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गुजरात चुनाव: मोरबी पर झूलते विकास और कांग्रेस की 'खटिया बैठक' से मोदी-शाह के गढ़ में ही हांफ रही है बीजेपी

पिछले तीन विधानसभा चुनावों में बीजेपी की सीटों में लगातार कमी आई है, लेकिन पार्टी किसी भी कीमत पर मोदी के गृह राज्य को बचाना चाहती है। पिछले चुनाव में उसे 99 सीटें मिली थीं। अगर इस बार संख्या इससे नीचे रह गई तो वह पार्टी के मुंह पर तमाचे जैसा ही होगा।

गुजरात में दो चरणों में चुनाव होना है
गुजरात में दो चरणों में चुनाव होना है 

गुजरात में 1 और 5 दिसंबर को चुनाव होने हैं। तारीखों की घोषणा कुछ देर से की गई और इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह को मौका मिल गया कि वे अंतिम कुछ हफ्तों के दौरान सरकारी खर्चे पर जमकर चुनाव प्रचार कर सकें। पिछले एक माह के दौरान गुजरात की अपनी चार यात्राओं के दौरान अकेले प्रधानमंत्री मोदी ने दो लाख करोड़ के निवेश की घोषणा की। वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने जो घोषणाएं कीं, जाहिर ही वे इससे अलग हैं। राज्य में हुए पिछले डिफेंस एक्सपो में भी जो निवेश के वादे हुए, वे भी इससे अलग हैं।

लगातार कम हो रही हैं बीजेपी की सीटें

बेशक पिछले तीन विधानसभा चुनावों के दौरान बीजेपी की सीटों में लगातार कमी आई है, लेकिन पार्टी किसी भी कीमत पर मोदी-शाह के गृह राज्य को हाथ से निकलने देना नहीं चाहती। इतना ही नहीं, 2017 के पिछले चुनाव में बीजेपी को 182 में से 99 सीटें मिली थीं और अगर इस बार उसकी संख्या इससे नीचे रह गई तो भी वह पार्टी के मुंह पर तमाचे जैसा ही होगा।

अब प्रचार के लिए लगभग चार हफ्ते का समय है और यही उम्मीद की जा सकती है कि बीजेपी और मोदी हर वह कार्ड खेलेंगे, जिसमें उन्हें वोट मिलने की संभावना दिखती हो।

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नरेंद्र मोदी अकेले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो इतने बड़े पैमाने पर चुनाव प्रचार में भाग लेते हैं। 2017 के चुनाव में उन्होंने आरोप लगाया था कि कांग्रेस नेता अहमद पटेल को राज्य का मुख्यमंत्री बनाने की साजिश पाकिस्तान की ओर से रची जा रही है। मोदी ने यह भी आरोप लगाया कि कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर के घर रात के खाने के दौरान उनके खिलाफ साजिश रची गई। अब देखना है कि इस बार वह किस-किस तरह के और किस-किस पर आरोप मढ़ते हैं।

मोरबी के बाद अधर में झूल रही हैं बीजेपी की उम्मीदें

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मोरबी त्रासदी ने भी बीजेपी के अभियान को कुछ हद तक प्रभावित किया है। सिर्फ पुल गिरने से ही बीजेपी और सरकार को शर्मिंदगी नहीं उठानी पड़ी, प्रधानमंत्री के दौरे से पहले अस्पताल को रंगरोगन करने की तस्वीरें भी वायरल हो गईं और इससे सत्ता पक्ष मुश्किल में रहा। पार्टी को तब भी शर्मिंदगी उठानी पड़ी जब सोशल मीडिया पर वह फोटो वायरल हो गई जिसमें प्रधानमंत्री को कार्ड-बोर्ड से आनन-फानन में बनाए गए क्लास रूम में एक स्कूली बच्चे के बगल में कंप्यूटर पर नजरें गड़ाए दिखाया गया। यह आम आदमी पार्टी के उस वादे की काट के लिए था कि वह राज्य में स्कूलों और स्कूली शिक्षा को बदल कर रख देगी।

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'स्कूल-रिक्शा' पर मोदी-केजरीवाल दोनों की खुल रही पोल

यह राज्य का पहला ऐसा चुनाव है जिसमें बीजेपी को मजबूर कर दिया गया है कि वह विपक्ष द्वारा निर्धारित किसी एजेंडे पर प्रतिक्रिया दे। शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दों पर खास तौर पर सौराष्ट्र के युवाओं में आम आदमी पार्टी ने जिस तरह अपनी पहुंच बनाई है, उससे बीजेपी बैकफुट पर है। बीजेपी ने वैसे तो मान लिया था कि आम आदमी पार्टी के कारण ज्यादा नुकसान कांग्रेस को होगा। लेकिन शायद उसे अब समझ में आने लगा है कि केजरीवाल एंड कंपनी तो उसकी जमीन ही ज्यादा हड़पती दिख रही है।

