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वाराणसी: गंगा में वाटर टैक्सी चलाने के फैसले से मल्लाह समाज में भारी रोष, कहा- ‘बड़ा आंदोलन होगा’

नाविकों का कहना है कि अपने प्रस्तावकों में से एक नाविक का प्रस्ताव जोर-शोर से प्रचारित कर, नाविक समाज का समर्थन बटोरने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क्षेत्र में अब उन्हीं की सर्वाधिक उपेक्षा हो रही है।

फोटो: नवजीवन
फोटो: नवजीवन 

वाराणसी में विकास के नाम पर पहले काशी-विश्वनाथ गली में छोटे दुकानदारों की रोजी-रोटी पर असर पड़ा और फिर क्रूज और मालवाहक जहाजों के परिचालन के कारण नाविकों की रोजी रोटी प्रभावित होने लगी तो विरोध स्वाभाविक था। कई बार विरोध प्रदर्शन के लिए नाविक और दुकानदार उग्र भी हुए लेकिन प्रशासन ने हर बार समझा बुझा कर उन्हें शांत कर दिया। गंगा में एक के बाद एक नए और आलीशान क्रूज चलाने के  फैसले से मल्लाह समुदाय अपने पारंपरिक पेशे को लेकर स्वाभाविक रूप से आशंकित और खासा आंदोलित है। यही कारण है कि जब गंगा में वॉटर टैक्सी के संचालन का फैसला हुआ तो इसने नाविकों को एक बार फिर आंदोलित कर दिया है। माझी समाज का कहना है कि बार बार ऐसे प्रतिघातों से वे परेशान हैं और अब भी बात न बनी तो ने निर्णायक लड़ाई करने को मजबूर होंगे।

वाराणसी में अस्सी घाट से लेकर राजघाट तक पारंपरिक नावों के संचालन से जीविका कमाने वाला नाविक समाज इस बार कुछ ज्यादा ही आंदोलित है। दरअसल नाविकों की चिंता का कारण सरकार का वह प्रयास है जिसमें बनारस की गंगा में वॉटर टैक्सी चलाने का न सिर्फ प्रस्ताव है, बल्कि इनके संचालन के लिए ट्रायल भी हो चुका है। बनारस में संचालन के लिए दस वॉटर टैक्सियां आ भी चुकी हैं और यही नाविकों के गुस्से का ताजा कारण बनकर उभरा है। नाविकों का कहना है कि अपने प्रस्तावकों में से एक नाविक का प्रस्ताव जोर-शोर से प्रचारित कर, नाविक समाज का समर्थन बटोरने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क्षेत्र में अब उन्हीं की सर्वाधिक उपेक्षा हो रही है। नाविकों ने इस बार सबसे पहले 6 जुलाई को अपनी नौकाओं का संचालन पूरी तरह ठप रखा, जिसके बाद स्थानीय विधायक और मंत्री सहित प्रशासन के मान मनौव्वल के बाद कुछ नाविक तो उस दिन मान गए, लेकिन अस्सी समेत कई घाटों के माझियों ने अपनी नावें गंगा में नहीं उतारी। 

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विरोध की यह ठहरी हुई आग मंगलवार को अचानक तेज हो गई और क्रूज का संचालन न रुकते देख माझी समाज ने विरोध का दूसरा रास्ता अपनाया और शाम को रविदास घाट से चलने वाले तीनों क्रूजों का संचालन रोकने के लिए उनके आसपास नावों से घेराबंदी कर धरना प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। हालांकि पुलिस और प्रशासन के अफ़सरों के आश्वासन पर मंगलवार देर शाम धरना समाप्त तो कर दिया, लेकिन इस विरोध प्रदर्शन के चलते क्रूज का संचालन अंततः नहीं हो सका।

