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उत्तर प्रदेशः बेमौसम बारिश-ओलों ने किसानों को बर्बादी की कगार पर पहुंचाया, खेतों में खड़ी फसलें पूरी तरह तबाह

मोदी सरकार और प्रदेश की योगी सरकार कहने को तो फसलों के नुकसान से किसानों को बचाने के लिए बीमा कंपनियों के जरिए राहत दिलाने की बात करती है, लेकिन किसानों का दुखड़ा सुनने पर हकीकत कुछ और ही सामने आती है।

बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से खेतों में तैयार फसलें पूरी तरह तबाह
बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से खेतों में तैयार फसलें पूरी तरह तबाह फोटोः सोशल मीडिया

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में पहले से आवारा मवेशियों से तबाह किसानों को बे-मौसम हुई बारिश और ओलों की बरसात ने बर्बादी की कगार पर पहुंचा दिया है। हाल में तेज आंधी-बारिश के साथ ओलावृष्टि ने किसी तरह जुताई-बुआई और खाद-पानी की व्यवस्था कर गेहूं की खेती करने वाले किसानों को कहीं का नहीं छोड़ा है। बारिश की बूंदों और ओलों से खेतों में खड़ी फसलें पूरी तरह बर्बाद हो गई हैं। प्रकृति की यह मार किसानों के लिए तबाही लेकर आई है।

पिछले हफ्ते शुक्रवार और शनिवार की रात से ही मौसम का मिजाज बदल गया था। कई जगह बारिश से फसलों को नुकसान हुआ। रविवार देर शाम एक बार फिर तेज बारिश हुई, घंटों बारिश के साथ ओले भी पड़े। कृषि विभाग के मुताबिक भदोही जनपद में 14 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चलीं और दो दिनों में 19 एमएम बारिश दर्ज की गई। कृषि विज्ञान केंद्र बेजवां के कृषि विशेषज्ञ डॉ आरपी चौधरी ने कहा कि बारिश के कारण किसानों की फसल को जितना नुकसान नहीं हुआ है, उससे अधिक ओलावृष्टि से हुआ है। मौसम विभाग के अनुसार 21 मार्च तक बारिश की स्थित बनी रहेगी।

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मिर्जापुर जिले के हलिया विकास खंड के करीब चार दर्जन गांवों में तेज आंधी और पानी के साथ आसमान से ओले बरसने से किसानों की अलसी, सरसों, चना, मसूर, गेहूं इत्यादि की फसलें पूरी तरह बर्बाद हो गई हैं। किसानों का कहना है कि किसी तरह समितियों से कर्ज पर खाद और बीज लेकर खेती किया, लेकिन प्रकृति की मार ने सबकुछ तहस-नहस करके रख दिया है। किसानों ने मड़ाई के लिए अपने खलिहान में जो फसलें रखी थीं, वो पानी भर जाने के कारण अब सड़ने के कगार पर पहुंच गई हैं।

मिर्जापुर के हलिया निवासी एक किसान अभिनेष प्रताप सिंह का कहना है कि बारिश के साथ ओले पड़ने से फसलें बर्बाद हो गई है। गेहूं की बालियां पकने को हुई थीं कि बेमौसम बारिश हो गई, जिससे फसलें पूरी तरह तबाह हो घई हैं। सरसों और अरहर की फसलों का और भी बुरा हाल है। वह शासन-प्रशासन से मुआवजे की मांग कर रहे हैं। भदोही के डीह निवासी विजय शंकर प्रजापति ने 7 बीघे में गेहूं की फसल लगाई थी, जिसे बेमौसम की बरसात ने पूरी तरह नष्ट कर दिया। तबाह फसल देखकर उनकी आंखों से आंसू निकल रहे हैं। कुछ ऐसा ही दर्द श्यामधर बिंद की है, खेत में गिरी गेहूं की फसल को देखकर उनके मुंह से शब्द निकलने से पहले आंखों से आंसू आ रहे हैं।

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बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से खेतों में खड़ी फसलें तबाह

