उत्तराखंड की बीजेपी की त्रिवेंद्र रावत सरकार के पास प्रदेश वासियों की जान के लिए गंभीर खतरा बन चुके सैकड़ों जर्जर लोहे के पुलों के मरम्मत और उन्हें बदलने के लिए भले धन न हो, लेकिन ऋषिकेश में लक्ष्मण झूला के बदले गंगा नदी पर करोड़ों रुपये लागत से पारदर्शी कांच का पुल बनाने के लिए खजाने में पैसे की कोई कमी नहीं है।
रावत सरकार ने इस पुल के केवल डिजाइन और डीपीआर के लिए 50 लाख रुपये मंजूर किए हैं।जबकि प्रदेश में जर्जर पुलों के गिरने से अब तक कई लोगों की जान जाने के अलावा पहाड़ के लोगों के लिए कुछ सौ मीटर की दूरी कई किलोमीटर में बदल गई है। पुल टूटने से कई इलाके जिला मुख्यालय से ही नहीं बल्कि शेष दुनिया से भी कट जाते हैं तो कुछ इलाकों में भुखमरी की नौबत तक आ जाती है।
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ऋषिकेश में लक्ष्मण झूला की जर्जर स्थिति का पता लगने के 6 माह बाद त्रिवेंद्र सरकार ने इस ऐतिहासिक पुल से 60 मीटर दूर नया पुल बनाने का निर्णय लिया, लेकिन यह नया पुल सामान्य पुलों की तरह नहीं बल्कि कांच का पारदर्शी पुल होगा, जिससे गुजरने वाला गंगा नदी पर चलने जैसा अनुभव करेगा। कमजोर दिल के लोग और खासकर बच्चे साधारण झूले वाले पुल से गुजरने में डरते हैं तो लक्ष्मण झूला के इस विकल्प से हजारों लोग किस तरह गुजरेंगे, यह भी एक सोचने वाली बात है।
लेकिन उससे पहले काबिलेगौर यह है कि राज्य के 84 प्रतिशत पहाड़ी भूभाग में अंग्रेजों के जमाने में बने अधिकतर पुल जर्जर हो चुके हैं और उनमें से कुछ गिर भी गए हैं। सरकार के पास उनके मरम्मत के लिए पैसा नहीं है और आम लोगों की मजबूरी है कि वे जान हथेली पर लेकर चलें। फिर भी, सरकार के पास चीन की तर्ज पर कांच का पुल बनाने के लिए पैसे की कोई कमी नहीं।
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बीजेपी सरकार को प्रदेश के उन हजारों नौनिहालों की कोई चिंता नहीं है जो जान जोखिम में रखकर उफनते नाले पार करते हैं। सरकार को उत्तरकाशी के दुर्गम कलाप जैसे गावों का ध्यान नहीं है जिन्हें पुलों के टूटने से आगामी कई महीनों तक केवल अपनी उपज आलू या वनोपज पर गुजारा करना पड़ेगा।
और तो और, दूर-दराज की बात छोड़िए, सरकार को तो राजधानी में गिर रहे जर्जर पुलों की भी चिंता नहीं है। पिछले साल 28 दिसंबर को देहरादून के कैंट क्षेत्र में बीरपुल के टूटने से एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और 2 लोग घायल हो गए। इससे पहले श्रीनगर गढ़वाल में मार्च 2012 में अलकनंदा नदी पर बनने वाले पुल के गिरने से छह लोगों की मौत हो गई और 18 अन्य घायल हो गए थे।
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लोक निर्माण विभाग द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार प्रदेश के कम से कम 235 पुलों की सुरक्षा मियाद या उनकी उम्र पूरी हो चुकी है। विभाग के मुख्य अभियन्ता हरिओम शर्मा के अनुसार इन पुलों में से 71 की स्थिति ज्यादा खराब है। इन बेहद जर्जर पुलों में अल्मोड़ा और चमोली के 9-9, देहरादून, पिथौरागढ़ और हरिद्वार में आठ-आठ, रुद्रप्रयाग में सात, बागेश्वर, नैनीताल और उत्तरकाशी में पांच-पांच, टिहरी में चार और उधम सिंह नगर के तीन पुल शामिल हैं, जिनकी तत्काल मरम्मत या पुनर्निमाण की आवश्यकता है।
इस सूची में अलकनंदा नदी पर रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राजमार्ग पर 65 मीटर लंबा पुल भी शामिल है, जिसका उपयोग चार धाम यात्रा के लिए प्रतिदिन हजारों तीर्थयात्री करते हैं। देहरादून के मालसी डियर पार्क के निकट देहरादून-मसूरी राजमार्ग वाला पुल भी बेहद खतरनाक पुलों की सूची में है।
उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री मार्ग का गंगोरी पुल 2008 से अब तक चार बार गिर चुका है। इसी जिले के मोरी ब्लॉक की सुपिन नदी पर बने कलाप गांव के पुल के गिरने से लोग मुख्यमार्ग से लगभग 60 किमी दूर हो गए हैं और वहां खाने के लिए लोगों के पास आलू के सिवा कुछ नहीं है। इसी क्षेत्र में बिलसौड़-मातली, और नलोड़ा के पुल 2012 में टूट गए थे और वहां के लोग और स्कूली बच्चे ट्रालियों से नदी पार कर रहे हैं।
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ओसला का पुल टूटने से कई गावों के लिए मुख्यमार्ग तक की दूरी 10 किमी बढ़ गई है। 2013 की आपदा में बहे केदार घाटी के कई पुलों के न बन पाने के कारण इस क्षेत्र में ट्रॉली से गिरने और लोगों के हाथ कटने जैसी घटनाएं हो चुकी हैं। पौड़ी जिले के रिखणीखाल ब्लॉक में पुल न होने से राजकीय इंटर कॉलेज करतिया के लड़के-लड़कियों को उफनती मनदाल नदी में उतरकर पार करना होता है।
देहरादून के साहिया क्षेत्र के अमलावा नदी पर बने आधा दर्जन पुलों की हालत बेहद जर्जर है। देहरादून में ही डाक पत्थर क्षेत्र में पावर हाउस की नहर पर 50 के दशक में बने पुल जर्जर हैं। बागेश्वर जिले में 1913 में बना सरयू नदी पर 104 साल पुराना झूला पुल जर्जर हालत में है। पौड़ी गढ़वाल में 2010 में नयार नदी में आई बाढ़ के कारण बड़खोलू झूला पुल एबैटमेंट झुकने के कारण धनुष के आकार में एक तरफ झुककर हादसे को दावत दे रहा है।
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