कल्याणकारी और गरीबों को राहत वाली कई कथित योजनाओं पर केन्द्र सरकार जोर देने का दावा करती रहती है, पर महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) से उसे ऐसी खुंदक है कि वह इसकी लगातार अनदेखी कर रही है। यह हालत तब है जबकि सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की ताजा रिपोर्ट भी बता रही है कि श्रमिक भागीदारी और गिर गई है। रिपोर्ट के अनुसार, 15 साल और उससे ऊपर आयु वर्ग की श्रमिक भागीदारी अप्रैल, 2023 में 8.5 प्रतिशत थी जो अगले महीने मई में 7.7 प्रतिशत हो गई। शहरी इलाकों में तो रोजगार कम हुआ ही, ग्रामीण क्षेत्र में भी रोजगार का आंकड़ा कम हो गया। ग्रामीण इलाके में मई में यह आंकड़ा 299.4 मिलियन रहा जबकि उससे पहले के महीने में यह 306.5 मिलियन था। यह हाल तब है जबकि शहरी इलाके की तुलना में ग्रामीण इलाके में अप्रैल में श्रमिक भागीदारी ने प्रभावी वृद्धि दर्ज की थी, लेकिन अगले ही महीने इसमें गिरावट आ गई।
ऐसे में, सरकार मनरेगा पर अधिक राशि का आवंटन कर श्रमिक वर्ग को राहत दे सकती है। लेकिन इस मद में आवंटित राशि को लगातार कम किए जाने और राज्यों का भुगतान रोकने से श्रमिक वर्गों की परेशानी समझी जा सकती है। केन्द्र की बीजेपी-नीत सरकार गैरबीजेपी प्रदेश सरकारों के साथ भुगतान के मामले में भेदभाव भी कर रही है। इसके दो बड़े उदाहरण सामने हैं।
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तमाम प्रयासों के बावजूद बंगाल की सत्ता में बीजेपी को जगह नहीं मिली, संभवतः इसलिए भी लगभग एक साल से पश्चिम बंगाल के मजदूरों की मजदूरी बकाया है। पश्चिम बंगाल देश का ऐसा पहला राज्य है जहां केन्द्र सरकार ने भ्रष्टाचार और अनियमितताओं का आरोप लगाकर मनरेगा का धन जारी करने पर रोक लगा दी है। इससे यहां जून, 2022 से मनरेगा के काम भी रोक दिए गए हैं। इसका खामियाजा गांवों में रह रहे भूमिहीनों को सबसे अधिक झेलना पड़ रहा है। इसी तरह, जुलाई, 2023 के पहले सप्ताह में झारखंड में हुई राज्य ग्रामीण रोजगार गारंटी परिषद की बैठक में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केन्द्र सरकार पर पैसा समय पर नहीं मुहैया कराने का आरोप लगाया, जबकि पिछले कुछ सालों में मनरेगा के तहत झारखंड में कई उल्लेखनीय काम हुए हैं।
मनरेगा नियमों के मुताबिक, काम समाप्त करने के एक सप्ताह या अधिकतम 15 दिनों के भीतर मजदूर को उसके बैंक खाते में मजदूरी पहुंच जानी चाहिए। लेकिन संसद की ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संबंधी स्थायी समिति की 27 जुलाई, 2023 को सदन में रखी गई ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि 25 जनवरी, 2023 तक मनरेगा में मजदूरी का 6,231 करोड़ और सामान का 7,616 करोड़ रुपये बकाया था। समिति ने ग्रामीण विकास मंत्रालय से पहले भी कहा था कि वह मनरेगा का भुगतान तय समय पर करने के लिए व्यापक कदम उठाए और समिति ने इस बात पर हैरानी जताई है कि मंत्रालय ने इस सलाह पर चुप्पी साध रखी है। दरअसल, मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा है कि 'राज्यों द्वारा उचित वित्तीयबुद्धिमता और अनुपालन के बाद ही धन जारी किया जाता है।' समिति ने इस तरह के उत्तर को टालने वाली प्रकृति का माना।
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मनरेगा की वेबसाइट से 9 जुलाई, 2023 को डाउनलोड की गई रिपोर्ट बताती है कि अब तक 26.41 करोड़ मजदूर मनरेगा में अपना रजिस्ट्रेशन करा चुके हैं, लेकिन इनमें से एक्टिव मजदूरों की संख्या 14.41 करोड़ ही है, यानी 12 करोड़ मजदूरों का नाम हटा दिया गया है। इसी तरह अब तक 14.91 करोड़ जॉब कार्ड जारी किए गए थे, लेकिन इसमें से सक्रिय जॉब कार्डों की संख्या 9.7 करोड़ है, यानी लगभग 5.21 करोड़ जॉब कार्ड डिलीट कर दिए गए हैं। मनरेगा कार्यकर्ताओं का कहना है कि आधार कार्ड और बैंक खातों के साथ जॉब कार्ड के लिंक न होने के कारण ऐसा किया जा रहा है। लेकिन इसकी बड़ी वजह यह है कि ज्यादातर मजदूर अशिक्षित हैं- वे नाम लिखाने में भी गलती कर जाते हैं, जिस वजह से बैंक खाते और आधार कार्ड से मिलान नहीं हो पाता है।
