने पर सख्त कानून में ढील देने की भी बात कही है।

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वहीं, अनुबंध पर खेती से संबंधित कानून पर सरकार की ओर से कहा गया है कि यह स्पष्ट किया जाएगा कि किसानों की भूमि पर बनाई जाने वाली संरचना पर खरीदार यानी स्पांसर द्वारा किसी प्रकार का कर्ज नहीं लिया जाएगा और न ही ऐसी संरचना उसके द्वारा बंधक रखी जाएगी। किसानों की जमीन कुर्की होने की आशंका पर सरकार ने कहा है कि इस संबंध में कानून में किसान पर किसी प्रकार की पेनाल्टी का प्रावधान नहीं है, फिर भी आवश्यकता होगी तो उसे स्पष्ट किया जाएगा। इसके अलावा बिजली संशोधन विधेयक-2020 पर सरकार ने कहा कि किसानों के बिजली बिल भुगतान की वर्तमान व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं होगा।

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सरकार को उम्मीद थी कि इस प्रस्ताव से बात बन जाएगी, लेकिन किसानों ने इसे अस्वीकार कर दिया और किसान नेताओं ने सिंघु बॉर्डर पर एक बैठक कर आंदोलन को तेज करने की घोषणा की है। बैठक के बाद किसानों ने औपचारिक प्रेस कांफ्रेंस करके अपने आंदोलन की आगे की रणनीति का ऐलान किया है। जिसके तहत किसानों ने ऐलान किया है रिलायंस जियो के प्रोडक्ट्स का बहिष्कार किया जाएगा और सरकारी उत्पादों को खरीदने की अपील की जाएगी।

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इसके साथ ही किसान नेताओं ने ऐलान किया कि कृषि कानूनों के वापस होने तक आंदोलन जारी रहेगा। पूरे देश में आंदोलन तेज होगा। दिल्लीय और आसपास के राज्योंा से 'दिल्लीअ चलो' की हुंकार भरी जाएगी। दिल्ली की सड़कों को करेंगे जाम। दिल्ली-जयपुर, दिल्ली-आगरा हाइवे को 12 दिसंबर को अवरुद्ध किया जाएगा। इसके बाद 14 दिसंबर को देशभर में धरना-प्रदर्शन होगा। 14 दिसंबर को हर जिले के मुख्यालय का घेराव होगा । 14 दिसंबर को बीजेपी के ऑफिस का घेराव होगा और सरकार के मंत्रियों का घेराव होगा।

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गौरतलब है कि कृषि कानूनों के खिलाफ किसान पिछले 14 दिनों से दिल्ली बॉर्डर पर डेरा डाले हुए हैं। सरकार और किसानों के बीच अब तक पांच दौर की वार्ता हो चुकी है। आज छठे दौर की वार्ता होनी थी, लेकिन उससे पहले मंगलवार शाम को गृह मंत्री अमित शाह ने किसान नेताओं से मुलाकात की, जिसमें तय हुआ कि सरकार आज किसानों को एक प्रस्ताव भेजेगी। सरकार की ओर से आज भेजे गए प्रस्ताव को किसानों ने ठुकरा दिया, जिससे किसान आंदोलन का जारी रहना तय हो गया है सरकार जहां कृषि कानूनों को वापस नहीं लेने पर अड़ी है, वहीं किसान कृषि कानून को रद्द किए जाने की मांग पर अडिग हैं।

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