गंगा में वाटर टैक्सी के संचालन को लेकर ‘मां गंगा निषाद राज सेवा न्यास’ से जुड़े नाविक लंबे समय से आंदोलित हैं। नाविकों ने कई दिनों से नौका संचालन ठप कर रखा था। जिसके बाद डीएम एस. राजलिंगम मंगलवार को सुबह 10.50 बजे एडीएम और पुलिस अधिकारियों के साथ दशाश्वमेध घाट स्थित जल पुलिस चौकी पहुंचे। उन्होंने संस्था के अध्यक्ष प्रमोद माझी और हड़ताल में शामिल नाविकों के साथ बैठक कर हड़ताल खत्म करने की अपील की। नाविक बताते हैं कि उन्होंने नाव संचालकों को वॉटर टैक्सी के संचालन के लिए टेंडर का ऑफर भी दिया।  

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लेकिन, अध्यक्ष प्रमोद माझी का कहना है कि डीएम के साथ बातचीत में हीलाहवाली के अलावा कोई हल न निकलने पर नाविकों ने पहले गंगा में नाव पर बैठक कर प्रदर्शन किया। उसके बाद दोपहर में रविदास घाट पहुंचकर क्रूज का संचालन ठप करने के लिए गंगा में नावों की ऋंखला बनाकर उसकी घेराबंदी कर रास्ता बाधित कर दिया। काफr मान मनौव्वल के बाद देर शाम पुलिस अधिकारियों के आश्वासन के बाद धरना समाप्त तो हुआ लेकिन आंदोलन की आग अभी बुझी नहीं है। नाविकों का कहना है कि नाविकों के पेट पर लात मारकर सरकार न सिर्फ उन्हें बर्बाद कर रही है बल्कि बनारस की या कहें काशी की आत्मा पर चोट कर रही है, जिसकी ये नावें और नौकायन बड़ी पहचान रही हैं।

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घाट से चलते हैं तीन क्रूज

बनारस की गंगा में प्रसिद्ध अस्सी घाट के ठीक बाद पड़ने वाले रविदास घाट से दूर नमो घाट तक अलकनंदा, मानिकशाह और भागीरथी नाम से रोज तीन क्रूज चलते हैं। इनमें सौ सीट की बुकिंग होती है। स्वभाविक है इससे नाविकों की आजीविका प्रभावित हुई है और उनके सामने जीवन-मरण का सवाल खड़ा हो गया है। अब वॉटर टैक्सी के नए प्रहार ने उन्हें और परेशान कर दिया है। उनका कहना है कि प्रशासन बड़ी आसानी से यह तो कह देता है कि हमें भी वॉटर टैक्सी के संचालन के लिए टेंडर प्रक्रिया में शामिल होना चाहिए और यह भी कि इसमें नाविक समाज को वरीयता मिलेगी, लेकिन प्रशासन के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि गरीब नाविक क्रूज या वॉटर टैक्सी खरीदने के लिए पैसा भी कहां से लाएंगे।

फिलहाल मंगलवार के ताजा विवाद के बाद डीएम एस. राजलिंगम की अध्यक्षता में रविदास घाट पर हुई बैठक में डीएम, नगर निगम और पुलिस अधिकारियों के साथ नाविक संघ के बीच सहमति बनी कि नाविक संघ 11 सदस्यीय टीम बनाएगा। यही टीम जिला प्रशासन के साथ अगले एक माह में इस समस्या का स्थायी और सर्वमान्य हल निकालने की कोशिश करेगी। हालांकि बैठक के दौरान ही डीएम ने नाविकों को ओवरलोड नावों का संचालन न करने के साथ ही घाटों पर नाव बनाने या मरम्मत के नाम पर अतिक्रमण न करने का फरमान भी सुना दिया।

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क्यों नाराज है माझी समाज?  