ऐसा लगता है कि आम आदमी पार्टी 55 शहरी निर्वाचन क्षेत्रों में कड़ी टक्कर देने जा रही है जहां उसे युवाओं का समर्थन मिल रहा है। ये मुख्यतः बीजेपी के गढ़ रहे हैं और पिछली बार ऐसे 48 में से 44 विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी ने जीत हासिल की थी। राज्य का अंतिम चुनाव परिणाम इस बात पर निर्भर करेगा कि आम आदमी पार्टी इन सीटों पर किस हद तक सेंध लगाती है।

हालांकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी एक ऑटोरिक्शा चालक के घर रात के खाने के लिए जाने के बाद शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा है। ऑटोरिक्शा चालक ने बाद में खुलासा किया कि यह एक पूर्व नियोजित यात्रा थी और वह तो नरेंद्र मोदी का फैन है।

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आम आदमी पार्टी ने 2017 में भी गुजरात में विधानसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन तब उसने सभी 30 सीटों पर जमानत गंवा दी थी। इस बार, विज्ञापन पर मोटा पैसा खर्च करके और पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार से मिल रही मदद की बदौलत वह ज्यादा उत्साह के साथ चुनाव मैदान में जमी हुई है।

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बीजेपी को तो भरोसा है कि प्रधानमंत्री मोदी की व्यक्तिगत अपील की वजह से उसकी नैया पार लग जाएगी और इसे देखते हुए ही मोदी कार्यकर्ताओं को अति आत्मविश्वास और खुशफहमी से बचने की सलाह दे रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि कांग्रेस ने गांवों में घर-घर जाकर प्रचार करते हुए उन्हें बदनाम करने का काम आम आदमी पार्टी को आउटसोर्स कर दिया है।

कांग्रेस की 'खटिया बैठक' से दिक्कत में बीजेपी

वैसे तो राज्य के शहरी क्षेत्रों में एक आम धारणा यह है कि कांग्रेस जमीन पर दिखाई नहीं दे रही है, पार्टी इस बार एक अलग रणनीति पर चल रही है। वह ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में खटिया बैठक' के अलावा छोटी रैलियों और यात्राओं पर ध्यान दे रही है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और रघु शर्मा के नेतृत्व में चल रहे प्रचार अभियान की विभिन्न क्षेत्रों में निगरानी महाराष्ट्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के कांग्रेस प्रभारियों द्वारा की जा रही है। कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि पार्टी 125 निर्वाचन क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित कर रही है, हालांकि वह सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इनमें गोधरा से लेकर विसनगर तक वे 16 निर्वाचन क्षेत्र भी हैं जहां पार्टी को कम अंतर से हार का मुंह देखना पड़ा। पिछली बार कांग्रेस गोधरा में 258 वोटों से हार गई थी।

2017 में कांग्रेस ने 77 सीटें जीती थीं और तब यकीनन नरेंद्र मोदी की अपील कहीं दमदार थी। यही वजह है कि बीजेपी चुनौती को खारिज नहीं कर सकती।

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समान नागरिक संहिता का दांव

बीजेपी की चिंता तब खुलकर सामने आई जब गुजरात सरकार ने 30 अक्टूबर को राज्य में समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए समिति की घोषणा की। हालांकि उसने कहा जरूर कि इसका विधानसभा चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है लेकिन घोषणा का समय साफ कर रहा था कि मंशा क्या है। चिंतित है, तब ही तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अपना ज्यादा समय गुजरात में ही बिता रहे हैं। पिछले 27 वर्षों से राज्य की सत्ता पर काबिज पार्टी को 100गुजरात गौरव यात्रा' निकालने के लिए मजबूर होना पड़ा, यह भी उसकी घबराहट को दिखाता है।

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बीजेपी उन रिपोर्टों से भी चिंतित है कि विभिन्न शहरों के युवा पेशेवरों के समूह बीजेपी की नीतियों के दुष्प्रभाव को उजागर करने के लिए जागरूकता बैठकें कर रहे हैं। इन बैठकों में चुनाव पर खुलकर बात नहीं की जाती और न ही भाग लेने वालों को किसी पार्टी के पक्ष या विपक्ष में वोट देने को कहा जाता है। लेकिन अर्थव्यवस्था पर बीजेपी की नीतियों के विनाशकारी प्रभावों को उजागर करना और महंगाई तथा बेरोजगारी के बारे में बात करना ही बीजेपी को परेशान कर देने के लिए काफी है। राजकोट में ऐसी ही एक बैठक को बीजेपी कार्यकर्ताओं ने बाधित कर दिया और मीडिया को इसे रिपोर्ट न करने के लिए मजबूर किया गया।

चुनाव मैदान में तीनों पार्टियों के लिए बहुत कुछ दांव पर है। बीजेपी के लिए यह अस्तित्व का चुनाव है जिसे वह हर हाल में जीतना चाहेगी। क्या इस बार के चुनाव परिणाम इस आम धारणा को गलत साबित करने वाले हैं कि गुजरात में मोदी और बीजेपी को मात नहीं दी जा सकती?

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