वैक्सीनेशन को लेकर इतने प्रकार के आदेश समय-समय पर लागू किए गए हैं कि इसकी गति बढ़ ही नहीं रही है। ग्रामीण इलाकों में दो और बड़ी दिक्कतें हैं: एक, पोर्टल और नेट के जरिये स्लॉट की बुकिंग में समस्याएं हो रही हैं; दो, वैक्सीन को लेकर अफवाहें अलग से फैल रही हैं और इन्हें दूर कर लोगों को समझाना परेशानी का सबब है।
खास तौर पर बिहार, यूपी, मध्यप्रदेश में निम्न आय वर्ग तथा कामगार वर्ग के लोगों और शहर- कस्बे से दूर के ग्रामीण इलाकों में प्रशासन के साथ-साथ सामाजिक संगठनों को भी अफवाहों से जूझने में पसीने छूट रहे हैं। भले भक्त लोग यह कहने से नहीं चूक रहे कि ये अफवाहें महज मुसलमानों के बीच कुछ कट्टरपंथी तत्वों ने फैलाई हुई हैं लेकिन सच्चाई यह है कि विभिन्न वर्गों में अलग-अलग तरीके की अफवाहें तैर रही हैं।
ये खास तौर पर इस तरह की हैं: वैक्सीन लगवाने के बाद भी तो बड़े-बड़े लोगों को जान गंवानी पड़ रही है, तो हमें क्यों फायदा होगा; वैक्सीन के नाम पर पानी डाला जा रहा है, कोई दवा थोड़ी ही है यह, इससे कुछ होना-जाना नहीं है; वैक्सीन ले लिया, तो कोरोना से तो बचाव हो जाएगा, पर दूसरे रोग हो जाएंगे- देखिए, ब्लैक फंगस तो हो ही रहा है लोगों को; हम लोग भूख से भले मर जाएं, टीका-वीका से कुछ नहीं होने वाला;
सिर्फ मुसलमान ही नहीं, दलित वर्ग में भी यह चर्चा है कि सरकार जनसंख्या नियंत्रण के लिए ये टीके लगवा रही है।
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वैसे, वैक्सिनेशन-जैसे किसी भी अभियान में इस तरह की चर्चाएं उठती रही हैं। और ऐसा भारत में ही नहीं होता। कई देशों में ऐसी समस्याओं से जूझना पड़ता है। सभी वर्गों को वैक्सीन लगे, इसके लिए सरकारों ने गांवों में वैक्सिनेशन सेंटर बनाने से लेकर मोबाइल वैन तक के कई तरह के प्रयास शुरू तो किए हैं लेकिन वे बड़े पैमाने पर नहीं है, इसलिए भी इसकी गति नहीं बढ़ रही है। पर मुख्य दिक्कत तो स्लॉट बुक न हो पाना और अधिकतर लोगों के पास स्मार्टफोन न होना है।
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यक्षेत्र गोरखपुर के उरुवा ब्लॉक के मुरारपुर गांव का ही उदाहरण लें। यहां 2,300 वोटर हैं जबकि मई के तीसरे हफ्ते तक बमुश्किल 70 लोगों को वैक्सीन लगी। इनमें कथित सवर्ण वर्ग के लोग अधिक हैं। अधिकतर ग्रामीणों का कहना है कि वैक्सीन के लिए स्मार्टफोन चाहिए और इसे वे कहां से खरीदें। हालांकि कुछ जागरूक प्रधान जन सुविधा केंद्रों से लोगों का रजिस्ट्रेशन करा रहे हैं। पिपरौली ब्लॉक के खानीपुर गांव में 2,600 वोटर हैं। बमुश्किल 100 लोगों को वैक्सीन लगी है। यहां के रणविजय सिंह का कहना है कि एक पीएचसी और सीएचसी पर 80 से 100 गांवों के लोगों के वैक्सिनेशन की जिम्मेदारी है। कई सेंटरों के चिकित्सकों की ड्यूटी मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पतालों में लगा दी गई है जिससे दिक्कत हो रही है। कई सीएचसी और पीएचसी पर वैक्सिनेशन के लिए स्लॉट बुक हो जा रहा है लेकिन पहुंचने पर पता चल रहा है कि वैक्सीन है ही नहीं। इतना ही नहीं, शहरी क्षेत्र के लोग भी आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के सीएचसी और पीएचसी पर स्लॉट बुक कराकर वैक्सीन लगवा ले रहे हैं।