ग्रामीण इलाकों में सरकारी सेवाओं की उपलब्धता को लेकर काम करने वाले इंजीनियरों, सोशल वर्करों और समाज विज्ञानियों की संस्था- लिबटेक इंडिया ने अपने अध्ययन रिपोर्टों में कहा है कि मनरेगा अधिकारी कार्ड रद्द होने का कारण आम तौर पर मजदूरों द्वारा काम के प्रति अनिच्छा जताना बताकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं जबकि उनके अध्ययन के दौरान मजदूरों ने कहा कि उनसे पूछा तक नहीं जाता। यहां तक कि जब मजदूर अपना नाम हटाने की शिकायत अधिकारियों से करते हैं, तो उन्हें जवाब मिलता है कि उनके नाम अगली सूची में जोड़ दिएं जाएंगे। दरअसल, जॉब कार्ड रद्द करने का एक नियम है कि इसे रद्द करने का एक मास्टर सर्कुलर ग्राम सभा के साथ साझा किया जाता है और ग्राम सभा से पुष्टि के बाद ही नाम हटाए जाते हैं। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है।
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उधर, केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह ने 25 जुलाई, 2023 को संसद में पूछे गए सवाल के जवाब में कहा कि जॉब कार्ड रद्द होने के विभिन्न कारण हैं, जिनमें नकली जॉब कार्ड, डुप्लीकेट जॉब कार्ड, मजदूरों के काम करने को तैयार नहीं होने, ग्राम पंचायत से स्थायी रूप से परिवार के स्थानांतरित होने, व्यक्ति की मृत्यु होना शामिल हैं।
वैसे, नरेन्द्र मोदी सरकार ने मनरेगा को लेकर शुरू से ही उपेक्षा का भाव रखा था। 27 फरवरी, 2015 को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा में कहा था कि 'मेरी राजनीतिक सूझबूझ कहती है, मनरेगा कभी बंद मत करो.. मैं ऐसी गलती कभी नहीं कर सकता, क्योंकि मनरेगा आपकी (यूपीए की) विफलताओं का जीता-जागता स्मारक है। आजादी के 60 साल बाद भी आपको लोगों को गड्ढे खोदने के लिए भेजना पड़ा। यह आपकी विफलताओं का स्मारक है। और मैं गाजे-बाजे के साथ इस स्मारक का ढोल पीटता रहूंगा। दुनिया को बताऊंगा, ये गड्ढे जो तुम खोद रहे हो, ये 60 सालों के पापों का परिणाम हैं।' इसी के साथ मनरेगा के लिए आवंटित राशि साल-दर-साल कम की जाती रही।
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ऐसा भी नहीं है कि सरकार को मनरेगा की अहमियत का अंदाजा नहीं है। कोरोना की वजह से लगाए गए लॉकडाउन के दौरान यही योजना थी, जिसने ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरों को राहत पहुंचाई। इस दौरान ग्रामीण इलाकों में 2.63 करोड़ परिवारों को इस योजना का लाभ मिला। हर परिवार को लॉकडाउन के 60 दिनों में से 17 दिन काम मिला। फिर भी, मनरेगा को लेकर सरकार की मंशा ठीक नहीं है। केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में पिछले साल के संशोधित अनुमान के मुकाबले इस साल 33 प्रतिशत की कटौती कर दी। साल 2022-23 में मनरेगा के मद पर खर्च का संशोधित अनुमान 89 हजार करोड़ रुपये था, लेकिन 2023-24 में इसे घटाकर 60 हजार करोड़ रुपये कर दिया गया। यह हाल तब है जबकि केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इस साल के लिए 98 हजार करोड़ रुपये की मांग की थी।
वैसे भी, पिछले साल से मनरेगा मजदूरों की हाजिरी प्रक्रिया इतनी जटिल बना दी गई है कि काम करने के बावजूद मजदूरों की हाजिरी नहीं लग रही है। अब मजदूरों की हाजिरी एक मोबाइल ऐप के माध्यम से लगाई जा रही है जिसे राष्ट्रीय मोबाइल निगरानी प्रणाली ऐप कहा जाता है, जिसमें एक दिन में श्रमिकों की दो टाइम स्टैम्प्ड और जियो टैग की गई तस्वीरें होती हैं। इसमें कई दिक्कतें रही हैं। जैसे- स्मार्ट फोन की उपलब्धता, इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमी। चूंकि मनरेगा लाभार्थी समाज के अत्यंत वंचित वर्ग से संबंधित होते हैं और वे अलग-अलग भाषाई परिवेश से आते हैं, ऐसे में ऐप के कामकाज और भाषा के बारे में उन्हें जानकारी नहीं होती। मजदूरों के काम का समय अलग होता है, ऐसे में उन्हें फोटो खिंचवाने के लिए काम करने के बाद भी काफी देर तक इंतजार करना पड़ता है। खास बात यह है कि संसद की ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संबंधी स्थायी समिति की रिपोर्ट में इस हाजिरी व्यवस्था पर सवाल उठाए गए। समिति की यह रिपोर्ट 14 मार्च, 2023 को लोकसभा और 15 मार्च, 2023 को राज्यसभा के पटल पर रखी गई। समिति ने कहा कि सरकार मनरेगा श्रमिकों की जमीनी दिक्कतों और चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए मोबाइल ऐप के कामकाज की समीक्षा करे और जल्द से जल्द ऐसा प्रावधान लाया जाए जो सबको स्वीकार्य हो।
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