पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने राज्य की नव-निर्वाचित तृणमूल कांग्रेस सरकार को "मुझे अपनी संवैधानिक शक्तियों का उपयोग करने के लिए मजबूर नहीं करने" की चेतावनी दी है, इसके साथ ही उनका सत्ताधारी दल के साथ एक और नया तनाव शुरु हो गया है। तृणमूल के प्रवक्ता कुणाल घोष ने राज्यपाल की चेतावनी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, "वह राज्य में बदलाव का आह्वान करके अपनी संवैधानिक स्थिति भूल गए। उनकी अपील खारिज कर दी गई, इसलिए बूढ़ा अब स्पष्ट रूप से निराश है।"
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राज्यपाल धनखड़ तृणमूल के सत्ता में आने के बाद से 'हिंसा प्रभावित इलाकों' का दौरा कर रहे हैं। उत्तरी बंगाल में सीतलकुची की उनकी यात्रा ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से नाराज उनकी प्रतिक्रिया को उकसाया, क्योंकि वहां के लोगों ने धनखड़ को निर्वाचित सरकार की 'सहायता और सलाहत' पर काम करने के अपने संवैधानिक दायित्वों की याद दिलाई।
ध्यान रहे कि सीतलकुची में चुनावों के दौरान हिंसा हुई थी और केंद्रीय बलों की गोलीबारी में कुछ मतदाता मारे गए थे। राज्यपाल ने इस इलाके के बाद असम में उन अस्थायी शिविरों का दौरा किया, जहां पश्चिम बंगाल के 'राजनीतिक हिंसा के पीड़ितों' को आश्रय दिया गया है।
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राज्यपाल ने टिप्पणी की थी कि पश्चिम बंगाल 'शासन पर धब्बा' है। इसके बाद उन पर यह आरोप लगाया गया कि धनखड़ राज्यपाल कम और भाजपा के पदाधिकारी अधिक हैं। जहां कुछ टीएमसी नेता धनखड़ के दौरे को बीजेपी के नैरेटिव की नजर से देख रहे हैं, वहीं अन्य लोगों का कहना हैं कि वे इसलिए भय का माहौल बना रहे हैं ताकि राज्य में राष्ट्रपति शासन लग जाए।
दासगुप्ता ने कहा कि बीजेपी प्रचंड हार को स्वीकार करने में असमर्थ है, यह पूर्व केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो की टिप्पणी से स्पष्ट है कि "बीजेपी को सत्ता से बाहर रखकर बंगाल ने एक बड़ा मौका गंवा दिया है।" सुप्रियो ने टॉलीगंज से राज्य चुनाव लड़ने के लिए केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन तृणमूल मंत्री अरूप विश्वास से बुरी तरह हार गए।
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