गाजीपुर के सोनहड़ा गांव निवासी रामदुलार गिरी का दर्द है कि उन्होंने करीब 10 बीघा जमीन में गेहूं और करीब डेढ़-दो बीघे में सरसों और अलसी की फसल उगाई थी। इस वर्ष फसल भी अच्छी हुई थी। कुछ ही दिनों में उसे काटने की तैयारी चल रही थी कि अचानक बेमौसम हुई बरसात ने उनके अरमानों पर न केवल पानी फेर दिया, बल्कि उनकी कमर तोड़ कर रख दी है’। उन्होंने बताया कि महंगे दर पर खाद-पानी के साथ ट्रैक्टर से खेतों की जुताई पर अच्छी खासी रकम खर्च की थी। उम्मीद थी कि फसल अच्छी होने पर मुनाफा होगा और लागत भी निकल आएगी, लेकिन प्रकृति के कोप ने उनकी कई महीनों की मेहनत पर ही नहीं, बल्कि उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया है।

पहाड़ी क्षेत्र राजगढ़ विकासखंड, जहां सिंचाई के संसाधनों का घोर अभाव है, यहां किसानों ने अपने निजी संसाधन से गेहूं, सरसों, अलसी, चना और अरहर जैसी फसलें उगाई थी। खेतों में लहलहा रही फसलों को देखकर किसानों को काफी उम्मीद भी थी, लेकिन उनकी उम्मीदें बेमौसम बरसात से चकनाचूर हो गईं।

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बेमौसम बारिश के साथ ओलों की बरसात ने किसानों को किया तबाह

मिर्जापुर के मड़िहान के किसान आज भी पारंपरिक खेती के जरिए अपना जीविकोपार्जन करते आ रहे हैं। जंगल और पहाड़ी भू-भाग होने के कारण जंगलों से सटे हुए गांव के किसान दलहनी फसलों को प्रमुखता देते हैं। इसी प्रकार हलिया विकास खंड के बबुरा रघुनाथ सिंह, करनपुर, ड्रमंडगंज, गड़बड़ा, सोनगढ़ा, मनिगढ़ा आदि गांवों के किसान भी दलहनी फसलों के जरिए अपनी जीविका संचालित करते आ रहे हैं। यहां जुलाई और अगस्त में जब पानी की जरूरत थी तो सूखे की मार ने फसलों को मारा। अब जब पानी की जरूरत नहीं है, तो बे-मौसम बारिश ने रुलाने का काम किया।

मोदी सरकार और प्रदेश की योगी सरकार कहने को तो फसलों के नुकसान से किसानों को बचाने के लिए बीमा कंपनियों के जरिए राहत दिलाने की बात करती है, लेकिन किसानों का दुखड़ा सुनने पर हकीकत कुछ और ही सामने आती है। किसानों की मानें तो बिना बताए किसानों के बैंक खाते से बीमा कंपनियों द्वारा प्रीमियम काट लिया जाता है। लेकिन फसलों के नुकसान के बाद बीमा कंपनियां भुगतान करने के बजाय किसानों का शोषण करती हैं। किसान बताते हैं कि शासन-प्रशासन द्वारा बीमा कंपनियों पर नकेल नहीं कसने के कारण उनके हौसले बुलंद बने हुए हैं और वे किसानों का आर्थिक शोषण करने से बाज नहीं आ रही हैं।

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प्रकृति की मार और बीमा कंपनियों की बेईमानी के बाद किसानों को लेखपाल और पटवारी की मनमानी से भी जूझना पड़ता है। इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं के बाद नुकसान के आकलन में राजस्व कर्मियों की भूमिका किसानों के लिए किसी शोषण से कम नहीं होती है। किसानों की मानें तो क्षतिपूर्ति का सही आकलन नहीं कर इसमें भी खेल किया जाता है। हालांकि भदोही जिले में बारिश और ओलावृष्टि के बाद हुए नुकसान के आकलन के लिए जिलाधिकारी गौरांग राठी ने तीन सदस्यीय टीम का गठन किया है। जिलाधिकारी ने राजस्व, कृषि विभाग और फसल बीमा कंपनी की संयुक्त टीम बनाकर तीन दिन में रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है। लेकिन देखने वाली बात है कि किसानों तक कितनी राहत पहुंच पाती है।

(जनचौक.कॉम से साभार)

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