संघ ने एक बार फिर संस्कार का पाठ पढ़ाना शुरु किया है। संघ का कहना है कि अगर आप चाहते हैं कि आपका होने वाला बच्चा संस्कारी और बुद्धिमान हो तो इसके लिए गर्भ संस्कार की प्रक्रिया अपनानी होगी, वह भी महिला के गर्भधारण करने से पहले।
इस सिलसिले में आरएसएस के उत्तर प्रदेश कार्यालय की तरफ से एक वीडियो लोगों को भेजा जा रहा है। इस वीडियो में प्रचारक और संचालक दो लड़कियों की वीडियो दिखाते हैं। इनमें से एक राशि (8 वर्ष) है और दूसरी है क्रिया (4 वर्ष)। ये दोनों लड़किया संस्कृत के श्लोकों और मंत्रों का उच्चारण करती हैं। बच्चियों की मां बताती हैं कि उनकी दोनों बच्चियां संस्कारी हैं क्योंकि उन्होंने और उनके पति ने गर्भ संस्कार प्रक्रिया को अपनाया।
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आरएसएस के एक नेता महेश शर्मा बताते हैं, “आज आप देख सकते हैं कि आज की पीढ़ी कितनी असंस्कारी है। व्हाट्सएप पर आने वाले वीडियो से पता चलता है कि हमारा युवा भारत, इतिहास और संस्कृति से कितना अनजान है। इसका कारण यही है कि उनमें अच्छे संस्कार नहीं डाले गए। अब आरएसएस ने यह बीड़ा उठाया है कि बच्चों में अच्छे संस्कार डाले जाएंगे।”
महेश शर्मा कहते हैं कि वे जो कुछ कह रहे हैं, उसमें नया तो कुछ भी नहीं है। यह तो विज्ञान है जो वैदिक काल से भारत में है। हिंदू पुराणों में बहुत से ऐसे उदाहरण मिलेंगे जहां माएं अपन इच्छानुसार संतान प्राप्ति करती हैं, और इसके लिए वे संतों के ज्ञान का सहारा लेती हैं।
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वहीं आरएसएस कार्यकर्ता विनोद भारती और डॉ नीरज सिंघल, जो एक आयुर्वेदाचार्य हैं, उन्होंने वेदांत गर्भ विज्ञान एंव संस्कार केंद्र की मेरठ में स्थापना की है। इनका कहना है कि पूरे उत्तर प्रदेश में यह अपने तरह का पहला संस्थान है जिसके केंद्र के बाहर लिखा है कि, ‘बेबी बाय च्वाइस, नॉट बाय चांस’ यानी इच्छा से संतान, संयोग से नहीं।
इन दोनों संघ नेताओं ने गुजरात स्थित गर्भ विज्ञान अनुसंधान केंद्र से प्रशिक्षण लिया है। आयुर्वेद पर आधारित इन केंद्रों में विवाहित जोड़ों को एकदम ‘परफेक्ट’ गर्भ की गारंटी दी जाती है। साथ ही दावा किया जाता है कि इस तरह के कोर्स में अनुवांशिक बीमारियों या कमियों को भी दूर किया जा सकता है। अनुवांशिक कमियां या बीमारियां वे होती हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी किसी खानदान में चलती हैं।
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डॉ नीरज सिंघल बताते हैं कि विवाहित जोड़ों को गर्भधारण से पहले और गर्भावस्था के दौरान कई किस्म के गर्भ संस्कार का पालन करता होता है। इन संस्कारों में कुछ क्रियाएं होती हैं जिनमें विशेष किस्म का खानपान और कुछ योगासन होते हैं। डॉ सिंघल कहते हैं कि “इस संस्कार विधि का सबसे अहम पड़ाव वह विशेष हवन होता है, जो 9 महीने की गर्भावस्था के दौरान तीन बार किया जाता है। इसके अलावा मां को विशेष किस्म का सात्विक और पौष्टिक भोजन दिया जाता है।“
वे बताते हैं कि, “अगले चरण गर्भवती महिला को विभिन्न प्रकार की श्वास क्रिया तकनीक का प्रशिक्षण दिया जाता है, और यह उनकी इच्छानुसार तय गर्भावस्था के मुताबिक होता है। इसके साथ वे नियमपूर्वक हनुमान चालीसा और दुर्गा चालीसा का पाठ करने के साथ ही शिवाजी और महाराणा प्रताप जैसे वीरों की शौर्य गाथाएं सुनती हैं।” उन्होंने दावा किया कि इस प्रक्रिया से कम से कम दो दर्जन जोड़ों को फायदा हुआ है।
लखनऊ स्थित आरएमएल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के आयुर्वेदाचार्य डॉ एस के पांडेय बताते हैं कि यह तो इतिहास में दर्ज है कि सात्विक भोजन और नियमित प्राणायाम से लोगों के विचार बदल सकते हैं। इससे शरीर शुद्ध होता है और एक अच्छी आत्मा के गर्भ में आने में मदद करता है।
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