आपकी बंदूक में जब एक ही गोली है तो आप उसे अनावश्यक खर्च नहीं करना चाहेंगे, बल्कि आप यह सुनिश्चित करना चाहेंगे कि आप भी उसका शिकार बन सकते हैं।
भारतीय सुरक्षा तंत्र (डीप स्टेट) काफी लंबे अरसे से आतंक का दमन करने में कठिन परिस्थितियों का सामना करता रहा है, लेकिन 26/11 की आतंकी घटना ने इसकी कार्यप्रणाली को पूरी तरह बदल दी और उसके बाद से इसके पास मजबूत व हथियारों से लैस आतंकी मॉड्यूल है और इसे एक के बाद एक सफलता मिल रही है।
कश्मीर की घाटी को छोड़ देश के शेष हिस्से में इसने आतंक के जिन्न का दफन कर दिया है। साथ ही, इसे पड़ोस के सीमापार क्षेत्र में बड़ी सफलता हासिल की है। कश्मीर घाटी में फिदायीन और मुजाहिदीन जेसे आतंकी संगठन सक्रिय रहे हैं।
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खुफिया तंत्र के गुप्तचरों ने पाकिस्तान और श्रीलंका, पाकिस्तान और भारत के दक्षिणी राज्य व पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच आतंकियों की सांठगांठ का भंडाफोड़ किया। सभी कट्टरपंथियों को दफन कर दिया गया है और उनकी दोबारा वापसी की उम्मीद नहीं है। हालांकि चुनौती अभी भी बनी हुई है, क्योंकि खतरा टला नहीं है।
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कश्मीरी आतंकियों को उभारने की कोशिशें राष्ट्रीय चेतना की दिशा में वैचारिक प्रक्रिया छिटपुट चल रही हैं और कभी-कभी यह सफल भी रही हैं, लेकिन एजेंसियों इनके प्रति सजग हैं। भारत का सुरक्षा तंत्र (डीप स्टेट) पूर्ण रूप से अवगत है कि पाकिस्तान का दोहरा चरित्र वाला और धोखेबाज है, इसलिए उस पर कभी भरोसा नहीं किया जा सकता।
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वे जब घरेलू आतंक से पीड़ित होने की बात करते हैं तो दुनिया को उसकी यह बात कल्पना लगती है। पाकिस्तान को कपटी और जहरीला देश माना जाता है, क्योंकि वहां सरकार से इतर ऐसे तत्व पनाह लिए हुए हैं, जिनको सेना और आईएसआई जिहादी संगठन का पूर्ण समर्थन प्राप्त है। आईएसआई सी-विंग जिहादी संगठन को अब पाकिस्तान के भीतर और बाहर पूरी आजादी मिली हुई है।
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लश्कर-ए-झांगवी (एलईजे) और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को तैयार करके संघशासित जनजातीय इलाके (एफएटीए) में 2007 से उनको अफगान तालिबान की बी-टीम की तरह काम करने के लिए आतंकी गतिविधियों के लिए शह देकर पाकिस्तान में पूरी तरह राजनीतिक इस्लाम विचारधार को बढ़ावा दिया गया है।
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एलईजे ने पाकिस्तान में शिया समुदाय पर कई हमले की जिम्मेदारी ली है, जिनमें कई लोगों की मौत हुई है। इन हमलों में 2013 में क्वेटा में हाजरा शिया समुदाय पर किए गए हमले में शामिल हैं, जिनमें समुदाय के 200 लोगों की मौत हो गई।
इसके तार 1998 में मोमीनुपरा कब्रगाह में हुए हमले, 2002 में डेनियल पर्ल का नाटकीय ढंग से अपहरण और उनकी हत्या और 2009 में लाहौर में श्रीलंका की क्रिकेट टीम पर हमला से भी जुड़े हैं।
भारत की हमेशा इन पर नजर रही है। पाकिस्तान में इन आतंकी घटनाओं के बाद विभिन्न आतंकी गुटों के खिलाफ सैन्य ऑरपेशन जर्ब-ए-अज्ब के बाद 2017 में रद्द-उल-फसाद ऑपरेशन शुरू किया गया।
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पाकिस्तान 1971 में अपने बंटवारे का बदला भारत से लेना चाहता है, इसलिए उसने इन आतंकियों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करना शुरू कर दिया। भारत यूं चुप नहीं बैठ सकता, इसलिए उसकी इस पर हमेशा से नजर बनी हुई है।
भारतीय सुरक्षा तंत्र (डीप स्टेट) को अब पूरे देश और पड़ोस में फैले गुप्तचरों पर गर्व है। इसके प्रभाव की एक मिसाल तब देखने को मिली, जब थाईलैंड में लश्कर-तैयबा के तहत रोहिंग्या के एक शिविर में प्रशिक्षण लेने वाले सिख उग्रवादियों के एक समूह पर 2014 में शिकंजा कसा गया और नई दिल्ली से मिली जानकारी पर थाईलैंड के आतंकरोधी दस्ते ने इस शिविर को बंद कर दिया।
कई देशों के साथ करीबी सहयोग और सूचना साझा किए जाने के फलस्वरूप ऐसी सफलताएं मिल रही हैं।
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भारतीय राजनयिकों ने सऊदी अरब, आबू धाबी, दुबई और कतर से बौद्धिक व मौद्रिक सहायता से पाकिस्तान को महरूम रखकर उस पर घेराबंदी की जिसका पर्याप्त श्रेय नहीं दिया जाता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और विदेश मंत्रालय के समन्वय के साथ प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान को उसके पूर्व धार्मिक समर्थकों और बहावी सलाफी के प्रचारकों से संबंध विच्छेद करवाकर उसका दम तोड़ दिया है।
इन क्षेत्रों से सूचनाएं मिल रही हैं, क्योंकि क्राउन पिं्रस मोहम्मद बिन सलमान, मोहम्मदन बिन जायद अल नाहयान और मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम के साथ मोदी के काफी अच्छे संबंध हैं।
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