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भोपाल से सटे रासलाखेड़ी गांव का हाल थोड़ा भिन्न है। यहां करीब 1,200 की आबादी रहती है। यहां बीते अप्रैल महीने में गांव के स्कूल में वैक्सीन शिविर लगाया गया। लेकिन एक बड़ी खामी यह है कि वैक्सीन लगाते समय यह नहीं देखा या पूछा जा रहा है कि किसी को कोई गंभीर बीमारी तो नहीं है। दूसरा, यदि वैक्सीन लगने के बाद किसी को डॉक्टर की जरूरत पड़ती है तो झोला छाप डॉक्टरों का ही सहारा है। इसी तरह भोपाल से करीब 15 किलोमीटर दूर परवलिया गांव में 45 साल के ऊपर वालों को तो वैक्सीन में दिक्कत नहीं हुई, जब युवाओं की बारी आई तो यहां वैक्सीन की डोज नहीं पहुंची। 50 वर्षीय महेश का कहना है कि उन्होंने तो वैक्सीन के दोनों डोज लगवा लिए लेकिन परिवार के युवाओं को वैक्सीन का अब भी इंतजार है।
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झारखंड में रांची के रातू ब्लॉक के अविनाश कहते हैं कि पिछले ढाई माह में 4 बार वैक्सीन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंची है। दवा पहुंचने के बाद आंगनवाड़ी सेविकाओं की मदद से यह जानकारी गांव वालों तक पहुंचाई जाती है जिसके बाद लोग सेंटर पर जाकर वैक्सीन ले लेते हैं। लेकिन सामाजिक संगठनों को कमजोर वर्गों और मुसलमानों को इसके लिए राजी करने में खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। अविनाश के अनुसार, इन्हें शक है कि मोदी सरकार ऐसी वैक्सीन लगा रही है जिससे बच्चे नहीं होंगे। मुखिया समेत कई लोग ऐसा सोचने वालों के बीच जागरूकता अभियान चला रहे हैं।
रांची के ओर मांझी ब्लॉक के विनय कुमार बताते हैं कि उनके इलाके में भी लोगों में यह अफवाह फैल रही है कि वैक्सीन लेने से मौत हो जा रही है। यह अफवाह एक से दूसरे गांव फैल रही है। इसे रोकने के लिए जागरूकता पर भी काम चल रहा है। इसका असर भी हो रहा है। पहली बार की तुलना में अब ज्यादा लोग वैक्सिनेशन करवा रहे हैं।
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दिल्ली के गांवों में भी लोगों को वैक्सीन लगवाने के लिए हाथ-पैर मारना पड़ रहा है। दिचाऊं कलां गांव के राजबीर सिंह ने बताया कि गांव में डिस्पेंसरी नहीं है। इस कारण सरकारी स्कूल में वैक्सीन केंद्र बनाने के लिए एसडीएम से आग्रह किया था लेकिन गांव में वैक्सीन लगाने का केंद्र नहीं बनाया। मदनपुर, माजरा डबास, अलीपुर गांवों में वैक्सीन लगना शुरू तो हुआ लेकिन आसपास के गांवों एवं कॉलोनियों के लोग भी वैक्सीन लगवाने यहां आ रहे हैं। इस कारण यहां के लोगों को वैक्सीन नहीं लग पाती है। गोयला खुर्द गांव के पवन ने बताया कि उनके गांव में वैक्सीन लगना आरंभ नहीं हुआ है, इसलिए लोगों को काफी दूर द्वारका में वैक्सीन लगवाने जाना पड़ रहा है।
(इनपुटः के संतोष, रामयश केवट, मोनिका आर्य)
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