उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से 9 बार लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री रशीद मसूद का आज निधन हो गया। वो एक महीने से बीमार चल रहे थे। हाल ही में उन्हें कोरोना भी हुआ था, हालांकि वे उससे उबर गए थे। उनके पुत्र शादान मसूद ने बताया कि रशीद मसूद पिछले एक महीने से दिल और किडनी की समस्या से जूझ रहे थे। उन्हें शुगर की भी समस्या थी।
शादान मसूद ने बताया कि 27 अगस्त को कोरोना के चलते उन्हें दिल्ली के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया था। करीब एक महीने अस्पताल में रहकर कोरोना को मात देने के बाद वह सहारनपुर घर वापस लौट आए थे। लेकिन रविवार सुबह अचानक तबीयत खराब होने के बाद उन्हें रुड़की में भतीजे कर्नल अदनान मसूद के अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उन्होंने आखिरी सांस ली और इस दुनिया ए फ़ानी से कूच कर गए। उन्हें शाम 5 बजे सहारनपुर में ही उनके पैतृक कब्रिस्तान में दफन किया जाएगा।
Published: 05 Oct 2020, 6:27 PM IST
सहारनपुर की सियासत के केंद्र रहे रशीद मसूद के निधन की खबर फैलते ही सहारनपुर में गम का माहौल है। जिले की तमाम हस्तियों ने उनके निधन पर उनके बेहट रोड स्थित घर पहुंच कर दुःख जताया। रशीद मसूद कांग्रेस नेता इमरान मसूद के चाचा हैं और इमरान मसूद ने राजनीति का पाठ उन्हीं से पढ़ा है। उनके अलावा सहारनपुर के ज्यादातर नेता रशीद मसूद के ही राजनीतिक शिष्य रहे हैं। इनमें जगदीश राणा, संजय गर्ग, कुंवरपाल दूधला, कुंवरपाल माजरा, धर्म सिंह मौर्य जैसे नेताओं के नाम शामिल हैं। रशीद मसूद के बेटे शादान मसूद सहारनपुर से लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। उनके अलावा उनकी एक बेटी शाजिया मसूद भी है।
Published: 05 Oct 2020, 6:27 PM IST
दिग्गज नेता रहे रशीद मसूद को पश्चिम उत्तर प्रदेश में एक ऐसे नेता के तौर पर जाना जाता है, जिसे हिंदू-मुस्लिम हर वर्ग का वोट बराबर पड़ता रहा। वो दिवंगत किसान नेता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के सबसे प्रिय साथियों में से एक थे। वह केंद्र की वी पी सिंह सरकार में स्वास्थ्य राज्यमंत्री रह चुके हैं। वह विपक्ष के उम्मीदवार के तौर पर साल 2007 में उपराष्ट्रपति का चुनाव भी लड़ चुके हैं।
खास बात यह है कि रशीद मसूद का जन्म 15 अगस्त 1947 को हुआ था। उनका पूरा राजनीतिक सफर काफी हलचलों वाला रहा है। काज़ी रशीद मसूद 1977 में पहली बार जनता पार्टी के टिकट पर सांसद चुने गए थे। वो वीपी सिंह और मुलायम सिंह यादव के साथी थे। वह एक ऐसे नेता के तौर पर जाने जाते हैं जो लगातार पार्टिया बदलते रहे, मगर उनका वोट बैंक उनसे जुदा नहीं हुआ। जनता पार्टी (सेक्युलर), जनता दल, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बीएसपी सभी के साथ मिलकर उन्होंने राजनीति की। 1996 में उन्होंने इंडियन एकता पार्टी बनाई और 2003 में एक बार फिर समाजवादी पार्टी में चले गए। 2012 में उन्हें कांग्रेस ने राज्यसभा में भेजा था। इसके बाद उन्हें एपीडा का भी चेयरमैन बनाया गया।
Published: 05 Oct 2020, 6:27 PM IST
उनके निधन के बाद सहारनपुर के सांसद हाजी फजलुर्हरमान ने दुःख जताते हुए कहा कि वो हम सब के काबिल ए एहतराम थे। पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष इरशाद चौधरी के मुताबिक उन्होंने सहारनपुर की सियासत को एक नई ऊंचाई दी। कांग्रेस नेता इमरान मसूद ने कहा कि उनके चाचा इस दुनिया मे उनके सबसे करीबी शख्स थे, उन्होंने ही उन्हें चलना सिखाया।
वहीं समाजवादी पार्टी नेता फिरोज आफताब के मुताबिक सहारनपुर ने अपना कोहिनूर खो दिया है। पूर्व मंत्री जगदीश राणा, नगर विद्यायक संजय गर्ग के अनुसार वो निश्चित तौर पर उनके राजनीतिक गुरू थे। समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष और रशीद मसूद के प्रतिद्वंदी रहे दिवंगत चौधरी यशपाल के पुत्र चौधरी रुद्रसेन ने भी उन्हें शानदार नेता बताया और कहा कि अब उनकी जगह कोई नहीं ले पाएगा, वो सेकुलरिज्म के सच्चे सिपाही थे।
Published: 05 Oct 2020, 6:27 PM IST
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Published: 05 Oct 2020, 6:27 PM IST