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र बनारस की गंगा के लिए दस वॉटर टैक्सियां मंगाई गई हैं और सरकारी तंत्र ने इनका भाड़ा भी तय कर दिया है। प्रशासन वॉटर टैक्सियों के संचालन से पर्यटन उद्योग को नई रफ्तार देने के मंसूबे पाले बैठा है और किसी भी तरह इसे क्रियान्वित करने पर उतारू है लेकिन, लेकिन माझी समुदाय को लगता है कि बीजेपी सरकार उनकी आजीविका की नाव ही पूरी तरह गंगा में तिरोहित करने पर आमादा है। याद दिला दें कि 2018 में जब गंगा में पहली बार अलखनंदा क्रूज उतारा गया था तब भी नाविक समाज ने कड़ा विरोध किया था और 18 दिनों तक गंगा में नावों का संचालन बंद रहा था।

इस बार भी नाविकों की नाराजगी भांप कर पीएम नरेंद्र मोदी के प्रस्तावित दौरे को देखते हुए प्रशासन ने एहतियात बरती और बड़ी चतुराई से उस दौरान नाविकों को शांत रखने में सफल रहा। आंदोलन की सुगबुगाहट देखते हुए छह जुलाई को दिन भर मान-मनौव्वल चलता रहा, लेकिन बात नहीं बनी। स्थानीय विधायक और यूपी के आयुष राज्यमंत्री दयाशंकर मिश्र दयालु भी उन्हें मनाने में फेल रहे

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तब डीएम एस. राजलिंगम आगे आए और भरोसा दिया कि पीएम के लौटने के बाद नौ जुलाई को वाटर टैक्सियों के संचालन के मुद्दे पर उनसे बात होगी। मल्लाह समुदाय के हितों का ध्यान रखा जाएगा और बनारस की गंगा में कोई ऐसी गतिविधि नहीं शुरू की जाएगी, जिससे उनकी आजीविका प्रभावित हो।इसके बाद माझी समुदाय के अपनी नाव चलाने के लिए तैयार हो गए। हालांकि अस्सी घाट और उसके आसपास के इलाके के मांझियों ने ज़बरदस्त नाराजगी के चलते अपनी नाव गंगा में नहीं उतारीं। हड़ताली नाविकों का कहना है कि जिन नरेन्द्र मोदी ने अपने प्रस्तावक के तौर पर एक नाविक का नाम जोड़कर उसे सिर पर बिठाया था या बिठाने का नाटक किया था, उन्हीं की सरकार अब नाविकों को उजाड़ने पर आमादा है। अस्सी घाट पर लम्बे समय से रेस्तरां चलाने वाले राजू (बदला हुआ नाम) कहते हैं: “बनारस में विकास के नाम पर बहुत कुछ अच्छा हो रहा है लेकिन पहले  विश्वनाथ गली में जिस तरह गरीब दुकानदारों के पेट पर लात पड़ी और अब क्रूज़ और वॉटर टैक्सी के नाम पर नाविकों-मल्लाहों की रोजी रोटी छीनी जा रही है वह बनारस की आत्मा पर प्रहार है।” राजू मानते हैं कि बनारस में जिस तरह ‘गुजराती स्टाइल में विकास की गंगा बहायी गयी है’ उससे काशी और बनारस दोनों की आत्मा दुखी है।

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इस मामले को लेकर समजावादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी बीजेपी सरकार पर हमला बोला है। सपा मुखिया ने ट्वीट कर कहा, 'काशी में मछुआ-निषाद-कश्यप समाज के लोगों ने अपनी परम्परागत आजीविका पर बीजेपी सरकार द्वारा हमला करने के विरोध में ‘नाव-घेरा’ बनाकर क्रूज़ का मार्ग रोका और सीधा-सीधा ये संदेश दे दिया कि अगले चुनाव में ये समुदाय बीजेपी को नदी पार नहीं करने देगा।'

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एक नजर में बनारस की गंगा और नाविक    
बनारस की गंगा में कुल 84 घाट हैं। इनके किनारे बसे हैं करीब 35 हजार मांझियों के परिवार जीवन यापन का एकमात्र सहारा नौकायन है। करीब 1500 नाव हैं और हर नाव पर करीब चार लोग काम करते हैं, यानी एक नाव से चार लोग सीधे रोज़गार से जुड़े हैं और इन चार के आश्रित उनके सहारे हैं।    

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