“मुझे रात में कॉल आई थी कि तुरंत अस्पताल आ जाइये, इमरजेंसी है। मैं और मेरी डॉक्टर मंगेतर जब यूनिवर्सिटी के गेट पर पहुंचे तो वहां सिविल ड्रेस में मौजूद पुलिस दारोगा ने मुझे रोक दिया। यह हमारे लिए हैरतअंगेज था कि यूनिवर्सिटी में प्रवेश नियंत्रण बाहरी पुलिस के हाथ में था। यूनिवर्सिटी का अपना प्रशासन कहीं नहीं दिख रहा था। मैंने उन्हें बताया कि मैं डॉक्टर हूं और मुझे इमरजेंसी के लिए बुलाया गया है। मैं और मेरी मंगेतर दोनों यूनिफॉर्म में थे। मैंने अपना पहचान पत्र दिखाया। मेरी गाड़ी पर डॉक्टर का लोगो था, गले मे आला पड़ा हुआ था, उसके बावजूद पुलिस वाले नहीं माने और मुझे जमालपुर वाले एक दूसरे रास्ते से लंबा चक्कर काट कर अस्पताल जाना पड़ा। इससे पहले मैंने इसी रास्ते से पुलिस की गाड़ियों को कैम्पस के अंदर जाते हुए देखा।”
एएमयू मेडिकल हॉस्पिटल के डॉक्टर अजीमुद्दीन मलिक आगे कहते हैं, “एएमयू मेडिकल हॉस्पिटल का हाल देखकर मेरा कलेजा उछल गया। यूनिवर्सिटी के 60-70 छात्र बुरी तरह घायल पड़े थे। किसी के हाथ की हड्डी टूटी हुई थी। कुछ पूरी तरह लहुलुहान थे और दर्जनों के सिर से खून बह रहा था। यूनिवर्सिटी के छात्र संघ अध्यक्ष सलमान इम्तियाज बुरी तरह हांफ रहे थे। उन्हें ऑक्सीजन मास्क लगा हुआ था, इसके बावजूद वह कह रहे थे कि उनका दम निकलने वाला है।सलमान को रबर बुलेट लगी थी और आंसू गैस का गोला भी। मैंने सलमान को हिम्मत दी और इलाज शुरू किया।”
डॉक्टर अजीमुद्दीन मलिक की यह बताते हुए जज्बाती हो जाते हैं और कहते हैं, “इन बच्चों को देखकर मैं खुद भी विचलित हो गया। मैं खुद इनका इलाज करने आया था, मगर खुद मेरा दिल बैठने लगा। मैं डॉक्टर हूं, मुझे घायल स्टूडेंट्स को देखकर यह अंदाजा लगाने में देर नहीं लगी कि इन्हें कितनी निर्दयतापूर्वक पीटा गया। कई के सिर फूटे हुए थे, हाथ टूट गए थे और वो दर्द से कराह रहे थे। हम इनका इलाज करते हुए खुद से सवाल कर रहे थे!
अज़ीम कहते है "मैंने यह जानने की कोशिश की इन बच्चों ने ऐसा क्या अपराध किया था जो इन्हें इतनी बुरी तरह मारा गया। कोई जानवरों को भी इतनी बुरी तरह नही मारता है! बुरी तरह पीटकर अपने हाथ तुड़वा चुके नदीम ने मुझे बताया कि वो लाइब्रेरी में था, शोर सुनकर बाहर आया तो कुछ स्टूडेंटस के पीछे पुलिस भाग रही थी। उन्हें जो रास्ते में मिला उन्होंने उसे मारा। मुझे भी मारा, जबकि मैं प्रदर्शन में शामिल नही था।"
अज़ीम ने आगे बताया, “एक भी घायल ऐसा नही था जिसको कसकर चोट न मारी गई। बतौर एक डॉक्टर मैं यह कह सकता हूं कि मारते समय यह नहीं सोचा गया कि इस चोट का परिणाम क्या हो सकता था। ऐसा लगता था कि इनपर पूरा गुस्सा उतार दिया गया हो। इनमें ऐसे छात्र भी थे जो हॉस्टल में अपने कमरे में बैठकर पढ़ाई कर रहे थे। पुलिस ने वहां पहुंचकर उनकी पिटाई की।पुलिस ने सबसे ज्यादा ज्यादती हॉस्टल के मैकडोनाल्ड इलाके में की, जहां सबसे सीनियर छात्र रहते हैं। इससे यह साफ होता है कि पुलिस एक योजना बनाकर और खासा होमवर्क करके कैंपस में आई थी।”
अज़ीम बताते हैं कि इस बात ने उन्हें बहुत तकलीफ दी। खासकर उनकी सहयोगी महिला डॉक्टर बहुत परेशान हो गईं। उन्होंने बताया कि एक घायल डिप्लोमा इंजीनियरिंग के छात्र शाहवेज को टीवी पर देखकर दुबई से उसके परेशान पिता का फोन आया और वह फोन पर रोने लगे। घायलों के परिजनो को हम डॉक्टर्स को ही समझाना था।
इसी हॉस्पिटल के डॉक्टर सलीम के अनुसार यह स्थिति कुछ घंटे पहले हुए एक प्रदर्शन के बाद पैदा हुई थी। इस दौरान यूनिवर्सिटी के कुछ बच्चे दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया में छात्रों के साथ हुई ज्यादती के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे और नारेबाजी कर रहे थे। यूनिवर्सिटी नियम के मुताबिक वे बाबा सय्यद गेट से बाहर नही आ रहे थे।
एक चश्मदीद के मुताबिक गेट के दूसरी तरफ बहुत भारी मात्रा में पुलिस थी। इस दौरान छात्रों की तरफ से पुलिस की तरफ पत्थर फेंके गए। इसके बाद पुलिस एकदम से एक्शन में आ गई और उसने लाठीचार्ज, रबर बुलेट और आंसू गैस की बरसात कर दी। ऐसा लग रहा था कि जैसे पुलिस पत्थर के आने का इंतजार कर रही थी। यूनिवर्सिटी में सभी का यही कहना है कि पत्थर किसने चलाया इसकी जांच होनी चाहिए!
डॉक्टर सलीम बताते हैं कि एएमयू में पिछले तीन दिनों से प्रदर्शन चल रहा था। अलीगढ़ के एसएसपी आकाश कुलहरि ने कैम्पस के अंदर ही शांतिपूर्ण तरीके से प्रोटेस्ट करने के लिए इजाजत भी दी थी। लेकिन कल जामिया में छात्रों की पिटाई के बाद छात्र फिर से प्रदर्शन कर रहे थे। मगर इस बार पुलिस का मूड बदला हुआ था। डीआईजी खुद कमांड पर थे। ऐसा लगता था कि इस बार पुलिस मूड बनाकर छात्रों को कुचलने ही आई थी। यूनिवर्सिटी के गार्ड, वीसी के ड्राइवर और 60 साल के एक बुजुर्ग को भी पुलिस द्वारा पीटना उनका इरादा साफ करता है!
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